इसरो के चंद्रयान-3 अभियान की सफलता के पीछे कई बड़े कारक रहे

By अशोक मधुप | Aug 24, 2023

हम भारतीयों के लिए धर्म प्रधान है। आस्थाएं सर्वोपरि हैं। ईश्वर सबसे बड़ा है। विज्ञान ईश्वर को नहीं मानता पर भारत के निवासी ही नहीं भारत के वैज्ञानिक भी ईश्वर को मानते हैं। प्रत्येक अच्छा कार्य करने से पूर्व कार्य की सफलता के लिए सब ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। अपने कार्य की सफलता के लिए आशीर्वाद भी लेते हैं। ऐसा ही चंद्रयान के साथ हुआ। चंद्रयान छोड़ने से पूर्व ईश्वर से इसकी सफलता के लिए प्रार्थना की गई तो चंद्रयान के चांद पर सफलतापूर्वक उतरने के लिए उतरने के अंतिम दिन 23 अगस्त को पूरे देश ने सामूहिक प्रार्थना की। किसी ने हवन किया। किसी ने पूजन। अनेक व्यक्तियों ने दुआएं कीं। भारत का  चंद्रयान-3 चांद पर सफलतापूर्वक उतर गया। चंद्रयान तीन की सफलता को क्या माना जाए। विज्ञान की कामयाबी, प्रभु की कृपा या दुनिया भर में बसे भारतीयों की दुआ का असर, या चंद्रयान-3 की इस कामयाबी में तीनों का हाथ स्वीकारा जाए। मान लिया जाए कि चंद्रयान के सफलतापूर्वक चांद पर पहुंचने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत, ईश्वर की कृपा और भारतीयों की दुआ, सबका मिला−जुला असर रहा। इन्हीं तीन की बदौलत ये कामयाबी की कथा लिखी गई।


14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से यात्रा शुरू करने वाले लगभग 615 करोड़ रुपये की लागत से बने चंद्रयान-3 के पूरे सफर ने पहले दिन से प्रत्येक भारतीय को अपने से जोड़े रखा। दुनिया भर से वैज्ञानिक और करोड़ों लोग टकटकी लगाए इस सफर से लगातार जुड़े रहे। लगभग 41 दिनों की अद्भुत व अविस्मरणीय यात्रा के बाद, 23 अगस्त 2023 का दिन, शाम छह बजकर चार मिनट के आसपास चंद्रयान-3 ने चाँद के साउथ पोल पर सफल लैंडिंग कर विश्वपटल पर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। इसकी सफलता के लिए देशवासियों ने इसरो के सभी वैज्ञानिकों और कर्मचारियों को   बधाई दी। भारत की इस सफलता के लिए दुनिया में प्रशंसा हो रही है।

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14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से यात्रा शुरू करने वाले चंद्रयान-तीन की इसरो ने पृथ्वी से दूर कई बार कक्षाएं बदली थीं। पांच अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। छह, नौ, चौदह और सोलह अगस्त को कक्षाओं में बदलाव कर यह चंद्रमा के और नजदीक पहुंचा। सत्रह अगस्त को चंद्रयान-तीन के प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग-अलग हो गए। लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ा। 18 और 19 अगस्त को दो बार डीबूस्टिंग (धीमा करने की प्रक्रिया) के बाद लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) से युक्त लैंडर मॉड्यूल चाँद की सबसे करीबी कक्षा में पंहुचा। इस असंभव लगने वाली चंद्रयान-तीन की यात्रा को आख़िरकार चुनौतियों के बावजूद भी पूरा कर लिया। इस सफलता से इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक जहां खुशी में झूम उठे। वहीं देशवासियों ने कई जगह आतिशबाजी छोड़ी। मिठाई बांटी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो शुरू से ही इस अभियान से जुड़े रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग देखने के लिए जोहानिसबर्ग से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इसरो की टीम से जुड़े। सफल लैंडिंग के तुरंत बाद, प्रधानमंत्री ने इसरो की टीम को संबोधित किया और उन्हें इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए बधाई दी। प्रधानमंत्री ने उल्लास से भरे राष्ट्र से कहा, “यह क्षण अविस्मरणीय, अभूतपूर्व है।....प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों को उद्धृत करते हुए कहा, ‘भारत अब चांद पर है!’ उन्होंने कहा कि हम अभी नए भारत की पहली उड़ान के साक्षी बने हैं।


प्रधानमंत्री ने बताया कि वह इस समय ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जोहानिसबर्ग में हैं, लेकिन हर नागरिक की तरह उनका मन भी चंद्रयान-3 पर लगा हुआ था। प्रधानमंत्री ने टीम चंद्रयान, इसरो और वर्षों तक अथक परिश्रम करने वाले देश के सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी और उत्साह, आनंद और भावना से भरे इस अद्भुत पल के लिए 140 करोड़ देशवासियों को भी बधाई दी! प्रधानमंत्री ने कहा, “हमारे वैज्ञानिकों के समर्पण और प्रतिभा से भारत चंद्रमा के उस दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच गया है, जहां आज तक दुनिया का कोई भी देश नहीं पहुंच सका है।” उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि आज के बाद से चंद्रमा से जुड़े सभी मिथक और कथानक बदल जायेंगे और नई पीढ़ी के लिए कहावतों के नए अर्थ हो जायेंगे। भारतीय लोककथाओं का उल्लेख करते हुए जहां पृथ्वी को ‘मां’ और चंद्रमा को ‘मामा’ माना जाता है, प्रधानमंत्री ने कहा कि चंद्रमा को बहुत दूर भी माना जाता है और इसे ‘चंदा मामा दूर के’ कहा जाता है, लेकिन वह समय दूर नहीं है जब बच्चे कहेंगे ‘चंदा मामा एक टूर के’ यानी चांद बस एक यात्रा की दूरी पर है।

प्रधानमंत्री ने विश्वास जताया कि चंद्रयान महाअभियान की उपलब्धियां भारत की उड़ान को चंद्रमा की कक्षाओं से आगे ले जायेंगी। पीएम मोदी ने कहा, “हम अपने सौर मंडल की सीमाओं का परीक्षण करेंगे और मानवता के लिए ब्रह्मांड की अनंत संभावनाओं को साकार करने के लिए काम करेंगे।” प्रधानमंत्री ने भविष्य के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने के बारे में प्रकाश डाला और बताया कि इसरो जल्द ही सूर्य के विस्तृत अध्ययन के लिए ‘आदित्य एल-1’ मिशन लॉन्च करने जा रहा है। उन्होंने शुक्र ग्रह को भी इसरो के विभिन्न लक्ष्यों में से एक बताया। प्रधानमंत्री ने मिशन गगनयान, जहां भारत अपने पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिए पूरी तरह से तैयार है, पर प्रकाश डालते हुए कहा, “भारत बार-बार यह साबित कर रहा है कि आकाश की सीमा नहीं है।”


अब तक चांद पर अमेरिका, रूस और चीन ही पहुँचे थे। भारत चांद पर पंहुचने वाला चौथा देश और चांद के साउथ पोल पर उतरन वाला पहला देश बन गया। इस उपलब्धि से स्पेस मार्किट में भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गई हैं। भारत ने स्पेस में अमेरिका सहित कई बड़े देशों का एकाधिकार तोड़ा है। पूरी दुनिया में सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविज़न प्रसारण, मौसम की भविष्यवाणी और दूरसंचार का क्षेत्र बहुत तेज गति से बढ़ रहा है क्योंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं, इसलिए संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में बढ़ोतरी हो रही है। इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में चंद्रयान-3 की कम बजट में सफल लैंडिंग के बाद व्यवसायिक तौर पर भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गयी हैं। कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। भारत अब 200 अरब डालर के अंतरिक्ष बाजार में एक महत्वपूर्ण देश बनकर उभरा है। चांद और मंगल अभियान सहित अपने 100 से ज्यादा अंतरिक्ष अभियान पूरे करके इसरो पहले ही इतिहास रच चुका है। भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी क्योंकि यह अरबों डालर की मार्किट है। कुछ साल पहले तक दूसरे देशों की स्पेस कंपनी की मदद से भारत अपने उपग्रह छोड़ता था पर अब वह ग्राहक की बजाय साझीदार की भूमिका में पहुंच गया है। अब तो वह दूसरे देशों की सेटलाइट लांच कर रहा है। इसी तरह भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे यान अंतरिक्ष यात्रियों को चांद, मंगल या अन्य ग्रहों की सैर करा सकेंगे। इसरो के मून मिशन, मंगल अभियान, स्वदेशी स्पेस शटल की कामयाबी और अब चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो के लिए संभावनाओं के नये दरवाजे खुल जाएंगे, जिससे भारत का निश्चित रूप से स्पेस में वर्चस्व पहले से अधिक बढ़ जाएगा।


इस सफलता के लिए अजमेर दरगाह के आध्यात्मिक प्रमुख दीवान सैयद जैनुल आबेदीन ने कहा कि चन्द्रयान-3 की सफलता भारत का सम्मान और गौरव है। भारतीय होने के नाते वह भी गौरवान्वित व धन्य महसूस कर रहे हैं। जयपुर वैक्स म्यूजियम (जयपुर मोम संग्रहालय) ने पर्यटकों के साथ चन्द्रयान-3 के चंद्रमा पर उतरने का जश्न मनाया। इस अद्भुत ऐतिहासिक क्षण का स्पेस शटल के टीवी सेट पर सीधा प्रसारण किया गया। स्पेस सूट पहने बच्चों ने पूरे दिन तिरंगे के साथ तस्वीरें खिंचवाईं। कई दिन से भारतवासियों निगाहें चंद्रयान-3 की तरफ टिकी हुई थीं। जगह-जगह लोग चंद्रयान की सफल लैंडिंग को लेकर प्रार्थना कर रहे थे।


मिशन चंद्रयान-3 के चांद पर उतरने के दिन तो इसकी सफलता के लिए देशभर में प्रार्थनाएं की गई। यज्ञ हुए। दुआएं हुईं। पाकिस्तान से आई सीमा हैदर ने चंद्रयान-तीन की सफलतापूर्वक लैंडिंग के लिए व्रत रखा। कहा– इससे हमारे देश का दबदबा होगा कायम होगा।


अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख एस सोमनाथ ने 'चंद्रयान-3' मिशन के प्रक्षेपण से पहले सुल्लुरपेटा स्थित श्री चेंगलम्मा परमेश्वरिनी मंदिर में पूजा-अर्चना की। काली टी-शर्ट पहने सोमनाथ ने श्रीहरिकोटा से 22 किलोमीटर पश्चिम में तिरुपति जिले में स्थित मंदिर में पूजा की। पूजा और दर्शन के बाद सोमनाथ ने कहा, 'मुझे चेंगलम्मा देवी के आशीर्वाद की जरूरत है... मैं यहां प्रार्थना करने और इस मिशन की सफलता के लिए आशीर्वाद लेने आया हूं।'


23 अगस्त की शाम 40 दिन का भारत का इंतजार आखिरकार खत्म हुआ। पृथ्वी से चंद्रमा तक 3.84 लाख किलोमीटर का सफर तय करने के बाद चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा की धरती पर कामयाबी के साथ उतर गया। इसी के साथ भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला रूस, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा देश बन गया है। वहीं, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश बनकर इतिहास रच दिया।


भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रयान एक और दो के समय भी मेहनत की थी। दोनों अभियानों की सफलता के लिए उस समय भी भारतीयों ने दुआ की थी। पर वे अभियान कामयाब नही हुए। लगता है कि उस समय प्रभु की कृपा नहीं थी। इस बार लोगों की दुआओं के अलावा इसरो के वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और भारतीयों पर ईश्वर की कृपा भी थी। इसीलिए ये अभियान कामयाब रहा।


-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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