मिल संगठनों ने एक बयान में कहा कि वैश्विक संघर्षों के दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव, कपास पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क होने और मानव-निर्मित फाइबर (एमएमएफ) के गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों से संबंधित मुद्दों के कारण उनके क्षमता उपयोग में गिरावट आई है। उनका क्षमता का इस्तेमाल एक साल से 50 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक गिर गया है। मिल संगठनों के मुताबिक, इस स्थिति ने कई कताई मिलों, खासकर छोटे एवं मझोले स्तर की मिलों को गंभीर वित्तीय तनाव में डाल दिया है, जिससे वे कर्ज चुकाने और स्थायी शुल्कों की भरपाई में असमर्थ हो गई हैं।
इन चुनौतियों को देखते हुए कपड़ा मिल संघों ने वित्त मंत्री से आग्रह किया है कि वे बैंकिंग क्षेत्र को एक विशेष मामला मानकर इस उद्योग को वित्तीय सहायता उपायों का विस्तार करने की सलाह दें, और मूल कर्ज राशि के पुनर्भुगतान के लिए एक साल की मोहलत दें। भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (सिटी) के चेयरमैन राकेश मेहरा ने कहा, “हम वित्त मंत्री से अपील करते हैं कि कताई क्षेत्र में आए अप्रत्याशित संकट को कम करने, कई लाख लोगों की नौकरी जाने से रोकने, बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने और निर्धारित निर्यात लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हमारी स्थिति पर विचार करें।