By अनन्या मिश्रा | Oct 03, 2024
दुर्गासप्तशी का वर्णन
मार्कण्डेय पुराण में मां भगवती के अलग-अलग रूपों का वर्णन मिलता है। इस पाठ को नवचंडी, शतचंडी और चंडीपाठ भी कहा जाता है। अगर कोई व्यक्ति मानसिक, पारिवारिक और असाध्य रोग से पीड़ित है, तो दुर्गा सप्तशती का पाठ लाभकारी होता है। इस पाठ को करने से परिवार में बनी नकारात्मक शक्ति और ऊपरी बाधा का अंत होता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से हर तरह की परेशानी का अंत होता है। देवी भगवती पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है कि ऐश्वर्यकामी राजा सुरथ ने अपने अखंड साम्राज्य को प्राप्त किया था। हालांकि इसका पाठ करने के दौरान व्यक्ति को कई तरह के नियमों का पालन करना पड़ता है।
ऐसे करें दुर्गासप्तशी का पाठ
दुर्गासप्तशती का पाठ करने वाले जातक को अपना मन एकाग्र रखना होता है। रोजाना पाठ करने वाले जातक को शुद्ध भोजन करना चाहिए और लाल वस्त्र पहननें चाहिए। वहीं ललाट पर भस्म या लाल चंदन लगाएं और एक समय भोजन करें। यदि हो सके तो फलाहार करें।
दुर्गासप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करें और फिर अपने कुलदेवता की पूजा करें। अगर आपके घर के मंदिर में कलश स्थापना की है, तो उसका पूजन करें और माता रानी को भोग लगाएं। इसके बाद पाठ करना आरंभ करें।
पाठ करने वाले व्यक्ति को दुर्गा सप्तशती की किताब को लाल कपड़े में लपेटकर केले के पत्ते पर रखना चाहिए। वहीं पाठ करने से पहले पुस्तक का पूजन करें और फिर पाठ की शुरूआत करें।
दुर्गासप्तशती में 13 अध्याय हैं और कुल 700 श्लोक हैं। इसके अलावा किताब में कुछ विशेष पाठ हैं, जिनका पाठ करने से जातक के जीवन की परेशानियां दूर होती हैं और उसके सभी कार्य बनने लगते हैं।
अगर आप दुर्गासप्तशती का पूर्ण पाठ नहीं कर सकते हैं, तो चरित्र पाठ का पाठ करें। इसमें पूरे पाठ को चरित्र में दिया गया है। इससे पाठ करने वाले को आसानी होगी। इसे तीन चरित्र में बाटा गया है। जिसमें प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र और उतर चरित्र है। अगर आप इसका भी पाठ नहीं कर सकते हैं, तो आप अध्याय पाठ कर सकते हैं।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय उच्चारण का खास ध्यान रखना चाहिए। उच्चारण गलत नहीं होना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले कवच, अर्गला और कीलक का पाठ करें। पाठ को अधूरा छोड़कर न उठें, इससे आपको फल नहीं प्राप्त होगा।
दुर्गा सप्तशती का पाठ समाप्त होने के बाद सिद्धिकुंजिका का पाठ करें और फिर निर्वाण मंत्र का जाप कर पूजन व आरती करें। अब शंख बजाकर माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त करें।
पूजा खत्म होने के बाद पूजा में होने वाली भूलचूक के लिए क्षमा प्रार्थना करें। वहीं माता रानी से आग्रह करें कि मेरे द्वारा किए गए अपराधों को क्षमा कर कृपा बनाएं।