By सुखी भारती | Jul 27, 2023
वीर अंगद ने जब रावण को यह कहा, कि इन चौदह लोगों को मारने का कोई लाभ नहीं है। उन चौदह जनों का वर्णन करते हुए, वीर अंगद ने कुछ एक जनों की व्याख्या तो कर दी थी। लेकिन रावण की अकल इतने से ही ठिकाने आने वाली नहीं थी। विडंबना देखिए, कि रावण में यह चौदह के चौदह अवगुण कूट-कुट कर भरे हुए थे। कामी व वाममार्गी तो वह था ही। लेकिन आगे वीर अंगद जो कह रहे हैं, उन्हें आप ध्यान से सुनिए-
‘सदा रोगबस संतत क्रोधी।
बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी।।
तनु पोषक निंदक अघ खानी।
जीवत सब सम चौदह प्रानी।।’
वीर अंगद ने कहा कि नित्य के रोगी को भी कभी नहीं मारना चाहिए। कारण कि जो व्यक्ति हर क्षण रोग के दुष्प्रभावों से पीड़ित रहता है, उसे भला आप क्या मारेंगे। कारण कि उसके न तो तन में बल बचा होता है, और न ही मन में। समाज में अगर कोई ऐसे बीमार व्यक्ति को बल प्रयोग करके पीड़ा पहुँचाने का कार्य करता है, तो उसे हर कोई धिक्कारता है। कारण कि आज नहीं तो कल वह मरने ही वाला है।
महापुरुषों के अनुसार ऐसे व्यक्ति को भी मारने का कोई लाभ नहीं होता, जिसे निरंतर क्रोध आता रहता हो। तनिक-सी कोई बात हुई नहीं, कि क्रोधी व्यक्ति आग उगलने लगता है। मुख से गाली गलौच व अन्य अपमानित शब्दों का प्रयोग करता है। उसे लगता है, कि वह गालियां निकालने से, सामने वाले व्यक्ति को पीड़ा पहुँचाने में सफल हो पा रहा है। लेकिन वास्तविकता यह होती है, कि वह स्वयं को ही हानि पहुँचा रहा होता है। वैज्ञानिक कहते हैं, कि अगर एक व्यक्ति दिन भर धूप में पत्थर तोड़ने का कार्य करता है, और जितनी उस कार्य करने में, उसे थकान होती है, उतनी थकान उसे मात्र पाँच से दस पल के क्रोध में हो जाती है। साथ में वह दिन भर अपने संपर्क में आने वाले सगे संबंधियों से भी अच्छे से बात नहीं कर पाता है। अधिक संभावना यह रहती है, कि वह उनसे भी अपने व्यवहार को संयमित नहीं कर पाता। जिस कारण पूरे वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वह व्यक्ति कलेशों से घिर जाता है। क्रोध के कारण उस व्यक्ति के आंतरिक हारमोन के स्राव भी अनियंत्रित होते हैं। जिसके चलते बीपी, मधुमेह, अवसाद इत्यादि जैसी भयंकर बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
कहने का भाव कि क्रोधी व्यक्ति तन और मन, दोनों से पीड़ित रहता है। क्रोध क्या है? साधारण शब्दों में कहें तो क्रोध एक अग्नि है। अग्नि का कार्य जलाना होता है। और जलने के पश्चात तो काला पड़ना ही होता है। हम कोई स्वर्ण थोड़ी न हैं, जो महापुरुषों की भाँति, तपस्या में जलने के पश्चात कुन्दन से हो जाते हैं। हम क्योंकि एक लकड़ी की भाँति से हैं, तो हमें तो जलने के पश्चात काला ही पड़ना होता है, या फिर सीधे राख होना पड़ता है। तो रावण जैसा क्रोधी तो पूरे जगत में ही नहीं है। निश्चित ही उसकी मुखाकृति भी बड़ी भयंकर व काली ही होगी। ऐसा ही संसार में भी होता है। आपने ऐसा अपने व्यवहार में आने वाले लोगों में भी देखा होगा, कि जो भी व्यक्ति क्रोधी होगा, उसके मुख पर सदैव अशांति प्रतीत होती होगी। निश्चित उसकी सूरत भी मनमोहक तो किसी भी प्रस्थिति में नहीं होगी। इसके पश्चात वीर अंगद कौन-सी प्रकार के मृत जीव की चर्चा करते हैं, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।
- सुखी भारती