By नीरज कुमार दुबे | Dec 16, 2019
नागरिकता संशोधन विधेयक अब कानून की शक्ल ले चुका है लेकिन उस पर देशभर के विभिन्न राज्यों में विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप लेता जा रहा है। उपद्रवियों के हंगामे और भड़काऊ नारेबाजी देखकर लगता है कि शायद सरकार सही से समझा नहीं पा रही या फिर उपद्रवी समझने के बावजूद समझना नहीं चाह रहे हैं कि यह कानून तीन देशों से आये प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने के लिए है ना किसी किसी भारतीय की नागरिकता वापस लेने के लिए। उपद्रवियों के हंगामों को देखकर यह बात आसानी से समझ आ जाती है कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी की जरूरत देश को क्यों थी। अराजकतावादियों ने जगह-जगह आगजनी करके और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुँचा कर, जनजीवन को बाधित कर दर्शा दिया है कि वह कतई जिम्मेदार नागरिक नहीं हैं और संविधान पर उनका विश्वास नहीं है। यदि संविधान पर विश्वास होता तो शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन करते और अदालत में गुहार लगाते। अदालत उनका पक्ष जरूर सुनती और सरकार से जवाब तलब करती। लेकिन जिस तरह दिल्ली में बसें फूँकी गयीं उसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाये। यह बसें करदाताओं की मेहनत की कमाई से खरीदी गयीं थीं। यदि एक बार इन बसों की कीमत इन प्रदर्शनकारियों से वसूल ली जाये तो भविष्य में कोई सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचायेगा।
अराजकतावादियों की साजिश
असम, पश्चिम बंगाल में तो चलिये मान लेते हैं नागरिकता संशोधन विधेयक का पहले से कुछ लोग विरोध कर रहे थे लेकिन जब यह विधेयक संसद में लाया गया और पारित कराया गया तब दिल्ली में तो विरोध की कोई आवाज ही नहीं थी। अचानक से क्या हुआ कि शनिवार को कांग्रेस की 'भारत बचाओ रैली' से एक दिन पहले शुक्रवार को दिल्ली के जामिया इलाके में माहौल तनावपूर्ण हो गया और लगातार तीन दिन तक पूरा इलाका विरोध प्रदर्शनों से गूँजता रहा ? साफ है कि यह चिँगारी उन लोगों ने भड़काई है जोकि अमन नहीं चाहते। ऐसे लोगों को विरोध का बस बहाना चाहिए। दिल्ली में जिस तरह मदरसों के बच्चों से मार्च निकलवाया गया, जिस तरह पत्थरबाजी की गयी, जिस तरह छात्रों से हिंसक आंदोलन करवाया गया, वह दर्शाता है कि कल तक कश्मीर में छात्रों और युवकों के मन-मस्तिष्क को अपने उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते रहे अराजकतावादी लोग दिल्ली तक पहुँच चुके हैं और देशभर में हिंसा का वातावरण पैदा कर भारत सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करना चाहते हैं। जरा इन प्रदर्शनकारियों से कोई पूछे कि क्या इन्हें नागरिका संशोधन विधेयक के बारे में कुछ पता भी है या सिर्फ 'आदेश' पाकर विरोध करने निकल पड़े हैं।
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देश की अर्थव्यवस्था है निशाने पर
माना जाता है कि किसी देश को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाना हो तो उसकी अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचाओ। इसी मिशन पर यह अराजकतावादी लगे हुए हैं। एक सुनियोजित प्रयास चलाया जा रहा है कि देश का माहौल बिगड़े जिससे वैश्विक मंदी से प्रभावित भारत की अर्थव्यवस्था को घरेलू कारणों से भी बड़ा नुकसान हो। एक सुनियोजित प्रयास चलाया जा रहा है कि भारत सरकार पर साम्प्रदायिक होने का ठप्पा लगे और उसकी छवि को वैश्विक स्तर पर प्रभावित किया जा सके। एक सुनियोजित प्रयास चलाया जा रहा है कि भारत में बाहरी निवेश रुके, जो उद्योग-धंधे चल रहे हैं उन्हें भी प्रभावित किया जाये ताकि महंगाई, बेरोजगारी की समस्या और भड़के। पिछले पाँच सालों में जिस तरह देश की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ी है और दशक भर के इंतजार के बाद भारत की रेटिंग सुधरी...देश 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर आगे बढ़ा...वह सब निश्चित रूप से कइयों को पसंद नहीं आया होगा। जो लोग जनता के वोट की ताकत के आगे बेबस हो गये वही अब बसें फूँकने, ट्रेनें रोकने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने में लगे हैं।
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खेल को समझना होगा
बात किसी पार्टी या पक्ष की नहीं है लेकिन एक तथ्य पर जरा गौर करें तो सारा खेल समझ आ जायेगा। असम में जबसे भाजपा सरकार बनी है तबसे यह राज्य और पूरा पूर्वोत्तर लगभग शांत है। वरना असम में धमाकों और मणिपुर में अनिश्चितकालीन बंद की खबरें आम रहती थीं। नगा समस्या भी गंभीर होती चली जा रही थी। सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती थीं। असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लाया गया और सारा काम न्यायालय की निगरानी में हुआ। सरकार ने भी माना कि एनआरसी में कुछ खामियाँ रह गयी हैं जिन्हें दुरुस्त किया जायेगा। जब न्यायालय की निगरानी में एनआरसी की कार्यवाही के दौरान बड़ी संख्या में लोग अवैध नागरिक पाये गये तो भारत सरकार ने ही कहा कि उन्हें अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के और मौके दिये जाएंगे। किसी को एकदम से बाहर नहीं किया गया। क्या यह तथ्य इस सरकार पर विश्वास बढ़ाने के लिए काफी नहीं है ? एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक से किसी वैध नागरिक को डरने की जब जरूरत ही नहीं है तो हंगामा किस बात का? जाहिर-सी बात है कि हंगामा वही लोग कर रहे हैं जो गलत हैं। सरकार कई बार स्पष्ट कर चुकी है कि नागरिकता संशोधन कानून नागरिकता देने का कानून है, लेने का नहीं, तो हंगामा किस बात का ? पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों, क्षेत्रों को तो आईएलपी के जरिये नागरिकता संशोधन विधेयक से बाहर भी रखा गया और सरकार अब भी कह रही है कि हम इसमें जरूरी संशोधन करने के लिए तैयार हैं तो हंगामा करने वालों को भी मान जाना चाहिए और शांतिपूर्ण जीवन जीने के आम आदमी के अधिकार को बाधित नहीं करना चाहिए।
पश्चिम बंगाल में हंगामे का कारण
पश्चिम बंगाल का जहाँ तक मामला है तो वहाँ हो रहे हंगामे के कारणों को समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये रह रहे हैं, वह अपना राशन कार्ड बनवा चुके हैं, मतदाता पहचान पत्र बनवा चुके हैं और सभी प्रकार की सुविधाएँ हासिल कर रहे हैं। उन्हें डर है कि आज तो नागरिकता संशोधन विधेयक आया है और कल को एनआरसी भी आयेगा। यदि आज विरोध पर नहीं उतरे तो कल बाहर होना पक्का है। इस विरोध की आवाज को सत्तारुढ़ पार्टी की ओर से भी हवा दिये जाने की रिपोर्टें हैं तो जाहिर है यह और भड़केगा ही। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों से पहले ध्रुवीकरण कराने के प्रयास किये जा रहे हैं। लोकसभा चुनावों में जिस प्रकार भाजपा को जोरदार समर्थन मिला है और हाल के विधानसभा उपचुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा, उससे तृणमूल कांग्रेस चौकन्नी हो गयी है। असम और बंगाल के कुछ जिलों का जिस तरह जनसंख्या अनुपात बिगड़ा है यदि उस समस्या से सही समय पर नहीं निपटा जाता तो हालात और बिगड़ सकते थे।
सेना का क्या मानना है ?
जरा फरवरी 2018 में सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का बयान देख लीजिये, सबकुछ समझ आ जायेगा। सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने चीन और पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा था, 'ये दोनों देश भारत की शांति और मजबूती को हिला नहीं पा रहे हैं। इसलिए चीन ने प्रॉक्सी वॉर का रास्ता चुना है।' इतना ही नहीं उत्तरी पूर्व के रास्ते भारत आने वाले शरणार्थियों को आर्मी चीफ ने चीन की चाल बताया। उनका कहना था कि चीन की मिलीभगत से भारत में पाकिस्तान इस रास्ते अपने आतंकी भेज रहा है। असम की राजधानी गुवाहाटी में उत्तर पूर्व में सीमा सुरक्षा को लेकर हुए एक सेमिनार में आर्मी चीफ ने यह बात कही थी। उन्होंने असम के कई जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि की खबरों का हवाला देते हुए बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ की भी चर्चा करते हुए कहा था कि राज्य में उसका उभार 1980 के दशक से भाजपा के विकास से अधिक तेज रहा है।
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यह नहीं जरा ईस्टर्न कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ ले. ज. अनिल चौहान का इसी 15 दिसम्बर को दिया गया बयान देखिये। ले. ज. चौहान ने कोलकाता में मीडिया से बातचीत में कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून बहुत समय से लंबित मुद्दा था जिसे आखिरकार केंद्र सरकार ने सुलझा दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि वर्तमान सरकार कड़े निर्णय लेने वाली सरकार है और उन मुद्दों को सुलझा रही है जो देश के समक्ष काफी वक्त से लंबित हैं।
बहरहाल, सभी राजनीतिक पार्टियों और संगठनों को चाहिए कि किसी भी प्रकार की अफवाह को हवा नहीं दें और देश की कानून व्यवस्था को बनाये रखने में सरकार का पूरा साथ दें। हिंसा की आग में राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि एक चिंगारी उनका भी काम तमाम कर सकती है। गांधी के इस देश में शांति बनी रहनी चाहिए। हम पड़ोसी देशों के अस्थिर माहौल पर चर्चा करते-करते अपने देश के माहौल को अस्थिर नहीं बननें दें, यह हर भारतीय का प्रयास होना चाहिए।
-नीरज कुमार दुबे