By नीरज कुमार दुबे | Nov 01, 2023
राजस्थान का हालिया राजनीतिक इतिहास हर चुनाव के बाद सरकार बदलने का रहा है इसलिए जहां भाजपा इस बार सत्ता में अपने आगमन को तय मान कर चल रही है वहीं राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सत्ता में दोबारा वापसी कर इतिहास बदलने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं। किसकी मेहनत रंग लायेगी या किसका भाग्य चमकेगा यह तो तीन दिसंबर को आने वाले जनादेश से पता चल ही जायेगा। लेकिन इस बार की चुनावी फिजां को देखें तो बयार कुछ बदली-बदली-सी नजर आती है। सत्ता की प्रबल दावेदार भाजपा की बात करें तो यहां मुख्यमंत्री पद के कई तगड़े दावेदारों के चलते वसुंधरा राजे का तीसरी बार मुख्यमंत्री बनना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है।
वसुंधरा राजे
देखा जाये तो वसुंधरा राजे 20 साल से राजस्थान में पार्टी की शीर्ष नेता रही हैं। 2003 में वह पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं और उसके बाद से हर चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा गया है लेकिन इस बार उन्हें पार्टी ने मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी नहीं बनाया है। वसुंधरा राजे ने नेतृत्व हासिल करने के लिए पार्टी आलाकमान पर दबाव तो काफी बनाया था लेकिन जब उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली तो अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को भाजपा का टिकट दिलाने पर उन्होंने जोर दिया ताकि सरकार बनने की स्थिति आने पर मुख्यमंत्री के नाम के लिए ज्यादा से ज्यादा विधायक उनके समर्थन में खड़े हो सकें।
देखा जाये तो वसुंधरा राजे जिस तरह पिछले पांच साल तक पार्टी के कार्यक्रमों से लगभग दूरी बनाये रहीं उसी को देखते हुए पार्टी ने भी चुनाव के समय उन्हें महत्वपूर्ण फैसलों से दूर ही रखा। हाल ही में राजस्थान में भाजपा की परिवर्तन यात्राओं में भी वसुंधरा राजे की भूमिका पहले जैसी नहीं रखी गयी थी। पार्टी आलाकमान जानता है कि पिछले चुनावों में राजस्थान में जनता ने 'मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं' जैसे नारे लगाये थे इसलिए इस बार वसुंधरा राजे को नेतृत्व देने से परहेज कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है। भाजपा ने अपने सात सांसदों को भी विधानसभा चुनाव के मैदान में उतार कर साफ संकेत दे दिया है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी की ओर से सिर्फ वसुंधरा राजे ही नहीं और भी भारी भरकम राजनीतिक कद वाले नेता मैदान में हैं। तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल वसुंधरा राजे को इस बार पार्टी के युवा नेताओं से खूब चुनौतियां मिल रही हैं। इसके अलावा यह भी बताया जा रहा है कि पार्टी को यह खूब अखरा है कि सतीश पूनियां के राजस्थान भाजपा अध्यक्ष रहते हुए वसुंधरा राजे ने 2019 से 2023 तक पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बनाये रखी थी और सिर्फ वसुंधरा ही नहीं बल्कि उनके समर्थक नेता भी पार्टी से दूरी बनाये हुए थे।
राजेन्द्र राठौड़
माना जा रहा है कि यदि वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद नहीं मिलता है तो वह अपने करीबी नेता राजेन्द्र राठौड़ का नाम आगे कर सकती हैं। राजेन्द्र राठौड़ वर्तमान में राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। वह लगातार सात बार से विधायक हैं और 90 के दशक से अब तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं। वह राज्य मंत्रिमंडल में कई बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं। छात्र राजनेता के रूप में कॅरियर शुरू करने वाले राजेन्द्र राठौड़ ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में भी काम किया है और वसुंधरा राजे के करीबियों में भी वह गिने जाते हैं। बड़े राजपूत नेता के रूप में स्थापित राजेन्द्र राठौड़ हालांकि विपक्ष के नेता हैं लेकिन वह कभी यह नहीं कहते कि वह मुख्यमंत्री पद की रेस में हैं। विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने अशोक गहलोत सरकार को कानून व्यवस्था की खामियों और पेपर लीक मामलों में जोरदार तरीके से घेरा था। इस बार उनको चुरु की बजाय तारानगर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है लेकिन यहां भी उनकी जीत की संभावनाएं प्रबल हैं क्योंकि वह पहले भी एक बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। साथ ही इस पूरे क्षेत्र में उनका अच्छा प्रभाव माना जाता है जिसके चलते वह राजपूतों के अलावा मुस्लिमों और जाटों के वोट हासिल करने में भी सफल रहते हैं।
सतीश पूनियां
इसके अलावा सतीश पूनियां भी मुख्यमंत्री पद की रेस में हैं। वह राजस्थान में तीन वर्षों तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे लेकिन उनका सारा कार्यकाल विपक्षी नेता के रूप में ही बीता। भाजपा अध्यक्ष के रूप में उन्होंने विपक्ष की भूमिका का प्रभावी ढंग से निवर्हन किया और लगातार विभिन्न मुद्दों को लेकर राजस्थान सरकार को घेरते रहे। 2023 की शुरुआत में उन्हें पद से हटाकर सीपी जोशी को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बना दिया गया था लेकिन सतीश पूनियां ने पार्टी का फैसला चुपचाप स्वीकार कर लिया था। जाट नेता सतीश पूनियां आमेर से आते हैं जहां उनका अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। वर्तमान में वह विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष पद पर हैं। सतीश पूनियां हालांकि कई चुनाव हारने के बाद पिछले चुनावों में पहली बार विधायक बने थे लेकिन इससे पहले उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता युवा मोर्चा आदि में विभिन्न पदों पर काम किया हुआ है और वह आरएसएस के करीबियों में शुमार बताये जाते हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर रहने के दौरान उनकी कभी भी वसुंधरा राजे से नहीं बनी। दोनों नेताओं के संबंध तब और बिगड़ गये थे जब सतीश पूनियां ने वसुंधरा के कुछ समर्थकों को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से हटा दिया था और वसुंधरा के विरोधियों को तवज्जो देना शुरू कर दिया था।
सीपी जोशी
इसके अलावा सीपी जोशी की बात करें तो चित्तौड़गढ़ के सांसद का चयन जब इस साल मार्च में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए किया गया था तो सभी चौंक गये थे। ब्राह्मण समुदाय से आने वाले सीपी जोशी इस बार के विधानसभा चुनावों में बहुत अहम भूमिका में हैं। पार्टी अध्यक्ष के नाते यह उनकी जिम्मेदारी है कि भाजपा सत्ता में आये, इसके लिए वह कड़ी मेहनत भी कर रहे हैं। सीपी जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ तो पूरे प्रदेश का दौरा कर ही रहे हैं साथ ही पार्टी संगठन से भी तालमेल बनाकर चुनाव अभियान का संचालन कर रहे हैं। ऐसी अटकलें हैं कि यदि भाजपा की सरकार बनती है तो सीपी जोशी के हाथ में राज्य का नेतृत्व उसी तरह आ सकता है जैसे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के लिए उनका नाम आगे आया था।
गजेंद्र सिंह शेखावत
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की बात करें तो हाल के वर्षों में राज्य की राजनीति में उनका तेजी से उभार हुआ है। वह पार्टी आलाकमान के प्रिय इसलिए भी माने जाते हैं क्योंकि वह हमेशा अशोक गहलोत को निशाने पर लिये रहते हैं। गजेंद्र सिंह शेखावत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर से आते हैं और पिछले लोकसभा चुनावों में उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे को ही चुनाव हराया था। राजस्थान से जुड़े मुद्दों पर भी जिस तरह भाजपा की ओर से गजेंद्र सिंह शेखावत अक्सर पार्टी का पक्ष रखते हैं उससे संकेत मिलते हैं कि पार्टी उन्हें राजस्थान के मामलों में और बड़ी भूमिका दे सकती है। गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए भी सामने आया था लेकिन वसुंधरा राजे की ओर से किये गये तगड़े विरोध के चलते वह पीछे रह गये थे। राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत के समय भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा के जिन नेताओं पर राज्य सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया था उनमें एक नाम गजेंद्र सिंह शेखावत का भी था।
बहरहाल, देखना होगा कि भाजपा की सरकार बनने पर इन पांच नामों में से ही किसी एक को नेतृत्व सौंपा जाता है या कोई नया चौंकाने वाला नाम आ सकता है। वैसे भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ का नाम भी खूब चल रहा है। खैर...अब सभी निगाहें तीन दिसंबर पर हैं जिस दिन जनता का जनादेश सबके सामने आयेगा।