तमिलनाडु में मंदिरों की नगरी तंजावुर घूमने आइए, मन प्रसन्न हो जायेगा

By प्रीटी | Feb 25, 2019

तंजावुर अथवा 'तंजौर' तंजावुर ज़िले का प्रशासिक मुख्यालय है, जो तमिलनाडु राज्य, दक्षिण-पूर्वी भारत में कावेरी के डेल्टा में स्थित है। नौवीं से ग्याहरवीं शताब्दी तक चोलों की आरंभिक राजधानी तंजौर, विजयनगर, मराठा तथा ब्रिटिश काल के दौरान भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण रहा। अब यह एक पर्यटक स्थल है और इसके आकर्षणों में बृहदीश्वर चोल मंदिर, विजयनगर क़िला और मराठा राजकुमार सरफ़ोजी का महल शामिल है। कपास मिल, पारंपरिक हथकरघा और वीणा निर्माण यहां की प्रमुख औद्योगिक गतिविधियां हैं। तमिलनाडु के पूर्वी मध्यकाल में तंजौर या तंजावुर नगरी चोल साम्राज्य की राजधानी के रूप में काफ़ी विख्यात थी। तंजौर को 'मंदिरों की नगरी' कहना उपयुक्त होगा, क्योंकि यहाँ पर 75 छोटे-बड़े मन्दिर हैं।

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स्थिति तथा इतिहास

 

वर्तमान में यह नगर चेन्नई से लगभग 218 मील दक्षिण-पश्चिम में कावेरी नदी के तट पर स्थित है। चोल वंश ने 400 वर्ष से भी अधिक समय तक तमिलनाडु पर राज किया। इस दौरान तंजावुर ने बहुत उन्नति की। इसके बाद नायक और मराठों ने यहाँ शासन किया। वे कला और संस्कृति के प्रशंसक थे। कला के प्रति उनका लगाव को उनके द्वारा बनवाई गई उत्‍कृष्‍ट इमारतों से साफ़ झलकता है।

 

मंदिर

 

तंजौर चोल शासक राजराज (985-1014 ई.) द्वारा निर्मित भव्य वृहदेश्वर मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। इसका शिखर 190 फुट ऊँचा है। शिखर पर पहुँचने के लिए 14 मंज़िले हैं। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य का अद्भुत नमूना है। यह चारों ओर से लम्बी परिखा से परिवेष्ठित है। इसमें एक विशाल शिवलिंग है। पत्थर का बनाया गया एक विशाल नंदी मंदिर के सामने प्रतिष्ठित है। मंदिर में विशाल तोरण एवं मण्डप हैं। यह वृहद् भवन आधार से चोटी तक नक़्क़ाशी और अलंकृत ढाँचों से सुसज्जित हैं। यह मंदिर अन्य सहायक मन्दिरों के साथ एक प्रांगण के केन्द्र में स्थित है, किंतु सम्पूर्ण क्षेत्र उच्च शिखर द्वारा प्रभावित है। इसे राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

 

चोल शासक

 

चोल शासकों के हाथों से कालांतर में तंजौर होयसल एवं पांड्य राज्यों के शासनाधीन हो गया। अलाउद्दीन ख़िलजी के नायक मलिक काफ़ूर ने इस पर आक्रमण कर लूटा। तदनंतर तंजौर विजय नगर साम्राज्य का अंग बन गया। 16वीं शताब्दी में यहाँ नायक वंश ने अपना राज्य स्थापित कर लिया। फिर 1674ई. में मराठों ने इस पर अधिकार कर लिया। यहाँ से विभिन्न शासकों के अभिलेख, मुद्राएँ आदि प्राप्त हुई हैं। होयसल नरेश सोमेश्वर एवं रामनाथ के अभिलेख तंजौर से प्राप्त हुए हैं।

 

कैसे पहुँचें

 

-यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा त्रिची है जो यहाँ से 65 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा चेन्नई के रास्ते भी यहाँ पहुँच सकते हैं।

 

-तंजावुर तमिलनाडु के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त कोच्चि, एर्नाकुलम, तिरुवनंतपुरम और बैंगलोर से यहाँ सड़क मार्ग से पहुँचा जा सकता है।

 

-तंजावुर का रेलवे जंक्शन त्रिची, चेन्नई और नागौर से सीधी रेलसेवा द्वारा जुड़ा हुआ है।

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ब्रगदीश्वर मंदिर

यह मंदिर भारतीय शिल्प और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। मंदिर के दो तरफ खाई है और एक ओर अनाईकट नदी बहती है। अन्य मंदिरों से अलग इस मंदिर में गर्भगृह के ऊपर बड़ी मीनार है जो 216 फुट ऊंची है। मीनार के ऊपर कांसे का स्तूप है। मंदिर की दीवारों पर चोल और नायक काल के चित्र बने हैं जो अजंता की गुफाओं की याद दिलाते हैं। मंदिर के अंदर नंदी बैल की विशालकाय प्रतिमा है। यह मूर्ति 12 फीट ऊंची है और इसका वजन 25 टन है।

 

सरस्वती महल पुस्तकालय

इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इसकी स्थापना 1700 ईसवी के आस-पास की गई थी। इस संग्रहालय में भारतीय और यूरोपीयन भाषाओं में लिखी हुई 44000 से ज़्यादा ताम्रपत्र और काग़ज़ की पांडुलिपियां देखने को मिलती हैं।

 

महल

सुंदर और भव्य इमारतों की इस शृंखला में से कुछ का निर्माण नायक वंश ने 1550 ई. के आसपास कराया था और कुछ का निर्माण मराठों ने कराया था। दक्षिण में आठ मंजिला गुडापुरम है जो 190 फीट ऊंचा है।

 

तंजावुर ज़िला

तंजावुर ज़िला 8,300 वर्ग किमी समतल मैदान, उपजाऊ कावेरी डेल्टा का एक हिस्सा है, जो देश के महत्त्वपूर्ण चावल उत्पादक क्षेत्रों में एक है, जो पाक जलडमरूमध्य और बंगाल की खाड़ी के संगम, कल्लिमेड अंतरीप (प्वांइट कैलिमेअर) पर समाप्त होता है। इस डेल्टा में कावेरी नदी से निकली नहरों से सिंचाई होती है, कई नहरें तो पिछली दस शताब्दियों से अस्तित्व में हैं। चावल, चीनी और मूंगफली यहाँ की मुख्य फ़सलें हैं। खाद्यान्न प्रसंस्करण यहां का प्रमुख उद्योग है। इस ज़िले में कई शहर विकसित हुए हैं, जिनमें तंजावुर, कुंबकोणम और नागापट्टिम बड़े शहर हैं।


बृहदेश्वर मंदिर

इस मंदिर का निर्माण महान चोल राजा राजराज चोल ने करवाया था। यह मंदिर भारतीय शिल्प और वास्तु कला का अद्भुत उदाहरण है। मंदिर के दो तरफ खाई है और एक ओर अनाईकट नदी बहती है। अन्य मंदिरों से अलग इस मंदिर में गर्भगृह के ऊपर बड़ी मीनार है जो 216 फुट ऊंची है। मीनार के ऊपर कांसे का स्तूप है। मंदिर की दीवारों पर चोल और नायक काल के चित्र बने हैं जो अजंता की गुफाओं की याद दिलाते हैं। मंदिर के अंदर नंदी बैल की विशालकाय प्रतिमा है। यह मूर्ति 12 फीट ऊंची है और इसका वजन 25 टन है। नायक शासकों ने नंदी को धूप और बारिश से बचाने के लिए मंडप का निर्माण कराया था। मंदिर में मुख्य रूप से तीन उत्सव मनाए जाते हैं- मसी माह (फरवरी-मार्च) में शिवरात्रि, पुरत्तसी (सितंबर-अक्टूबर) में नवरात्रि और ऐपस्सी (नवंबर-दिसंबर) में राजराजन उत्सव। इस ज़िले में कई शहर विकसित हुए हैं, जिनमें तंजावुर, कुंबकोणम और नागापट्टिम बड़े शहर हैं।

 

सरस्वती महल पुस्तकालय

इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों का महत्वपूर्ण संग्रह है। इसकी स्थापना 1700 ईसवी के आस-पास की गई थी। इस संग्रहालय में भारतीय और यूरोपीयन भाषाओं में लिखी हुई 44000 से ज्यादा ताम्रपत्र और कागज की पांडुलिपियां देखने को मिलती हैं। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक पांडुलिपियां संस्कृत में लिखी हुई हैं। कुछ पांडुलिपियां तो बहुत ही दुर्लभ हैं। इनमें तमिल में लिखी औषधि विज्ञान की पांडुलिपियां भी शामिल हैं।

 

तंजौर महल

सुंदर और भव्य इमारतों की इस श्रृंखला में से कुछ का निर्माण नायक वंश ने 1550 ई. के आसपास कराया था और कुछ का निर्माण मराठों ने कराया था। दक्षिण में आठ मंजिला गुडापुरम है जो 190 फीट ऊंचा है। इसका प्रयोग आसपास की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जाता था। गुडापुरम के आगे महल की छत पर मडामलगाई नामक इमारत बनाई गई थी जो छ: मंजिला है।

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तिरुवयरु

तंजावुर से 13 किलोमीटर दूर इस स्थान पर संत त्यागराज ने अपना जीवन बिताया था और यहीं पर उन्होंने समाधि ली थी। तिरुवैयरु का प्रसिद्ध मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। संत त्यागराज की याद में यहां हर साल जनवरी में आठ दिन का संगीत समारोह आयोजित किया जाता है।

 

त्यागराजस्वामी मंदिर, तंजौर

तंजावुर से 55 किलोमीटर दूर तिरुवरुर स्थित त्यागराजस्वामी मंदिर तमिलनाडु का सबसे बड़ा रथ शैली का मंदिर है। यहां त्यागराज, कमलंबा और वनमिक नथर का निवास है। मंदिर के स्तंभ और कमरे बहुत ही सुंदर हैं। राजराज चोलन त्यागराजस्वामी के परम भक्त थे। तिरुवरुर संत त्यागराज का जन्मस्थान भी है।

 

वैठीश्वरन कोवली, तंजौर

यह प्राचीन मंदिर शिव को समर्पित है। इस मंदिर का गुणगान अनेक संत कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है। इसके स्तंभों और मंडपों की सुंदरता से आकर्षित होकर अनेक श्रद्धालु यहां आते हैं। कहा जाता है कि मंगल, कार्तिकेय और जटायु ने यहां भगवान शिव की स्तुति की थी। इस मंदिर को अगरकस्थानम भी माना जाता है।

 

-प्रीटी

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