RBI Sovereign Gold Bond Scheme: असली सोने को मात दे चुके हैं कागजी सोने से मिलने वाले सुनिश्चित फायदे, न कोई रिस्क, न कोई टेंशन, इसलिए दीजिये अटैंशन

By कमलेश पांडे | Dec 08, 2023

भारतीयों को सोना बहुत भाता है। उनकी इसी पसंद के लिए कभी भारत को सोने की चिड़ियां कहा जाता था। आज भी वह सोने की चिड़ियां कहलाने के लिए ततपर है।शायद मोदी सरकार ने लोगों की इसी भावना को तवज्जो देते हुए 8 साल पहले सरकारी सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जारी करना शुरू किया, जिसके निवेशकों का पैसा 10 साल के मुकाबले महज 8 साल में ही दोगुना हो गया है। ऐसा इसलिए कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की पहली सीरीज 30 नवंबर को मैच्योर हो चुकी है। 


उल्लेखनीय है कि एक सरकारी योजना के तहत भारतीय रिजर्व बैंक ने ये बॉन्ड विगत 26 नवंबर 2015 को जारी किए गए थे। यानी कि महज 8 साल में ही निवेशकों का पैसा दोगुना हो गया। स्पष्ट है कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को अब बेहतर रिटर्न की सरकारी गारंटी समझा जाने लगा है।


आइए, सर्वप्रथम यह जानते हैं कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड क्या हैं? यह आपके लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है?


आपको पता होना चाहिए कि केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार के एक अहम फैसले के बाद भारत सरकार द्वारा ग्राम में अंकित सोने के मूल्य वाले बांड के रूप में जारी किया जाता है, जिसे आप एक तरह से कागजी सोना समझ सकते हैं। यह सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड सरकार की ओर से आरबीआई द्वारा जारी किया जाता है, इसलिए इस पर सरकारी गारंटी होती है। इस बॉन्ड में निवेश पर सालाना 2.5 फीसदी ब्याज मिलता है। यह पैसा हर 6 महीने में निवेशकों के बैंक खाते में ट्रांसफर किया जाता है। इसमें ऑनलाइन निवेश करने पर 50 रुपए प्रति ग्राम की छूट निवेशकों को दी जाती है।

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# आखिर क्यों मैच्योरिटी से पहले ही रिडीम कर रहे कुछ निवेशक


आंकड़े बताते हैं कि कुछ उत्साहित निवेशकों ने मैच्योरिटी से पहले ही इसका रिडेम्प्शन किया है। आरबीआई के मुताबिक, 20 नवंबर 2023 तक कुल 1552953 यूनिट यानी 1.55 टन सोने की वैल्यू के बराबर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड का प्रीमैच्योर रिडेम्प्शन हुआ है। कहने का तातपर्य कि निवेशकों ने अभी तक कुल 6 फीसदी यूनिट मैच्योरिटी से पहले बेचे हैं। गौरतलब है कि इससे पहले इस बॉन्ड के लिए कुल 913571 यूनिट की खरीद की गई थी। समझा जाता है कि व्यक्तिगत जरूरतों की पूर्ति के लिए निवेशक अपने पैसे समय से पहले निकाल लिए होंगे।


# समझिए, सुरक्षित निवेश करने वालों को आखिर क्यों पसंद है सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश करना


बताया जाता है कि इस सीरीज की मैच्योरिटी के बाद भी निवेशकों के पास इस स्कीम में निवेश करने का मौका रहेगा। यह योजना उन निवेशकों को खूब रास आई है, जो इंवेस्टमेंट पसंद करते हैं। दरअसल, इस योजना में एफडी के मुकाबले कई गुना पैसा बढ़ा है। क्योंकि जहां सावधि जमा (एफडी) में आपका पैसा 7 फीसदी के हिसाब से तकरीबन 10 साल में दोगुना होगा, लेकिन यह स्कीम एफडी से बेहतर रिटर्न दे चुकी है। इसमें जिन लोगों ने वर्ष 2015 में निवेश किया है, उनका पैसा इस वर्ष दोगुना हो चुका है। इसलिए निकट भविष्य में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश के अच्छे आसार प्रतीत हो रहे हैं।


# सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में है 8 साल का लॉक इन पीरियड, लेकिन 5 साल बाद भी निकाल सकते हैं अपने पैसे


यूँ तो सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड 8 साल का होता है। हालांकि, आप मैच्योरिटी से पहले किंतु लॉक इन पीरियड 5 साल के बाद अपना पैसा निकाल सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि बतौर निवेशक आपको कम से कम 5 साल तक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स में निवेश बनाए रखना जरूरी होगा। बता दें कि भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से इस साल सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की नई किस्त 11 सितंबर से 15 सितंबर 2023 तक जारी की गई थी।


# 24 कैरेट गोल्ड जितना सममूल्य होता है यह बॉन्ड, आपकी रकम डूबने का नहीं रहता कोई खतरा 


फाइनेंशियल एक्सपर्ट बताते हैं कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की कीमत 24 कैरेट के फिजिकल गोल्ड के बराबर ही होती है। दरअसल, सरकार ने इसे बाजार में सोने की मांग को कम करने के लिए 2015 में लॉन्च किया था। क्योंकि वास्तविक सोने के आयात में भारत सरकार को अपनी काफी कीमती विदेशी मुद्रा यानी डॉलर खर्च करनी पड़ती है। वहीं, इस बॉन्ड का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें आप बाजार से कम कीमत पर सोना खरीद सकते हैं और बॉन्ड रखने की अवधि तक 2.5 प्रतिशत का ब्याज भी सरकार से पा सकते हैं, क्योंकि वह इसे सबको देती है।


उल्लेखनीय है कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड पूरी तरह से 24 कैरेट के सोने की कीमत से लिंक होते हैं। जबकि आरबीआई की ओर से जारी होने के कारण सरकार की इसमें पूरी गारंटी होती है। इसमें आपकी रकम डूबने का भी कोई खतरा नहीं होता है। वहीं, इसमें 2.5 प्रतिशत सालाना ब्याज भी दिया जाता है। कुल मिलाकर बदलते वक्त के साथ-साथ यानी सोने की कीमत के साथ आपको ब्याज का भी फायदा मिलता है। वहीं, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की मैच्योरिटी से पहले सभी निवेशकों को नोटिस दिया जाता है। इसके बाद मैच्योरिटी पर रकम ब्याज सहित निवेशक के खाते में क्रेडिट कर दी जाती है। इससे निवेशकों की बल्ले-बल्ले हो जाती है।


# रिजर्व बैंक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में न शुद्धता की टेंशन और न ही सुरक्षा का खतरा


वर्ष 2015 के पश्चात रिजर्व बैंक नियमित अंतराल पर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जारी करता है, जिसकी कीमत 24 कैरेट सोने के दाम से लिंक होती है। ऐसे में यहां पर निवेश के पश्चात सोने की गुणवत्ता को लेकर किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं होती है। साथ ही इसके न तो चोरी होने का खतरा होता है और न ही उसके रखरखाव के लिए अलग से कोई फीस देने की जरूरत पड़ती है। सबसे खास बात यह कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को बेचने पर कोई पैसा भी नहीं कटता है। निवेशक को मार्केट रेट से पैसे मिलते हैं। वहीं, फिजिकल सोने को बेचते वक्त मेकिंग चार्जेज सहित कुछ पैसे कट जाते हैं, लेकिन सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में ऐसा नहीं है। वहीं, गोल्ड बॉन्ड खरीदने पर आपको 2.5 फीसदी की तय सालाना दर से ब्याज मिलता है। जबकि हर छह महीने पर इसका ब्याज निवेशक के बैंक खाते में जुड़ता रहता है। वहीं, मेच्योरिटी के समय ब्याज की राशि मूलधन के साथ जोड़कर दी जाती है।


# रिजर्व बैंक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में टैक्स की नहीं कोई चिंता


सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम्स को मैच्योरिटी के बाद मिलने वाले पैसों पर किसी तरह का टैक्स नहीं देना पड़ता है।

 

यद्यपि, अंतरराष्ट्रीय वजहों के चलते या फिर घरेलू कारणों की वजह से यदि सोने की कीमतों में गिरावट आती है तो इसका नुकसान केवल निवेशक को ही उठाना पड़ता है। ऐसा इसलिए कि सोने की कीमतों में गिरावट से गोल्ड बॉन्ड पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे रिटर्न कम हो जाता है। वहीं, सॉवरन गोल्ड बॉन्ड पर कमाया गया ब्याज भी बढ़ती महंगाई दर से कई बार मात खा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस पर मिलने वाले ब्याज की दर 2.5 फीसदी ही होती है। वहीं, सॉवरन गोल्ड बॉन्ड में निवेशकों को मिलने वाला ब्याज निवेशक के टैक्स स्लैब के मुताबिक कर योग्य होता है। इस पर मिलने वाला ब्याज सोने के मौजूदा भाव के हिसाब से ही तय होता है।


# रिजर्व बैंक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की समय-सीमा में बंधा होता है निवेश, इसलिए सोच समझकर कीजिए कोई फैसला


सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड मूलत: एक क्लोज एंडेड स्कीम है, जिसमें 8 साल की एक निश्चित समय सीमा तक के लिए निवेश किया जाता है और 5 साल की निर्धारित अवधि (लॉक इन पीरियड) के बाद ही किसी प्रकार की निकासी संभव है। 8 साल के बाद स्वतः ही आवेदन मंगाए जाते हैं और उसका निष्पादन किया जाता है। वहीं, सॉवरन गोल्ड बॉन्ड में यदि आपको पांच साल से पहले पैसों की जरूरत है तो इसे किसी भी कीमत पर निकाला नहीं जा सकता है। दरअसल, यह लिक्विड निवेश नहीं होता है। ऐसे में लिक्विडिटी की जरूरत भविष्य के किसी भी लक्ष्य को या फिर अनिश्चित खर्चों को पूरा करने के लिए ही नहीं होती है।

 

इसलिए आपको सुझाव दिया जाता है कि आप सोच-समझकर इसमें निवेश करें और अनुमानित/प्राक्कलित सुनिश्चित रिटर्न पाएं।


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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