By रितिका कमठान | Dec 26, 2022
पुरुष प्रधान भारत में घर परिवार में बेटों को तरजीह दी जाती है। यहां फैसले लेने का हक पहले पिता फिर समय बीतने के साथ घर के बेटों को दिया जाता है। बड़े स्तर पर मॉडर्न कहे जाने वाले परिवारों में भी अहम फैसलों को लेने का अधिकार पिता या घर के पुरुष के पास होता है। मगर भारत में ऐसा समुदाय भी है जहां बेटियां ना सिर्फ फैसले लेती हैं बल्कि बेटे का हर फर्ज भी निभाती है।
भारत के पुरुष प्रधान समाज के लिए ये काफी अनोखी बात है मगर खासी समुदाय ऐसा समाज है जहां बेटी के हाथ में परिवार की सत्ता होना काफी आम है। ये ऐसा समाज है जो पूरे भारत देश के उलट चलता है। एक तरफ जहां भारत में पितृसत्तात्मक व्यवस्था का पालन किया जाता है वहीं खासी समुदाय में ऐसा नहीं होता है। आमतौर पर खासी समुदाय के लोग मेघालय या असम में रहते है।
जानकारों के मुताबिक खासी समुदाय ऐसा समुदाय है जहां बेटे नहीं बल्कि बेटी होने पर खुशियां मनाई जाती है। घर की देखरेख की हर जिम्मेदारी लड़कियों के कंधों पर होती है। यहां तक की शादी के बाद दुल्हन की विदाई भी नहीं की जाती बल्कि दूल्हा दूसरे घर बसने जाता है।
मां का नाम आगे ले जाती हैं बेटियां
एक तरफ जहां भारत में पत्नी और बेटियां अपने पिता के नाम को आगे ले जाती है वहीं खासी समुदाय में बेटियां मां का नाम आगे ले जाती है। यहां घर परिवार की संपूर्ण जिम्मेदारी बेटों की जगह बेटियों पर होती है। ऐसे में ये समाज महिला प्रधान समाज भी कहा जाता है। इस समाज में महिलाओं के कंधों पर सिर्फ घर ही नहीं बल्कि घर के बाहर की भी पूरी जिम्मेदारी होती है। महिलाएं सिर्फ किचन में रहकर खाना पकाने की जगह दुकानों और बाजारों का काम भी संभालती है। बच्चों के नाम के आगे पिता का नहीं बल्कि मां का नाम जोड़ा जाता है। बेटी के पैदा होने पर मिठाईयां दी जाती है।
संपत्ति की वारिस हैं बेटियां
एक तरफ जहां आम लोग बेटियों को संपत्ति में थोड़ा सा हिस्सा देकर खुद को मॉडर्न समझते हैं वहीं दूसरी ओर खासी समुदाय में संपत्ति बेटियों के नाम की जाती है। खास बात है कि परिवार में बड़ी नहीं बल्कि छोटी बेटी को सबसे अहम जिम्मेदारी दी जाती है। घर की छोटी बेटी पर माता पिता की जिम्मेदारी होती है। इसके अलावा छोटी बेटी ही भाई बहनों समेत पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठाती है।