इस साल मार्च के उत्तरार्ध में जब कोरोना वायरस का खौफ पूरी दुनिया में तेजी से फैला और पश्चिम की तर्ज पर कईं देशों ने लॉकडाउन लागू कर दिया तो पाकिस्तान से आई एक दिलचस्प तस्वीर दुनिया भर के अखबारों में छपी। कराची शहर से एक फोटो एजेंसी द्वारा जारी की गई इस तस्वीर में लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों को पुलिस ने सड़क के किनारे मुर्गा बनाया हुआ था। खासकर पश्चिमी देशों में यह तस्वीर इस बात के उदाहरण के तौर पर पेश की गई कि लॉकडाउन के नाम पर एशियाई देशों में लोगों के साथ किस तरह की सख्ती बरती जा रही है। पाकिस्तान ही नहीं भारत के बारे में भी यही राय बनाई जाती रही। अमेरिका में रहने वाले भारतीय अर्थशास्त्री रुचिर गुप्ता ने तो अपने एक लेख में यहां तक कहा कि दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन भारत में ही है। तमाम दूसरे दबावों के साथ ही ऐसी आलोचनाओं ने भी असर दिखाया और जल्द ही लॉकडाउन की सख्ती कम होने लगी। और अब तो हम लॉकडाउन की बजाए अनलॉक की तरफ बढ़ चले हैं।
लेकिन इस बीच सख्ती का विरोध करने वाले पश्चिमी देशों में भी अचानक ही सोच बदलने लग गई है। खासकर मास्क पहनने को लेकर वहां जिस तरह के प्रावधान किए जा रहे हैं और जिस तरह से जुर्माने लगाए जा रहे हैं वह बताता है कि कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर या दूसरे शब्दों में महामारी प्रबंधन को लेकर उनका नजरिया अब पूरी तरह बदलने लगा है। संक्रमण से बचने और बचाने के लिए मास्क जरूरी है यह धारणा तो पहले से ही थी, लेकिन यह माना जाता था कि सरकार का काम सिर्फ एडवाईज़री जारी करना है। मामला लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा है इसलिए वे खुद ब खुद इसका पालन करेंगे। लेकिन पिछले लगभग छह महीने के अनुभव ने उन्हें बता दिया कि सिर्फ एडवाईज़री जारी करना ही काफी नहीं है, बल्कि सरकार और प्रशासन को आगे बढ़कर इसके पालन में भी भूमिका निभानी होगी।
सिर्फ एडवाईज़री जारी करके मामले को लोगों पर छोड़ देने के पीछे दो वजहें थीं। एक तो ऐसे मामलों में सख्ती बरतने को परंपरागत रूप से जरूरी नहीं समझा जाता, बल्कि इसे गलत भी माना जाता रहा है। दूसरे यह भी माना जाता है कि यह कोई आपराधिक मामला नहीं है जो प्रशासन सख्त रवैया अपनाए। लेकिन यह सोच अब बदल गई है। अब इसे ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन जैसे हेलमेट न पहनना या सीटबैल्ट न लगाना जैसे मामलों की तरह देखा जाने लगा है। ये सब भी आपराधिक मामले नहीं हैं लेकिन यह माना जाता है कि इनका नियमों का उल्लंघन करने वाला अपने और समुदाय के बाकी लोगों के जीवन को खतरे में डालता है। इसीलिए ऐसे मामलों में आर्थिक दंड का प्रावधान होता है। इसी तरह के प्रावधान अब मास्क न लगाने के मामले में भी लागू किए जाने लगे हैं।
पिछले दो-तीन सप्ताह में यूरोप में जबसे कोविड-19 के मरीजों की तादात फिर से बढ़ने लगी है, वहां की सरकारों पर रणनीति को बदलने के लिए दबाव भी बढ़ा है। अब ज्यादातर यूरोपीय देशों ने सार्वजनिक स्थानों पर मास्क न पहनने के लिए भारी जुर्माने का प्रावधान या तो शुरू कर दिया है, या उस पर गंभीरता से विचार होने लगा है। सबसे ज्यादा सख्ती ब्रिटेन ने दिखाई है, अब वहां सार्वजनिक स्थलों पर मास्क न पहनने वाले को 3200 पौंड यानी तीन लाख रुपये से भी ज्यादा राशि तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। इतने ज्यादा जुर्माने की खासी आलोचना भी हो रही है लेकिन सरकार को लगता है कि लोगों को मास्क पहनने के लिए बाध्य करना है तो भारी जुर्माने का डर उन्हें दिखाना ही होगा। इसके मुकाबले इटली में जुर्माने की राशि कम है, वहां मास्क न पहनने के लिए आपको 400 यूरो यानी तकरीबन 35 हजार रुपये चुकाने पड़ सकते हैं। इटली ने न सिर्फ यह प्रावधान किया बल्कि लोगों से इसे वसूलना भी शुरू कर दिया है। यूरोपीय देशों से अलग अमेरिका के कई राज्यों ने भी मास्क न पहनने पर जुर्माना लगाना शुरू कर दिया है। इंडोनेशिया एशिया के ऐसे देशों में है जहां मास्क न पहनने के लिए भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
इनके मुकाबले भारत में जुर्माने का प्रावधान ज्यादा नहीं है। गुजरात ने इसके लिए एक हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान रखा है। दिल्ली में जुर्माने की राशि इसकी आधी है लेकिन वहां पुलिस ने इसके लेकर काफी बड़ा अभियान चलाया है और अभी तक 1.9 लाख लोगों से मास्क न पहनने के लिए जुर्माना वसूला जा चुका है। हालांकि देश के कई राज्यों ने न तो इसके लिए किसी जुर्माने का प्रावधान रखा है और न ही इसकी कोई तैयारी ही की है। हालांकि कई जगहों से ऐसे वीडियो जरूर सोशल मीडिया पर दिखे हैं जहां पुलिस लाठी-डंडे के बल पर लोगों को मास्क पहनने के लिए बाध्य कर रही है। इससे बेहतर तो शायद जुर्माने वाला रास्ता ही है।
-हरजिंदर