Jyotiraditya Scindia Birthday: विरासत की सियासत में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ऐसे बनाई अपनी जगह, आज मना रहे 53वां जन्मदिन

By अनन्या मिश्रा | Jan 01, 2024

बीजेपी की सियासत के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया आज यानी की 1 जनवरी को अपना 53वां जन्मदिन मना रहे हैं। सिंधिया को राजनीति अपने परिवार से विरासत में मिली है। राजनीति के नजरिए से देखें तो पिछले दो साल सिंधिया के लिए काफी महत्वपूर्ण रहे। मध्य प्रदेश से सबसे ज्यादा प्रभाव ग्वालियर के सिंधिया परिवार का रहा है। इसी परिवार से आने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मध्य प्रदेश राज्य के कद्दावर राजनेताओं में से एक हैं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

मुंबई में 1 जनवरी, 1971 को ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्म हुआ था। ज्योतिरादित्य सिंधिया, माधवराव सिंधिया के बेटे हैं। उनके पास राजशाही सियासत के साथ लोकतंत्र में भी काफी रसूख है। पिता माधवराव सिंधिया की मृत्यु के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक सफर कांग्रेस के साथ शुरू हुआ। लेकिन उन्होंने मध्यप्रदेश की सियासत में साल 2020 में सबसे बड़ा सत्ता परिवर्तन कर सबको चौंका दिया। यह सत्ता परिवर्तन राजनीतिक इतिहास में दर्ज हो गया।


सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद से उनके सितारे परवान पर चढ़ने लगे। साल 2021 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सियासी कद में तेजी देखी गई। ज्योतिरादित्य के परिवार में उनकी पत्नी, बेटा महाआर्यमन सिंधिया और बेटी अनन्या राजे हैं। उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया वड़ोदरा राजघराने की बेटी हैं। सिंधिया के राजनीतिक फैसलों में उनका काफी अहम योगदान माना जाता है।


मोदी सरकार में बढ़ा कद

भाजपा में शामिल होने के बाद 7 जुलाई 2021 ज्योतिरादित्य के लिए काफी अहम साबित हुआ। इस दिन वह मोदी सरकार में शामिल हो गए। जिसके बाद उन्होंने नागरिक उड्डयन जैसे अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। खास बात यह है कि उनके पिता भी नागरिक उड्डयन मंत्रालय के मंत्री थे। मोदी सरकार में सिंधिया अहम नेता हैं। उनको कई अहम प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी भी मिली है। साथ ही सिंधिया को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी शामिल किया गया है। पीएम मोदी के अलावा उनको राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की टीम का भी अहम हिस्सा माना जाता है।


साल 2021 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इतिहास बदल दिया। इस बदलाव को मध्य प्रदेश के सबसे बड़े बदलावों में एक माना जाता है। इस बात की चर्चा देश में बड़े स्तर पर हुई और आगे भी होती रहेगी। ग्वालियर स्थिति झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के समाधि स्थल पर पहुंचकर सिंधिया ने पुष्प अर्पित कर अपने विरोधियों को चारो खाने चित कर दिया। यह देश के सियासी इतिहास का बड़ा बदलाव माना जाता है। 


इसका एक कारण यह भी रहा कि सिंधिया घराने से कोई भी महाराज इससे पहले रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल पर नहीं गया था। क्योंकि लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद सिंधिया घराने पर देशद्रोह का आरोप लगा था। जब वह कांग्रेस में थे, तो भाजपा नेता इस मुद्दे पर खुलकर उनको घेरते थे। हांलाकि भाजपा ज्वाइन करने के बाद कांग्रेस नेताओं ने ज्योतिरादित्य पर निशाना साधना शुरू कर दिया। मोदी सरकार में शामिल होने के बाद से न सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद बढ़ा, बल्कि मध्य प्रदेश की सरकार में भी उनका रुतबा बढ़ता चला गया।


ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी सफर

पहली बार साल 2002 में ज्योतिरादित्य लोकसभा का उपचुनाव जीतकर सांसद बने।

फिर वह साल 2002, 2004, 2009 और 2014 में लगातार 4 बार लोकसभा चुनाव जीते।  

यूपीए सरकार में उन्होंने ऊर्जा राज्य मंत्री का कार्यभार संभाला।

चौदहवीं लोकसभा में सिंधिया कांग्रेस के मुख्य सचेतक रहे।

मध्य प्रदेश 2018 विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस प्रचार समिति के अध्यक्ष रहे।

फिर इसके बाद कांग्रेस के महासचिव बने।

इसके बाद भाजपा में शामिल होने के बाद वह राज्यसभा सांसद बने।

ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोदी सरकार में 6 जुलाई को कैबिनेट मंत्री बनाया गया।

सिंधिया भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं

वहीं मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराने में सिंधिया की अहम भूमिका मानी जाती है।


आपको बता दें कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनीं। तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने कमलनाथ पर विश्वास जताते हुए उन्हें सीएम बनाया। ऐसे में कमलनाथ और सिंधिया में तल्खी बढ़ने लगी। वहीं साल 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। 


बीजेपी में शामिल होने के फैसले में 22 विधायकों ने सिंधिया को समर्थन देते हुए कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़ लिया। जिससे कमलनाथ सरकार अल्पमत में आने के कारण गिर गई। कमलनाथ के इस्तीफे के बाद राज्य में भाजपा की सरकार बनी। 

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