डीटीसी की खस्ता हालत, दिल्ली की महिलाओं के साथ हो रहा है बड़ा धोखा

By संतोष पाठक | Dec 12, 2024

दिल्ली में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने है। यह माना जा रहा है कि फरवरी 2025 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव करवाए जा सकते हैं। इससे पहले ही आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच वोटर लिस्ट से नाम कटवाने और वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हो चुका है। 


विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही आम आदमी पार्टी की सरकार ने श्रेय लेने और दिल्ली के अलग-अलग मतदाता वर्ग को लुभाने का काम भी जोर-शोर से शुरू कर दिया है। बुधवार, 11 दिसंबर को दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने डीटीसी कर्मचारियों से मुलाकात करने के बाद उनकी मांगे मानने की घोषणा कर दी। आतिशी ने डीटीसी कर्मचारियों से मुलाकात करने की तस्वीरों को बुधवार को एक्स पर पोस्ट करते हुए दावा किया, "आज डीटीसी कर्मचारियों के चेहरों पर मुस्कान देखकर सुकून मिला। अपनी मांगें पूरी होने के बाद आज वे सचिवालय आए थे, हमने साथ बैठकर चाय पी। ये सिर्फ़ कर्मचारी ही नहीं, हमारे अपने परिवार के लोग हैं। यही लोग सड़कों पर हमारी दिल्ली को चलाते हैं, दिल्ली की लाइफ़लाइन हैं। हमें गर्व है कि हमारे नेता अरविंद केजरीवाल के मार्गदर्शन में हमारी सरकार ने उनकी समस्याओं को सिर्फ़ 3 हफ्तों में हल कर दिया।" 

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विडंबना देखिए कि, दिल्ली की जो आप सरकार डीटीसी कर्मचारियों की समस्याओं को सिर्फ 3 सप्ताह में हल करने का दावा कर रही है, वह वर्ष 2015 से लगातार सत्ता में है। यानी चुनाव का समय आ गया तो समस्याओं की भी याद आ गई। 


हालांकि एक बात सही है कि डीटीसी, दिल्ली की लाइफ़लाइन हैं। दिल्ली मेट्रो के महंगे किराए को नहीं झेल पाने वाले मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास के लिए डीटीसी आज भी परिवहन का एकमात्र साधन बना हुआ है। लेकिन दिल्ली की लाइफलाइन डीटीसी आज स्वयं अपने जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन ढूंढ रही है। डीटीसी की ज्यादातर बसों की वैलिडिटी एक्सपायर हो चुकी है और विशेष अनुमति लेकर इन्हें मजबूरी में चलाया जा रहा है। डीटीसी की हालत इतनी खराब हो गई है कि बीच सड़क पर बसों के खराब होने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। छोटी-छोटी खराबियों के कारण भी बसें डिपो में पड़ी रहती है। 

दिल्ली सरकार के इस रवैये को दिल्लीवासियों और खासकर महिलाओं के साथ एक बड़ा धोखा माना जा सकता है। क्योंकि आप सरकार ने फ्री बस यात्रा के नाम पर दिल्ली की महिलाओं को ऐसा झुनझुना थमाया हुआ है, जिसकी सच्चाई अब सामने आती जा रही है। दिल्ली की सड़कों से बसें गायब है। दिल्ली में जरूरत की तुलना में इतनी कम बसें सड़कों पर दौड़ रही है कि महिलाओं और लोगों को घंटों तक बस स्टॉप पर इंतजार करना पड़ता है। मजबूरी में महिलाओं और अन्य यात्रियों को अनाप-शनाप भाड़ा देकर बैटरी वाले रिक्शा या ग्रामीण सेवा में सफर करना पड़ता है। बाहरी दिल्ली और यमुना पार के इलाकों की हालत तो और भी बुरी है। अति व्यस्तम और ज्यादा सवारियों वाले बस रूटों पर भी बस की संख्या इतनी कम कर दी गई है कि हालत लगातार भयावह होते जा रहे हैं। अरविंद केजरीवाल ने एक जमाने में जिस सुंदर नगरी में अनशन किया था, अगर वह बिना किसी ताम-झाम के उसी बस स्टॉप पर चले जाएं या उससे महज कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर सीमा पुरी डिपो या नंद नगरी डिपो पर चले जाएं तो सारी सच्चाई उन्हें पता लग जाएगी। 


बड़ी बात तो यह है कि, अगर किसी तरह से महिलाओं को बस मिल भी जाती है तो उनके साथ ड्राइवर और कंडक्टर का व्यवहार भी बहुत ही अपमानजक होता है। डीटीसी के कई ड्राइवरों और कंडक्टरों को लगता है कि महिला सवारी उनके पैसे से फ्री में सफर कर रही है। हालात कितने खराब हो गए हैं कि इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि डीटीसी बसों में रोजाना सफर करने वाली महिलाएं भी अब यह कहने लगी हैं कि फ्री बस सेवा उनके लिए सजा की सेवा बन गई हैं। उनसे भले ही किराया ले लो लेकिन बस की संख्या और सर्विस को तो ठीक कर दो। बस स्टॉप पर सही तरीके से बस कैसे रोका जाता है, यह भी ड्राइवर अब भूलते जा रहे हैं। 


इसलिए अगर अरविंद केजरीवाल दिल्ली की महिलाओं के साथ किए जा रहे इस धोखे को वाकई बंद करना चाहते हैं तो उन्हें दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रही डीटीसी बसों का असली आंकड़ा जारी करना चाहिए। प्रत्येक रूट पर कितनी बसें दौड़ रही हैं और उसकी एक्चुअल टाइमिंग क्या है, यह भी जारी करना चाहिए। अगर कोई बस बीच रास्ते मे खराब हो जाती है तो रियल टाइम पर वह डेटा सोशल मीडिया पर अपलोड और अपडेट होना चाहिए। ड्राइवर, कंडक्टर और मार्शल को सवारियों खासकर महिलाओं के साथ बातचीत करने की स्पेशल ट्रेनिंग देनी चाहिए। इन सबकी जानकारी सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पर आनी चाहिए। इसके साथ ही शिकायत निवारण की भी उचित व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो इस बार दिल्ली के महिलाओं की नाराजगी उन पर भारी पड़ सकती है।


- संतोष पाठक

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)

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