By आरएन तिवारी | Apr 21, 2023
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥
प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! भागवत-कथा, स्वर्ग के अमृत से भी अधिक श्रेयस्कर है।
भागवत-कथा श्रवण करने वाले जन-मानस में भगवान श्री कृष्ण की छवि अंकित हो जाती है। यह कथा “पुनाति भुवन त्रयम” तीनों लोकों को पवित्र कर देती है। तो आइए ! इस कथामृत सरोवर में अवगाहन करें और जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति पाकर अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।
मित्रों! पूर्व प्रसंग में हम सबने देखा कि अक्रूर जी और ग्वाल-बालों के साथ कन्हैया मथुरा में प्रविष्ट हुए। इनके प्रवेश करते ही मथुरा पूरी में तहलका मच गया। मथुरवासी आपस में कहने लगे, ए भैया ! पूतना को मारने वाला छोरा आ गया।
कोई कहे गोवर्धन पर्वत उठाने वाला नंदलाल आ गया। जो जहाँ से सुनता वहीं से भागता है। आइए! आगे की कथा में चलें– सब अपने कम-धाम छोड़कर प्रभु दर्शन के लिए भाग रहे हैं। मथुरा की स्त्रियाँ जो कभी अपने घर से बाहर नहीं निकलतीं आज वो मुंह खोले कृष्ण दर्शन के लिए भाग रही हैं। जो नहीं निकल पाईं वो खिड़की झरोखे से देख रही हैं एक दूसरे से कहती हैं- सखी! कितने सुंदर हैं ये कृष्ण कन्हैया। इतने सुकुमार हाथों से गोवर्धन कैसे उठाए होंगे? बड़े-बड़े राक्षसों को कैसे मारे होंगे? वो इतनी ज़ोर से बात करती हैं कि कृष्ण की तिरछी नजर उधर चली जाती है। कन्हैया की तिरछी चितवन जिस पर पड़ जाती बस वह तो पागल ही हो जाता है। मथुरा की सुकुमार स्त्रियाँ चिल्ला पड़तीं, सखी! देख मेरी तरफ देख रहे हैं। दूसरी कहती, अरे बावरी! तुझे नहीं मुझे देखकर मुस्कुरा रहे हैं। मिथिलापुरी के रामजी में और मथुरापुरी के श्यामजी में बस यही अंतर है कि रामजी लजीले शर्मीले हैं और श्यामजी बड़े ही छैल-छबीले हैं। इनको काहू से संकोच नहीं। बलपूर्वक सबके चित्त को अपनी तरफ खींचते हैं इसीलिए नाम है कृष्ण। कर्षयति इति कृष्ण; किसी को नयन मटका के तो किसी से नजरें मिलाके किसी को मंद मंद मुस्कुराके मथुरा वासियों के चित्त को चुराते चले जा रहे हैं।
आजू मथुरा नगरिया निहाल सखियाँ, दुनों भैया में कान्हा जी कमाल सखिया ।
काले-काले बाल कजरारी कारि अँखियाँ, आहे लाले-लाले चन्दन उनके भाल सखिया ॥
दुनों भैया में कान्हा जी कमाल सखिया------------------------------
मथुरा की स्त्रियाँ चाहती हैं कि कृष्ण उनकी तरफ एक नजर देखें, इसलिए भगवान भी अपनी जादूभरी नजरों से उनकी तरफ देखने लगते हैं। एक बड़ा ही खुबसूरत संदेश---- भगवान किसी का भी दिल नहीं तोड़ते, यदि दिल तोड़ेंगे तो आखिर रहेंगे कहाँ ? भगवान तो अपने भक्तों के हृदय में ही वास करते हैं। आइए ! देखते हैं एक भक्त की एक कल्पना-----
जादू भरी तेरी आंखे जिधर गईं
नैनो की कटारी बारी बारी छूई, छूई छतिया से उतर गई। जादू भरी तेरी-----
प्रेम की लरी हरी दृग दोनों बरस परी मोती सी बिखर गई। जादू भरी तेरी-----
अब पल पलक टरत नहीं टारे, जिमि छोरत जनु जान निकर गई। जादू भरी--- मुकुलित ललित कलि हिय विकसित, प्रेम पराग से रस रस भर गई। जादू -----
निरखि छटा घनघोर घटा भावना की उमड़ गई। जादू -----
बोल बंशी वाले की जय --------------
शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित ! इस प्रकार माधव मथुरा की गलियों में सबके चित्त को चुराते हुए चले जा रहे हैं। सुंदरियाँ पुष्प वृष्टि कर रही हैं।
मनांसि तासामरविंद लोचन: प्रगल्भलीला हसितावलोकनै:।
जहार मत्तद्विरदेन्द्रविक्रमो दृशामदद्च्छृरमणात्मनोत्सवम॥
कमलनयन भगवान श्री कृष्ण मतवाले गजराज के समान बड़ी मस्ती से चले जा रहे हैं। उन्होंने लक्ष्मी को भी आनंदित करने वाले अपने श्यामसुंदर विग्रह से मथुरा नगरी की नारियों के नेत्रों को बड़ा आनंद दिया और अपनी विलासपूर्ण प्रगल्भ हँसी तथा प्रेमभरी चितवन से उनके चित्त को चुरा लिया।
ये सब देखकर व्रजवासी चकित हो रहे हैं। पूछते हैं- कन्हैया! तेरी बड़ी जय-जयकार हो रही है। यहाँ कोई रिश्तेदारी है क्या? कन्हैया बोले- यहाँ के राजा कंस मेरे सगे मामा हैं। भांजा पहली बार आया है इसलिए स्वागत कर रहे हैं। व्रजवासी बोले— अच्छा ये बात है।
अथ व्रजन राजपथेन माधव: स्त्रियं गृहीतांग विलेपभाजनाम।
विलोक्य कुब्जां युवतीं वराननां प्रपच्छ यान्तीमप्रहसन रस प्रद:॥
एवं विकत्थ माने वै कंसे प्रकुपितोsव्यय:।
लघिम्नोत्पत्य तरसा मंचमुतुंगमारूहत॥
इस प्रकार लीला करते हुए भगवान ने कुब्जा पर कृपा कर उसे एक सुंदर नवयुवती बना दिया, आगे चलकर कंस के द्वारा आयोजित धनुष भंग किया। कुवलयापीड़, चाणुर आदि पहलवानों का उद्धार करने के बाद आततायी कंस का वध किया।
शेष अगले प्रसंग में ----
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
- आरएन तिवारी