फिलहाल तो इंडिया गठबंधन के घटक आपस में ही एक दूसरे को झुकाने में लगे हैं

By रमेश सर्राफ धमोरा | Jul 27, 2023

पिछले नौ वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को चुनौती देने के लिए कांग्रेस सहित देश के 26 विपक्षी दलों के नेताओं ने एक नए राजनीतिक गठबंधन बनाने की घोषणा की है। बेंगलुरु में आयोजित विपक्षी दलों की बैठक में शामिल हुए दलों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के स्थान पर इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के नाम पर एक नया गठबंधन बनाया है। विपक्ष के इंडिया गठबंधन के संयोजक की घोषणा अभी तक नहीं हो पाई है।


विपक्ष का कहना है कि उनका इंडिया गठबंधन पहले के यूपीए की तुलना में अधिक मजबूत है। इसमें ऐसे राजनीतिक दल भी शामिल हैं जो अभी तक आपस में एक दूसरे के विरोधी रहे हैं। कांग्रेस के धुर विरोधी रहे अरविंद केजरीवाल इंडिया गठबंधन में शामिल हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी वामपंथी दल व कांग्रेस भी इंडिया गठबंधन में एक साथ शामिल हुए हैं। केरल में आमने-सामने चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस व वामपंथी दल एकजुट नजर आ रहे हैं।

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इंडिया गठबंधन में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, मराठा क्षत्रप शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल, फारूक अब्दुल्ला, हेमंत सोरेन, एमके स्टालिन, सीताराम येचुरी, डी राजा, अखिलेश यादव, महबूबा मुफ्ती सहित बहुत से वरिष्ठ नेता शामिल हैं। इंडिया गठबंधन के पास अभी लोकसभा की कुल 142 सीटें हैं। मगर गठबंधन में शामिल 11 दलों का तो लोकसभा में एक भी सांसद नहीं हैं। इस गठबंधन में शामिल पार्टियों की अभी देश के 11 प्रांतों में सरकार चल रही है। जिनमें कांग्रेस की चार प्रदेशों कर्नाटका, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश में वहीं जनता दल (यूनाइटेड) व राष्ट्रीय जनता दल की बिहार में, तृणमूल कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में, झारखंड मुक्ति मोर्चा की झाारखण्ड में, आम आदमी पार्टी की दिल्ली व पंजाब में, द्रविड़ मुनेत्र कषगम की तमिलनाडु मे, वामपंथी दलों की केरल में सरकार है।


इंडिया गठबंधन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कषगम, आम आदमी पार्टी (आप), जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल (कमेरावादी), जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कझगम (एमडीएमके), विदुथालाई चिरुथैगल कच्ची (वीसीके), कोंगुनाडु मक्कल देसिया काची (केएमडीके), मनिथानेय मक्कल काची (एमएमके), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (मणि), केरल कांग्रेस (जोसेफ) शामिल हैं।


इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस को छोड़ कर अन्य राजनीतिक दलों का अपने-अपने प्रदेशों में ही प्रभाव है। यदि इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दल अपने पुराने मतभेद भुलाकर एकजुटता से चुनाव लड़ते हैं और आपसी समझदारी से सीटों का बंटवारा कर भाजपा के समक्ष एक ही उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारते हैं तो निश्चित रूप से भाजपा को कड़ी चुनौती दे पाएंगे। हालांकि इंडिया गठबंधन में 26 राजनीतिक दल तो शामिल हो गए हैं। लेकिन उनमें अभी भी चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर संशय बरकरार है। आम आदमी पार्टी चाहती है कि दिल्ली व पंजाब को कांग्रेस उनके लिए छोड़ दे। बदले में अन्य प्रदेशों में आप कांग्रेस के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारेगी। यही स्थिति पश्चिम बंगाल में है जहां ममता बनर्जी चाहती है कि कांग्रेस व वामपंथी दल उनके खिलाफ चलाए जा रहे अपने राजनीतिक अभियानों को रोककर उनका सहयोग करें ताकि भाजपा को हराया जा सके।


ममता बनर्जी का कहना है कि बंगाल में वैसे भी वामपंथी दलों व कांग्रेस का आधार समाप्त हो गया है। ऐसे में यदि वह तृणमूल कांग्रेस को सहयोग करते हैं तो पूरे बंगाल में विपक्षी दलों का प्रभाव बढ़ने से भाजपा का सफाया हो सकता है। पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों तक लगातार वाम मोर्चे का शासन रहा था। वाम मोर्चे को हराकर ही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी बंगाल में सत्तारुढ़ हुई है। ऐसे में वामपंथी दलों को लगता है कि यदि उन्होंने पश्चिम बंगाल को ममता दीदी के हवाले कर दिया तो वहां उनका रहा सहा जनाधार भी समाप्त हो जाएगा। केरल में भी कांग्रेस व वामपंथी दल आमने-सामने चुनाव लड़ते हैं। मगर देश के अन्य प्रदेशों में मिलकर चुनाव लड़ते हैं। ममता बनर्जी व अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस से केरल की तरह ही सामंजस्य चाहते हैं।


पटना में आयोजित हुयी 16 राजनीतिक दलों की मीटिंग से भाजपा में भी हलचल मच गई थी। इसी कारण बेंगलुरु मीटिंग के दिन ही भाजपा ने नई दिल्ली में एनडीए गठबंधन की बैठक का आयोजन किया और उसमें छोटे बड़े मिलाकर 38 दलों के नेताओं को शामिल किया था। इतना ही नहीं उस बैठक में पूरे समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहे थे। केंद्र में दूसरी बार सत्तारुढ़ होने के बाद भाजपा ने शायद पहली बार एनडीए गठबंधन की बैठक बुलाई थी। वह भी उस स्थिति में जब उनको लगने लगा कि विपक्षी दलों का गठबंधन राजनीतिक रूप से उनके गठबंधन से बड़ा होने जा रहा है। भाजपा ने एनडीए की बैठक में ऐसे दलों को भी शामिल किया जो हाल ही में एनडीए से जुड़े थे। एनडीए की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी दलों के नेताओं की बातें सुनीं और उन पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की बात भी कही।


विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है और उसका पूरे देश में प्रभाव भी है। ऐसे में कांग्रेस के नेता चाहेंगे कि इस गठबंधन की कमान कांग्रेस के हाथों में रहे। जिससे सभी दलों में समन्वय बनाकर आगे बढ़ा जा सके। वैसे भी इंडिया गठबंधन में शामिल अधिकांश राजनीतिक दल पहले से ही यूपीए में शामिल थे। जिसका नेतृत्व कांग्रेस पार्टी कर रही थी। हालाँकि अरविन्द केजरीवाल, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार जैसे नेता नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस को नए बने गठबंधन की कमान मिले।


देश के विपक्षी दलों की आपसी फूट का फायदा उठाकर सरकार अपनी मर्जी से काम करती है। राजनीति में कहा जाता है कि जिस देश या प्रदेश में विपक्षी दल मजबूत नहीं होंगे वहां की सरकारें मनमानी करेंगी। इंडिया गठबंधन में शामिल विपक्षी दलों के आगाज को देख कर तो लगता है कि अगले चुनाव तक उनकी एकजुटता बनी रहे। कांग्रेस पार्टी ने अपने दिल्ली व पंजाब के नेताओं के विरोध के बावजूद दिल्ली सरकार पर केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के विरोध में आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर संसद में समर्थन देने की घोषणा कर जता दिया है कि विपक्ष की मजबूती के लिए वह कितना भी झुकने को तैयार है। मीटिंग से पहले आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को अल्टीमेटम दे दिया था कि यदि कांग्रेस संसद में उनके समर्थन कि घोषणा नहीं करती है तो वो अगली मीटिंग में शामिल नहीं होंगे। आप के दबाव के चलते कांग्रेस को झुकना पड़ा। इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के नेता जब तक एक दूसरे कि भावना का सम्मान नहीं करेंगे तब तक इस गठबंधन का सफल होना मुश्किल लगता है।


-रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)

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