मोदी का विरोध करते करते कुछ लोग अब देश के विरोध में उतर आये हैं

By अजय कुमार | Jan 20, 2020

कई दशकों से तुष्टिकरण की सियासत करने वाले दलों और नेताओं को देश की जनता ने आईना दिखाते हुए 2014 में जब हासिए पर ढकेल दिया था तब भी भाजपा और उसके चाहने वालों को इस बात का अच्छी तरह से अहसास था कि आम चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने वाली भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए सरकार चलाना आसान नहीं होगा। मोदी विरोधियों ने पूरे पांच साल तक मोदी सरकार की नाक में दम करे रखा, लेकिन मोदी विरोधियों की कुटिल सियासत को दरकिनार करके देश की जनता ने 2019 में जब पुनः बीजेपी और मोदी को प्रचंड बहुमत दिलाया तो, मोदी विरोधी ब्रिगेड और वह शक्तियां जो लगातार साजिश रचा करती थीं कि भाजपा नहीं जीते, भले सपा-बसपा, कांग्रेस अथवा और कोई कोई दल जीत जाए। भाजपा को हराने के लिए फतवे जारी होते थे। परंतु जब कोई पैंतरा काम नहीं आया तो अब मोदी विरोधी ताकतें उनका विरोध करते-करते देश का विरोध करने लगी हैं। इसीलिए तो तुष्टिकरण की सियासत करने वाले वह दल और ताकतें जो खुल कर पाकिस्तान के पक्ष में नहीं बोल पाती थीं, अब सीएए की आड़ में पाकिस्तान, बंग्लादेश और अफगानिस्तान के मुसलमानों को हिन्दुस्तान में बसाने के लिए नये-नये हथकंडे अपना रहे हैं। एनपीआर और एनआरसी का भूत खड़ा किया जा रहा है। जनता ही नहीं छोटे-छोटे बच्चों को भी बरगला कर धरना-प्रदर्शन और हिंसा की आग में झोंका जा रहा है। मोदी विरोध करने वालों को समर्थन का दिखावा करके वह कथित बुद्धिजीवी ताकतें भी अपनी दुश्मनी निकाल रही हैं जिनका मोदी के भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस के चलते ‘हुक्का-पानी’ यानी नंबर दो की कमाई का जरिया बंद हो गया है। इसमें वह एनजीओ भी शामिल हैं जो समाज सेवा का नकाब पहन कर विदेशों से चंदा और मोटी मदद हासिल करके स्वयं तो ऐश करते थे और गरीब जनता को कभी बिरयानी तो कभी पूड़ी सब्जी खिलाकर देश में अशांति का माहौल पैदा करते थे।

   

मोदी विरोध के चलते ऐसे-ऐसे मुद्दों को हवा दी जा रही है जिसका देश की जनता से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन उसको लेकर देश में अशांति फैलाई जा रही हैं। यह सिलसिला 2014 में मोदी की जीत से शुरू हुआ था और अभी तक जारी हैं। वैसे, यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस दिन यह तय हो गया था कि अबकी बार मोदी सरकार बनेगी तभी से देश को कभी राफेल के नाम पर तो कभी तीन तलाक को लेकर भड़काया गया। सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगा गया। अयोध्या मसले को हवा दी गई। कश्मीर से धारा 370 हटाने के नाम पर देश को गुमराह किया गया। अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा हैं, फ्री कश्मीर के नारे लगते हैं। मुसलमानों को भयभीत बताया जाता है। पाकिस्तान जाकर कांग्रेस के एक नेता मोदी को हटाने के लिए मदद मांगते हैं। विरोध का यह सिलसिला अब सीएए, एनपीआर एवं एनआरसी पर आकर अटक गया है। इसी विरोध के चलते लखनऊ का घंटाघर पार्क दिल्ली का दूसरा शाहीन बाग बन गया है। सीएए के विरोध में यहां भी जुम्मे की नमाज (17 जनवरी 2020) के बाद मुस्लिम महिलाओं ने डेरा डाल दिया। यह वह क्षेत्र है जो हेरिटेज जोन में आता है। यहां बड़ा और छोटा इमामबाड़ा है। मुस्लिम बाहुल्य हुसैनाबाद के घंटाघर पार्क में छोटे-छोटे बच्चों के साथ जुटी नकाबपोश महिलाओं ने आधी-अधूरी जानकारी के साथ सीएए व एनआरसी का विरोध शुरू किया तो लोगों को समझते देर नहीं लगी कि इसके पीछे डर से ज्यादा सियासी वजह थी। तख्तियों पर नो सीएए, नो एनआरसी और वी रिजेक्ट सीएए-एनआरसी लिखा हुआ था। देखते ही देखते पार्क में महिलाओं की संख्या दोगुनी हो गई। मोमबत्तियां जलाकर महिलाओं ने विरोध जताया। वहीं इनके चारों ओर पुरुषों की संख्या भी बढ़ती गई। ठंडक से बचने के लिए अलाव भी जलाया गया। चाय-पानी से लेकर सभी व्यवस्थाएं ऐसी नजर आ रही थीं मानो कोई इवेंट चल रहा हो। देर रात तक महिलाओं ने सीएए के विरोध में नारेबाजी भी की।

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धरने की खबर मिलते ही काफी संख्या में पुलिस मौके पर पहुंची और महिलाओं को समझाने का प्रयास किया। महिलाओं ने पुलिस को जिलाधिकारी को संबोधित ज्ञापन सौंप धरना समाप्त करने से इन्कार कर दिया। ज्ञापन में महिलाओं ने डीएम से धरना देने में सहयोग कर उनकी आवाज को न दबाने की अपील की है। धरने में शामिल शबीह फातिमा व रेहाना ने केंद्र सरकार से एनआरसी व सीएए लागू न करने की अपील की। महिलाओं ने कहा कि सीएए में मुसलमानों को शामिल ना कर सरकार हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ना चाहती है। देश के नागरिकों को अपने भारतीय होने का सबूत देने के लिए दर-दर भटकना होगा। धरने में शामिल रुखसाना जिया, रिजवाना व फरेहा सहित अन्य महिलाओं ने अनिश्चितकालीन धरना देने का ऐलान किया। देर रात धरने पर बैठी महिलाओं के लिए कंबल का भी इंतजाम हो गया, जिसे ओढ़कर महिलाएं देर रात तक नारेबाजी करती रहीं। फिर वहीं आराम करने लगीं।

 

मोदी सरकार पर इस सियासी धरने-प्रदर्शन का कितना असर होता होगा, यह तो वह ही जाने लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सीएए को कानून बने एक माह से ऊपर हो चुका है लेकिन इसका विरोध अनवरत जारी है। धीरे-धीरे यह विरोध “विरोध” की सीमाओं को लांघ कर हताशा और निराशा से होता हुआ अब विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है। शाहीन बाग का धरना इसी बात का उदाहरण है। अब लखनऊ का घंटाघर पार्क का नाम भी इसमें शामिल हो गया है। यहां से गुजरना भी अब आसान नहीं रह गया है। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए कुछ लोग या दल किस हद तक जा सकते हैं यह धरने इस बात का प्रमाण है। 

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दरअसल, विपक्ष आज बेबस है क्योंकि उसके हाथों से चीजें फिसलती जा रही हैं। जिस तेजी और सरलता से मौजूदा सरकार इस देश के सालों पुराने उलझे हुए मुद्दे जिन पर बात करना भी विवादों को आमंत्रित करता था, सुलझाती जा रही है, विपक्ष खुद को मुद्दाविहीन पा रहा है। और तो और वर्तमान सरकार की कूटनीति के चलते संसद में विपक्ष की राजनीति भी नहीं चल पा रही जिससे वो खुद को अस्तित्व विहीन भी पा रहा है। शायद इसलिए अब वो अपनी राजनीति सड़कों पर ले आया है। खेद का विषय है कि अपनी राजनीति चमकाने के लिए अभी तक विपक्ष आम आदमी और छात्रों का सहारा लेता था, लेकिन अब वो महिलाओं-बच्चों को अपना मोहरा बना रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश की मुस्लिम महिलाएँ और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार बन गये हैं क्योंकि शाहीन बाग हो या फिर लखनऊ का घंटाघर पार्क दोनों जगह का मोर्चा महिलाओं के ही हाथ में है।

 

-अजय कुमार

 

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