कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बहुप्रतिक्षित चुनाव संपन्न हो गया। जैसी की उम्मीद थी गांधी परिवार से आशीर्वाद प्राप्त मल्लिकार्जुन खडगे पार्टी के अध्यक्ष बन गए। वे बहुत विद्वान हैं। आठ भाषाओं के ज्ञाता हैं, अब यह समय तय करेगा कि वह अपने विवेक से पार्टी चलाते हैं या गांधी परिवार की खड़ाऊं कुर्सी पर रखकर निर्णय करते हैं। अगले एक साल में दर्जन भर से ज्यादा राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। उनके सामने पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती है तो गांधी परिवार का विश्वास बनाए रखने की भी। राजस्थान में पैदा हुए संकट पर काबू पानाउनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। उन्हें गांधी परिवार की छत्रछाया में रहकर, उसके निर्देश स्वीकार कर यह भी सिद्ध करना होगा कि यह निर्णय उनके अपने हैं।
नतीजों में मल्लिकार्जुन ने 6825 वोट से अपने एक मात्र प्रतिद्वंदी शशि थरूर को हराया। खड़गे को 7897 वोट मिले, वहीं थरूर को 1072 वोट ही मिल सके। 416 वोट निरस्त हो गए नए अध्यक्ष खड़गे 26 अक्टूबर को अध्यक्ष पद की शपथ लेंगे। आंकड़ों के हिसाब से देखें, तो 24 साल पहले चुनी गईं सोनिया गांधी के बाद खड़गे सबसे बड़े अंतर से पार्टी अध्यक्ष का चुनाव जीते हैं। कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए आखिरी बार 1998 में वोटिंग हुई थी। तब सोनिया गांधी के सामने जितेंद्र प्रसाद थे। सोनिया गांधी को करीब 7,448 वोट मिले, जबकि जितेंद्र प्रसाद 94 वोटों पर ही सिमट गए थे।
खड़गे की जीत जितनी बड़ी है, उतनी ही बड़ी चुनौतियां भी उनके सामने हैं। पार्टी की कमान उन्हें उस समय मिली है, जब केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकार बची है। झारखंड और तमिलनाडु में पार्टी गठबंधन सरकार में शामिल है। यहां मुख्यमंत्री दूसरे दलों के हैं।
कांग्रेस में गांधी परिवार से बाहर के अध्यक्ष बनने का बदलाव चौबीस साल के लंबे अंतराल के बाद हुआ है। कांग्रेस को इस बार फिर गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष मिला। मलिकार्जुन खडगे पुराने कांग्रेसी, अनुभवी, परिपक्व और सुलझे हुए नेता हैं। यह सयम तै करेगा कि कांग्रेस पर लगा गांधी परिवार का ठप्पा हटता है या नहीं।
कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने मलिकार्जुन खडके को कांग्रेस के अध्यक्ष की कमान यह सोचकर कमान सौंपी गई है, सबसे बड़े विश्वासपात्र और अलंबरदार रहेंगे। उनके कहे पर काम करेंगे। हालांकि गांधी परिवार की पहली पंसद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत थे। उन्हें ही अध्यक्ष पद के लिए नामजगदी कराने को कहा गया था। किंतु वह विद्रोह पर उतर आए। वे पार्टी अध्यक्ष बनकर भी राजस्थान का मुख्यमंत्री बने रहना चाहते थे। राजस्थान से आए विरोधी सुर को देख गांधी परिवार को अपना निर्णय बदलना पड़ा। उसने मलिकार्जुन खडगे को प्रत्याशी ही नही बनाया, अपितु सभी नौ हजार मतदाताओं को मूक संदेश भी भेजा कि राहुल सोनिया के प्रत्याशी खड़के हैं।
आज मलिकार्जुन खडगे के सामने जितनी बड़ी चुनौती हैं, उतनी बड़ी ही उन्हें अपनी निर्णय क्षमता दिखाकर पार्टी को मजबूत करने की गुंजाइश भी है। आज कांग्रेस पराभव की ओर है। उसके पास अब गंवाने को ज्यादा नही है। छत्तीसगढ और राजस्थान दो राज्यों में पार्टी की सरकार हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत के बदले सुर भी नई चुनौती पैदा कर रहे हैं। राजस्थान में फैले पड़े संकट को समेटने की उनके पास आज सबसे बड़ी चुनौती है। ये उसे कैसे हल करते हैं, यह खडगे की विद्वता और चातुर्य पर निर्भर करेगा। अशोक गहलोत का रवैया पूरी तरह बदला हुआ है, वह पार्टी हाईकमान से दो−दो हाथ करने को तैयार लग रहे हैं। इन सब को देख उन्हें निर्णय लेना होगा।
आजादी के बाद संघर्ष के रास्ते से हट गई कांग्रेस को राहुल गांधी पुनःसंघर्ष के रास्ते की और से जा रहे हैं। उनकी भारत जोड़ो यात्रा इस समय देश में चल रही हैं। ऐसी यात्रांए निष्क्रीय हो चुके कार्यकर्ताओं को फिर से आगे लाने का कम करतीं हैं। खडगे को भी पार्टी को जन आंदोलन से जोड़ना होगा। कार्यकर्ताओं को कहना होगा कि वह जनता की आवाज बने। चुनाव वाले प्रदेश में जुझारू संगठन खड़ा करना और निराश कार्यकर्ताओं को घार ने बाहर निकालकर लाना उनकी बड़ी प्राथामिकता होगी। सब जानते हैं कि खडगे अध्यक्ष होकर भी कांग्रेस में राहुल सोनिया और प्रिंयका गांधी के बाद ही रहेंगे। राहुल गांधी का कुछ पता नहीं कब वह संसद में पार्टी के आए अध्यादेश को ही फाड़ दें। इन सब के बीच उन्हें रास्ता निकलना होगा। इस परिवार से तालमेल बैठाकर चलना होगा।
खड़गे को अध्यक्ष बनाकर गांधी परिवार ने विरोधियों के मुह बंद कर दिए।अब भी पार्टी में होगा वही जो वह चाहेंगे, किंतु उन्हें कोई सीधे इसके लिए जिम्मेदार नहीं बता पाएगा। यह भी आरोप नही लगेंगे कि गांधी परिवार पार्टी का अध्यक्ष पद नही छोड़ना चाहता। खडगे के अधयक्ष बनने से एक तरह से राहुल से पार्टी सगठन की जिम्मेदारी कम हो जाएगी। गांधी परिवार का सीधा लक्ष्य राहुल को प्रधानमंत्री बनाना है, सो वह राहुल को पूरी क्षमता से अपने कार्य में लगा सकेगा। राहुल भी अब अपने लक्ष्य को पाने में लग जाएंगे।
- अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)