राष्ट्रवाद की भावना से उदय हुआ गणेशोत्सव लोकप्रिय बन गया

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Sep 02, 2019

विद्या, बुद्धि तथा समृद्धि के दाता विघ्न विनाशक गणेश जी की पूजा का पर्व गणेश चतुर्थी भारत मे हिंदुओं का प्रमुख पर्व है जो प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को व्यापक उत्साह के साथ मनाया जाता है। बताया जाता है इस दिन मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। भगवान गणेश बुद्धि के देव हैं। गणेश जी का वाहन चूहा है। रिद्धि-सिद्धि गणेश जी की दो पत्नियां हैं। इनका सर्वप्रिय भोग लड्डू हैं। प्राचीन काल में बालकों का विद्या-अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था। आज बालक छोटे-छोटे डण्डों को बजाकर खेलते हैं। इसी वजह से लोकभाषा में इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है। गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव है। हिन्दू धर्म में गणेश को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि शुभ के कार्य हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। नारद पुराण के मुताबिक गणेश जी को सुमुख- सुंदर मुख वाले, एकदंत: एक दन्त वाले, कपिल: कपिल वर्ण वाले, गजकर्ण: हाथी के कान वाले, लम्बोदर: लम्बे पेट वाले, विकट: विपत्ति का नाश करने वाले, विनायक: न्याय करने वाले, धूम्रकेतु: धुएं के रंग वाले पताका वाले, गणाध्यक्ष: गुणों और देवताओ के अध्यक्ष, भालचन्द्र: सर पर चंद्रमा धारण करने वाले,  गजानंन: हाथी के मुख वाले एवं विध्ननाशक: विध्न को ख़त्म करने वाले कह कर पुकारा गया है इनमें विनायक, लम्बोदर, गजानन, एकदंत एवं विध्न नाशक नाम खासे लोकप्रिय हैं।

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यूं तो सर्वमंगलकारी गणेश जी की पूजा प्राचीन समय से की जाती रही है पर गणेश उत्सव मनाने की परंपरा हमारे राष्ट्रवाद के संघर्ष से उदित हुई है। देश में विभिन्न परम्पराओं के साथ यह उत्सव मनाया जाता है। भारत मे हर जगह गणेश जी के मंदिर हैं परंतु कुछ मंदिर ऐसे हैं जो भारतीयों की श्रद्धा का केंद्र तो हैं ही पर्यटकों में भी लोकप्रिय होने से प्रसिद्ध मंदिर बन गए है। आइए इन्हीं संदर्भो में देखते हैं हम हमारे गणपति और गणेश उत्सव की परंपरा का स्वरूप।

 

पहले चर्चा करते है गणेश उत्सव के आयोजन की। हमारे देश में यह पर्व वैसे तो सभी जगह गोवा, हैदराबाद, बेंगलुरु, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, मध्य प्रदेश राज्यों में अथाह उत्साह के साथ मनाया जाता है परंतु महाराष्ट्र में विशेष रूप से भव्यता के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव में फ़िल्म जगत की हस्तियां भी बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं। यहां गणेश चतुर्थी का अलग ही माहौल देखने को मिलता है। इस दौरान मुंबई में कई जगह बड़े बड़े पंडाल लगाए जाते हैं। गणेश चतुर्थी का कार्यक्रम 7 से 10 दिनों तक चलता है और इस दौरान पूरे मुंबई शहर में त्योहार जैसा माहौल होता है। गणेश विसर्जन के साथ ही यह त्योहार का समाप्त होता है। गणेश विसर्जन चौपाटी बीच का नज़ारा अकल्पनीय रूप से दर्शनीय होता है। पुणे शहर भी इसमें पीछे नहीं है। पुणे में गणेशोत्सव का त्योहार पेशवाओं के समय से मनाया जा रहा है। यहां दगडूशेठ हलवाई गणपति भी काफी प्रसिद्ध है, यहां देश के प्रमुख मंदिरों की प्रतिकृति बनाई जाती है।                  

 

बेंगलुरु के एपीएस कॉलेज ग्राउंड में गणेश उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें करीब 10 लाख लोग आते हैं। पिछले पांच दशकों से यह कार्यक्रम हर साल आयोजित किया जा रहा है और हर साल इस त्योहार की अलग छटा देखने को मिलती है। एक सप्ताह से ज्यादा दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इस दौरान यहां कई कार्यक्रमों का आयोजन  किया जाता है। हैदराबाद में एक अलग ही रूप गणेशोत्सव के दौरान देखने को मिलता है। हैदराबाद में भारत की सबसे बड़ी गणेश की मूर्ति लगाई जाती है जो हैदराबाद के खैरताबाद में स्थापित की जाती है। हुसैन सागर झील में गणेश विसर्जन को देख सकते हैं। गोवा में भी गणेश उत्सव की धूम देखने मिलती है। दस दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव के दौरान गोवा के प्रत्येक हिस्से मे गणेशोत्सव का उत्साह देखने को मिलता है क्योंकि यहां कई प्रसिद्ध गणेश मंदिर भी हैं। गोवा में गणेश उत्सव की तैयारियां एक महीने पहले ही शुरू हो जाती है। शहरो में रहने वाले लोग इस त्योहार को मनाने के लिए अपने पुश्तैनी घरों में जाते हैं। देश में सभी जगह घर-घर में शुभ मुहर्त में पूजा अर्चना के साथ गणपति स्थापना की जाती है। रोज पूजा एवं धार्मिक आयोजन कर अनन्त चतुर्दशी को विसर्जन किया जाता हैं।

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अब हम चर्चा करेंगे भारत में प्रसिद्ध गणेश मंदिरों की।

 

गणपति के प्रसिद्ध मंदिरों में मुम्बई के श्री सिद्धिविनायक मंदिर का नाम सबसे पहले आता है। कहा जाता है कि इस मंदिर को एक महिला ने बनवाया था जिसकी कोई औलाद नही थी। इस मंदिर में माथा टेकने के लिए बड़ी-बड़ी बॉलीवुड सेलिब्रिटी भी आती हैं। श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई मंदिर पुणे में बना हुआ है। यह मंदिर कई साल पहले श्रीमंत दगडूशेठ और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई ने अपने इकलौते बेटे की याद में बनवाया था जिसे उन्होंने प्लेग की बीमारी में खो दिया था। दोनों ने गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की मूर्ति की स्थापना यहां करवाई थी। जिसके बाद अब हर साल ना केवल श्री दगडूशेठ का परिवार बल्कि आसपास के सभी लोग बड़े जोश के साथ यहां गणेश उत्सव मनाते हैं। गणपति पूले मंदिर महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में स्थित है जहां स्वयंभू गणपति मंदिर स्थित है। यहां का मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि यह देश के उन चुनिंदा गणपति मंदिरों में से एक है जहां मूर्ति का चेहरा पश्चिम की ओर है। 400 साल पुराना यह मंदिर यहां का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है।

 

कनिपकम विनायक मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर में है। कहा जाता है कि इस मंदिर में माथा टेकने से गणपति अपने भक्तों के सारे पाप हर लेते हैं। बप्पा का यह मंदिर नदी के बीचों बीच बना हुआ है। यह मंदिर 11वीं सदी में चोल राजा कुलोतुंग चोल प्रथम ने बनवाया था।

 

मनकुला विनायक मंदिर पुडुचेरी में है मंदिर को 1666 से भी पहले का माना जाता है। शास्त्रों में गणेशजी के कुल 16 रूपों का जिक्र किया गया है। इनमें पुडुचेरी के गणपति जिनका मुख सागर की तरफ है उन्हें भुवनेश्वर गणपति कहा गया है। तमिल में मनल का मतलब रेत और कुलन का मतलब सरोवर से है। बहुत समय पहले यहां गणेश मूर्ति के आसपास रेत ही रेत था इसलिए लोग इन्हें मनकुला विनयागर कहने लगे।

 

केरल में मधुर महागणपति का प्रमुख मंदिर है। बताया जाता है कि शुरुआत में यह भगवान शिव का मंदिर था लेकिन पुजारी के छोटे बेटे ने मंदिर की दीवार पर भगवान गणेश की मूर्ति बना दी। दीवार पर बनाई हुई भगवान गणेश जी की मूर्ति धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाने लगी। उस समय से ये मंदिर भगवान गणेश का बेहद खास मंदिर बन गया। गंगटोक में गणेश टोक मंदिर में माथा टेकने के लिए बहुत सारी सीढियां चढनी पड़ती है। मंदिर के अंदर गणेश जी की विशाल और सुंदर प्रतिमा है। मंदिर के चारों तरफ परिक्रमा पथ से गंगटोक शहर का नजारा मन को मोह लेता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर एवं तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं  देखने को मिलती हैं।

 

राजस्थान के सवाई माधोपुर से लगभग 15 कि.मी दूर रणथंभौर के किले में बना त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर भगवान को चिट्ठी भेजे जाने के लिए मशहूर है। विशेषता यह है कि राजस्थान में रहने वाले लोगों के घर जब कोई मंगल कार्य होता है तो वे सबसे पहले निमंत्रण पत्र रणथंभौर मंदिर के नाम भेजते हैं। जयपुर में मोती डूंगरी गणेश मंदिर राजस्थान में जयपुर का प्रसिद्ध मंदिर है। भगवान गणेश जी के इस मंदिर में लोगों की खास आस्था तथा विश्वास है। 'गणेश चतुर्थी' के अवसर पर यहां काफी भीड़ रहती है। कोटा में खड़े गणेश जी और उदयपुर में बोहरा गणेश जी की मान्यता भी किसी से कम नहीं है।

 

आगे हम चर्चा करते है कि गणेश उत्सव का उदय हमारी आजादी के आंदोलन से कैसे हुआ और आज इसने किस प्रकार भव्य स्वरूप धारण कर लिया है। महाराष्ट्र में सातवाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलाई थी। छत्रपति शिवाजी महाराज भी गणेश जी की उपासना करते थे। पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना शिवाजी की माँ जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सवों को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये। तिलक ने पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत और अंधविश्वास को दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का जरिया बना कर एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में जब सार्वजानिक गणेश पूजन का आयोजन किया तो उनका मकसद सभी जातियो धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब बैठ कर मिल कर कोई विचार कर सके। उस समय पहली बार पेशवाओं के पूज्य देव गणेश को बाहर लाया गया था। 

 

गणेश उत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। बाद में  नागपुर, वर्धा एवं अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था। अंग्रेज भी इससे घबरा गये थे। इस बारे में रोलेट समिति की रिपोर्ट में भी चिंता जतायी और कहा गया कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और। सरोजनी नायडू प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे जो गणेशोत्सवों में जोशीले भाषण दिया करते थे। आज महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश एवं मध्यप्रदेश में ही बड़ी संख्या में गणेशोत्सव मंडल हैं।

 

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक

 

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