अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि जी की असमायिक मौत से पूरा देश स्तब्ध रह गया है तथा अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गया है। महंत की मौत में सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि एक ऐसा महान संत जो पूरे समाज को एक नयी दिशा देता हो, आम जनता की समस्याओं व जिज्ञासाओं का समाधान करता हो तथा जिसके व्यक्तित्व व वाणी का प्रभाव हो, वह आत्महत्या कैसे कर सकता है ? महंत नरेद्र गिरि जी को संपत्ति से भी कोई लेना देना नहीं था, फिर आखिर वह कौन सी बात थी जिसके कारण उन्हें इतना बड़ा अफसोसनाक निर्णय लेना पड़ गया। वह एक ऐसे महान संत थे जिनके पास दिन भर लोग उनसे मिलने के लिए व उनका आर्शीवाद लेने के लिए उनके मठ पर आते रहते थे और वह लगातार अपने दैनिक जीवन के कामों के साथ लोगों के साथ मिलते−जुलते रहते थे लेकिन फिर वहीं चीज कि आखिर ऐसी क्या बात व विवाद था जिसके कारण उन्हें यह कदम उठाना पड़ गया। अभी फिलहाल उनकी मृत्यु के कारणों की गहन जांच चल रही है प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी हर प्रकार जांच व दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की बात कही है। प्रदेश सरकार के सभी मंत्रियों ने भी कहा कि जो भी दोषी होगा उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी। गिरि जी के निधन से आज संत समाज व्याकुल, व्यथित हो रहा है तथा वह पूरे घटनाक्रम की सीबीआई जांच की मांग भी कर रहा है।
महंत नरेंद्र गिरि जी का संत समाज में बहुत सम्मान था। वह एक ऐसे संत थे जिन्होंने विश्व हिंदू परिषद के पूर्व दिवंगत नेता अशोक सिंहल जी के देहावसान के बाद देशभर के संत समाज को एक मंच पर लाने का अनुकरणीय काम किया। नहीं तो अशोक जी के निधन के बाद सभी को लग रहा था कि अब विभिन्न मठों और गुटों में बंटे संत समाज को एक मंच पर आखिर कौन लायेगा। अशोक जी के बाद खाली जगह को भरने का काम महंत नरेंद्र गिरि जी ने कर दिखाया था। महंत नरेंद्र गिरि जी ने अयोध्या आंदोलन से लेकर भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण शुरू होने पर भी अहम भूमिका अदा की। समर्पण निधि अभियान में भी उन्होंने अप्रतिम योगदान दिया था। महंत जी की एक आवाज पर पूरा संत समाज एकजुट हो जाता था।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के रूप में महंत जी की छवि कड़े निर्णय लेने वाले पदाधिकारी के रूप में रही। उन्होंने ऐसे कई निर्णय लिये जिन पर पूरे देशभर में चर्चा हुई। सबसे अधिक चर्चा का विषय बना था फर्जी संतों की सूची जारी करना। उन्होंने फर्जी सूची जारी करके तहलका मचा दिया था और देश के हर टीवी चैनल व सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हुई। सूची वापस लेने के लिए उन पर काफी दबाव बनाया गया लेकिन वह सूची उन्होंने वापस नहीं ली।
नरेंद्र गिरि जी ने 1983 में घर छोड़ा और मन में वैराग्य आने पर गांव से शहर आ गये। उस समय संगम तट पर कुंभ का मेला लगा था। नरेंद्र गिरि श्रीनिरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि के सानिध्य में रहकर उनकी सेवा करने लग गये। कुंभ समाप्त होने के बाद महंत दिव्यानंद उन्हें हरिद्वार लेकर गये। 1985 में उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। इसके बाद श्रीनिरंजनी अखाड़ा के महात्मा व बाघम्बरी गददी के महंत बलवंत गिरि ने उन्हें गुरू दीक्षा दी। बलवंत गिरि के ब्रहमलीन होने पर महंत नरेंद्र गिरि ने 2004 बाघम्बरी मठ के पीठाधीश्वर तथा बड़े हनुमान मंदिर के महंत का कार्यभार संभाला। मठ व मंदिर को भव्य स्वरूप दिलवाया। नासिक कुंभ से पहले 2014 में उन्हें अयोध्या निवासी महंत ज्ञानदास की जगह संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया। अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष बनने के बाद उनका समाज में पद और प्रतिष्ठा बढ़ती चली गयी। उनके मठ में सत्ता विरोधी दलो के नेताओं का आना जाना लगा रहता था। समाजवादी नेता अखिलेश यादव उनके मठ में अक्सर आया जाया करते थे और चुनावों में उनका सहयोग मांगा करते थे।
महंत नरेंद्र गिरि जी ने वर्ष 2019 के अदभुत व शानदार कुंभ के आयोजन में अतिमहत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी और एक प्रकार से कहा जाये तो कुंभ−2019 को दिव्य एवं भव्य बनाने में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी जिसका उल्लेख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी किया है। वर्ष 2017 में प्रदेश में योगी जी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने के बाद उनका प्रभाव और महत्व व्यापक हो गया। महंत नरेंद्र गिरि जी की मुख्यमंत्री से नजदीकियां गहरी हो गयी थीं। जबकि संत समाज में 2017 से पहले यह बात भी प्रचलित थी कि महंत नरेंद्र गिरि जी समाजवादी संत हैं, लेकिन वास्तविकता में ऐसा था नहीं।
महंत नरेंद्र गिरि जी केवल हिंदू समाज के संत थे। वह हिंदुत्व विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। गाय, गंगा व हिंदू आस्थाओं के सभी प्रतीकों के प्रति बहुत संवेदनशील रहते थे। वह धर्मांतरण के खिलाफ थे ओर लव जिहाद के विरोधी भी थे। वह विश्व हिंदू परिषद के कामों में पूरा सहयोग करते थे। अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने पीएम मोदी को बधाई भी दी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके अच्छे रिश्ते थे। मुख्यमंत्री के प्रयागराज पहुंचने पर उन्हें भोजन कराते, हनुमान मंदिर में पूजन कराने से लेकर लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास में मुलाकातों का दौर चलता रहता था। हिंदू धर्म से संबंधित कोई विवाद होने पर वह आगे बढ़कर हिंदू समाज की ओर से अपना व संत समाज का पक्ष रखते थे। उनके विचारों का सम्मान व उन पर चर्चा भी होती था। एक ऐसा महान संत जिसने गीता, रामायण, महाभारत सहित तमाम धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया हो और उन्हें कई विषयों का ज्ञान भी हो ऐसा संत आत्महत्या तो नहीं कर सकता। यह सवाल आज पूरे देशभर में लोगों को परेशान कर रहा है और व्यथित कर रहा है।
- मृत्युंजय दीक्षित