By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 06, 2019
नयी दिल्ली। केवल छह महीने पहले तक ‘स्ट्राइक रेट’ के बहाने उन्हें भारतीय टेस्ट टीम की अंतिम एकादश में जगह नहीं मिली थी लेकिन आक्रामकता के वर्तमान दौर में टेस्ट क्रिकेट के वास्तविक विद्यार्थी चेतेश्वर पुजारा ने अपनी शैली पर अडिग रहकर ऐसा कमाल किया कि अब युवा क्रिकेटरों को उनसे सीख लेने की सलाह दी जा रही है। उन्हें ‘भारतीय दीवार’ राहुल द्रविड़ का उत्तराधिकारी तो अक्टूबर 2010 में उसी दिन से कहा जाने लगा था जब उन्होंने अपने पदार्पण टेस्ट मैच में आस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरी पारी में 72 रन की प्रवाहमय पारी खेली थी। समय गुजरने के साथ हालांकि भारतीय टीम प्रबंधन को पुजारा का सबसे मजबूत पक्ष यानि क्रीज पर अंगद की तरह पांव जमाकर रक्षात्मक बल्लेबाजी करना ही सबसे कमजोर लगने लगा था।
लेकिन 25 जनवरी 1988 को राजकोट में जन्में पुजारा ने अपना मजबूत पक्ष कमजोर नहीं होने दिया। पूर्व कोच अनिल कुंबले के शब्द उनके कानों में गूंजते रहे कि ‘स्ट्राइक रेट गेंदबाजों के लिये होता है टेस्ट मैचों में बल्लेबाजों के लिये नहीं।’ विकेट बचाये रखकर पारी संवारना और गेंद को उसकी खूबी के अनुसार खेलना पुजारा का मूलमंत्र है जिसे अब आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर भी आत्मसात करने के लिये लालयित हैं। लगता है समय बदल गया है। टीम प्रबंधन के अहम अंग कप्तान विराट कोहली की भी समझ में आ गया है कि पुजारा की गेंदबाजों को थका देने वाली पारियों के बिना वह टेस्ट मैच नहीं जीत सकते। कम से आस्ट्रेलिया में तो यही नजर आ रहा है जहां पुजारा अभी तक चार मैचों की सात पारियों में 74.42 की औसत से 521 रन बना चुके हैं जिसमें तीन शतक शामिल हैं।
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मैच जीतने के लिये 20 विकेट लेने जरूरी हैं लेकिन उतना ही जरूरी आपका अच्छा खासा स्कोर होना भी है। इंग्लैंड में बल्लेबाज नहीं चले थे तो भारतीय टीम हार गयी थी लेकिन आस्ट्रेलिया में एक पुजारा ने अंतर पैदा कर दिया। तभी तो केविन पीटरसन ने कहा, ‘‘चेतेश्वर पुजारा जो टेस्ट क्रिकेट में कर रहा है उसके लिये ही आप एक क्रिकेटर के रूप में सम्मान हासिल करते हो। उनकी पारियां कौशल से भरी टी20 पारियों से कहीं बेहतर है। युवा खिलाड़ियों, देखो, सीखो और सुनो।’’ जनवरी 2001 में केवल 12 साल की उम्र में पश्चिमी क्षेत्र की तरफ से अंडर-14 टूर्नामेंट में 516 गेंदों पर नाबाद 306 रन बनाने वाले चेतेश्वर को उनके पिता और पूर्व रणजी रणजी खिलाड़ी अरविंद पुजारा ने बचपन से ही यह सीख दी थी कि लंबी अवधि के मैचों में गेंद छोड़ना और रक्षात्मक बल्लेबाजी करना भी एक कला है। आईपीएल जैसे धनाढ्य लीग से लगातार दुत्कार दिये जाने के बावजूद पुजारा ने पिता की सीख पर ही अमल किया।
पिता की सीख के दम पर इंग्लैंड के खिलाफ अहमदाबाद और आस्ट्रेलिया के खिलाफ हैदराबाद और रांची में बेहतरीन दोहरे शतक उनके बल्ले से निकलते हैं। रांची की उनकी धीमी पारी को भला कौन भुला सकता है जब उन्होंने भारत को हार से बचाया था या फिर श्रीलंका में सलामी बल्लेबाज के रूप में खेली गयी नाबाद 145 रन की पारी जब उन्हें एक ओपनर के चोटिल होने पर अंतिम एकादश में जगह मिली थी। लेकिन पुजारा इसी के लिये बने हैं। चार साल पहले सिडनी में उन्हें रोहित शर्मा की खातिर टीम से बाहर किया जाता है और चार साल बाद वह उसी मैदान पर 193 रन की लाजवाब पारी खेलते हैं। वेस्टइंडीज में 2016 में भी उन्हें रोहित के लिये अपनी जगह छोड़नी पड़ी थी और 2018 में एजबेस्टन में तीसरे नंबर पर उनकी जगह केएल राहुल को प्राथमिकता दी गयी थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी पुजारा ने अपना धैर्य और एकाग्रता बनाये रखी क्योंकि वे जानते हैं कि समय समय पर इन दो खूबियों ने उनकी नैया पार लगायी है। एजबेस्टन में भारतीय टीम हार गयी और पुजारा को नाटिंघम में एकादश में शामिल कर दिया गया। वह दूसरी पारी में 72 रन बनाकर भारत की 203 रन से जीत में अहम भूमिका निभाते हैं।
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इसके बाद साउथम्पटन में उन्होंने नाबाद 132 रन की लाजवाब पारी खेली लेकिन आस्ट्रेलिया के वर्तमान दौरे ने तो पुजारा का करियर ही बदल कर रख दिया। एडिलेड में 123 और 71 रन की उनकी पारियां मैच में अंतर पैदा कर गयीं और भारत 31 रन से जीत गया। पर्थ में उनका बल्ला नहीं चला और भारत हार गया। मेलबर्न में वह शतक जड़ते हैं और भारत श्रृंखला में 2-1 की अजेय बढ़त हासिल कर लेता है। अब सिडनी में उनकी पारी ने भारत की श्रृंखला में जीत लगभग सुनिश्चित कर दी है। द्रविड़ ने 2002 में हैंडिग्ले, 2003 में एडिलेड, 2004 में रावलपिंडी और 2006 में किंग्सटन में जो पारियां खेली थी, पुजारा ने जोहानिसबर्ग (2013), नाटिघम, एडिलेड, मेलबर्न और सिडनी में वैसी ही जिम्मेदारी भरी पारियां खेलकर दिखा दिया है कि वह ‘श्रीमान भरोसेमंद’ के सच्चे उत्तराधिकारी हैं।