“याद आ रहा है, तेरा प्यार!” वक्त को ना जाने क्या हो गया है कि एक-एक करके हमारा सुरीला साथी हमसे विदा ले रहा है। लता दीदी के जाने का गम थमा ही नहीं था कि बुधवार की सुबह एक और झटका आँखों में नमी ले आया। हमारे अपने “डिस्को किंग”, “द गोल्डन मैन ऑफ इण्डिया” और “गोल्डमाइन” कहे जाने वाले बप्पी लाहिड़ी आज हमारे बीच नहीं रहे। हिन्दी फिल्मी व क्षेत्रीय भाषा के गानों को लोकप्रियता के शिखर पर ले जाने में बप्पी लाहिड़ी की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। “आई एम अ डिस्को डांसर”, “यार बिना चैन कहाँ रे”, “तू है मेरी फैंटेसी” जैसे गानों से बप्पी दा हर तबके के लोगों का मनोरंजन करने में सफल रहे थे। संगीत की कोई सीमा नहीं होती और जब कोई संगीत हर उम्र, हर जुबान और हर तबके के लोगों को एकसाथ थिरकने पर मजबूर कर दे तो एक संगीतकार के लिए इससे बड़ी उपलब्धि क्या होगी! बप्पी लाहिड़ी भारतीय सिने जगत का वह नाम है जिसने पाश्चात्य संगीत को देसी स्टाइल में पिरोकर एक अलग पहचान दी। बप्पी दा का संगीत ईस्ट और वेस्ट का अनूठा संगम है।
संगीत तो उन्हें विरासत में मिली सौगात थी जिसका सदुपयोग कर उन्होंने न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई। बप्पी लाहिड़ी का जन्म 27 नवम्बर 1952 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुआ था। उनके पिता अपरेश लाहिड़ी और माता बाँसुरी लहरी शास्त्रीय संगीत तथा श्यामा संगीत के फनकार व गायक थे। बप्पी उनकी एकलौती संतान थे और उनका का असल नाम अलोकेश लाहिड़ी था, जो कालांतर में बप्पी के नाम से मशहूर हुआ। अलोकेश को संगीत की शिक्षा बचपन से ही मिलनी शुरू हो गयी थी। तीन वर्ष की नन्हीं सी उम्र में ही उनकी छोटी-छोटी उँगलियों ने तबले पर अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया था। विश्वविख्यात बनने का सपना भी बहुत छोटी उम्र से ही उनके साथ रहा। उनकी जीवन संगिनी चित्राणि भी संगीत घराने से ताल्लुक रखतीं हैं बेटी रेमा एक उम्दा गायिका हैं और बेटा बप्पा लाहिड़ी पिता के समान ही हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में संगीतकार के रूप में पैर जमा रहे हैं। संगीत साधकों के इस परिवार में बप्पी लाहिड़ी की भूमिका अतुलनीय है। उनका संगीत जितनी विविधताओं से भरा है उतनी ही आकर्षक थी उनकी व्यक्तिगत स्टाइल। बप्पी लाहिड़ी की पहचान का अटूट हिस्सा था उनका पब्लिक इमेज - वह भी उनकी संगीत की तरह ही ईस्ट और वेस्ट का अनुपम संगम कहा जा सकता है। पारंपरिक परिधानों में रँग-बिरंगे कुर्ते और शेरवानी एक तरफ जहाँ उन्हें भारतीय पहचान देते थे वहीं स्वेट शर्ट और ब्लेजर का पहनावा उनके वेस्टर्न अवतार को आकर्षक बनाता था। उसपर सोने और चाँदी के आभूषणों से लदे हमारे प्यारे बप्पी दा किसी पॉप सिंगर से कम नहीं लगते थे। तरह-तरह के गॉगल्स उनके लुक को सम्पूर्णता प्रदान करता था। ऊँगलियों में सोने की मोटी अँगूठियाँ और गले में मोटे-मोटे चेन पहनने वाले वे प्रथम भारतीय संगीतकार हैं। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने अपने इस अवतार का श्रेय अंग्रेजी के एक रॉकस्टार एल्विस को दिया था जिसने बहुत छोटी उम्र में उन्हें बेहद आकर्षित किया था और तभी से वे अपनी खास पहचान बनाने को लेकर संजीदा हो गए थे।
बप्पी लाहिड़ी ने मात्र 19 वर्ष की आयु से फिल्मों में संगीत देना आरम्भ कर दिया था। उन्होंने 1972 में बांग्ला फिल्म ‘दादू’ के लिए पहली बार गाना कंपोज किया था जिसे लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी। उनका पहला हिन्दी गीत फिल्म ‘नन्हा शिकारी’ (1973) का ‘तू ही मेरा चँदा’ है, जिसे मुकेश ने गया था। इस तरह शुरुआत से ही उनके कम्पोजिशन को बेहतरीन गायकों की आवाजें मिलती रहीं, और धीरे-धीरे वे इंडस्ट्री के जाने-माने नाम बनकर मशहूर हो गए। इतना ही नहीं, उनकी आवाज की कशिश भी लोगों पर जादू कर गयी और एक गायक के रूप में भी उन्हें अच्छी खासी लोकप्रियता मिली। वे किशोर कुमार के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्हें मामा कहकर बुलाते थे। किशोर के जाने पर उन्हें इतना गहरा अघात लगा था कि वे संगीत छोड़ देना चाहते थे किन्तु फिर उन्हीं की प्रेरणा से नए जोश के साथ कार्य किया और फिर जो हुआ वह इतिहास बन गया। संगीत के हर बड़े नाम बप्पी दा के संगीत से जुड़े और उनके बनाये-गाये गाने चार्टबस्टर बन लोगों के दिलों पर छाते रहे।
बप्पी दा ने कुछ फिल्मों में अदाकारी की और कई फिल्मों में डबिंग भी की थी। उनके गीत केवल हिन्दी भाषा तक सिमट कर नहीं रहे। बांग्ला, तेलगु, तमिल, कन्नड़, गुजराती आदि गीतों को भी अपने संगीत से सँवारा था। वर्ष 1986 में 33 फिल्मों के लिए 180 गाने रिकार्ड करने के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में भी दर्ज है। उनके नाम कई फिल्मफेयर अवार्ड भी हैं। वर्ष 2018 में, 63वें फिल्मफेयर अवार्ड में उन्हें लाइफ अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया था। अभी हाल ही में “बच्चे पार्टी” गाने में अपनी दमदार एंट्री से दर्शकों को रोमांचित करने वाले हम सबके चहेते बप्पी लाहिड़ी अपने पीछे बेहतरीन गानों और खुबसूरत यादों का कारवाँ छोड़ गए हैं।
- दीपा लाभ
(भारतीय संस्कृति की अध्येता)