Tamil Nadu की राजनीति जो करवट ले रही है वह राष्ट्रीय परिदृश्य पर बड़ा असर डालने वाली है

By नीरज कुमार दुबे | Apr 18, 2024

तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं। यहां सत्तारुढ़ द्रमुक ने कांग्रेस और वामदलों के साथ गठबंधन किया है तो विपक्षी अन्नाद्रमुक ने एआईएमआईएम के साथ गठजोड़ किया है तो दूसरी तरफ भाजपा ने कुछ क्षेत्रीय दलों को एनडीए में शामिल करवा कर चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह इस बार तमिलनाडु में सघन प्रचार किया है उससे प्रदर्शित होता है कि उन्हें इस बार तमिलनाडु से काफी अपेक्षाएं हैं। यह अपेक्षाएं कितनी पूरी होती हैं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन इतना तो दिख ही रहा है कि भाजपा पिछले लोकसभा चुनावों की तरह इस बार तमिलनाडु में खाली हाथ नहीं रहेगी।


तमिलनाडु में इस समय देखने को मिल रहा है कि सभी राजनीतिक दलों ने सोशल इंजीनियरिंग पर खास ध्यान दिया है। राज्य में द्रमुक और अन्नाद्रमुक के पास अपना-अपना परम्परागत वोट बैंक है। अब भाजपा की ओर से भी दावेदारी जताने से बाकी सबके समीकरण थोड़े-बहुत बिगड़ते दिख रहे हैं। राज्य में कन्याकुमारी और तिरुनेलवेली ऐसे क्षेत्र हैं जहां भाजपा और कांग्रेस का जनाधार स्थानीय दलों के मुकाबले अच्छा है। पिछले चुनावों में द्रमुक ने राज्य में बाकी सभी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था और इस बार भी वह पिछला प्रदर्शन दोहराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी अन्नाद्रमुक भी द्रमुक को परास्त करने के लिए प्रयासरत है। इस बार अन्नाद्रमुक यह सुनिश्चित करने के लिए पसीना बहा रही है कि सभी जातियों के मतदाता पार्टी के साथ रहें और विद्रोही नेताओं- टीटीवी दिनाकरन और ओ पन्नीरसेल्वम की ओर ना जाएं।

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दूसरी ओर, मारवाड़ और पिल्लई जोकि अगड़ी जाति है, उनके अलावा, भाजपा सभी दलित समुदायों तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। वहीं द्रमुक को अपने गठबंधन की अंकगणितीय ताकत और तीन साल की सामाजिक कल्याण योजनाओं के अलावा, सभी समुदायों और अल्पसंख्यक वोट बैंक के समर्थन पर भरोसा है। हम आपको बता दें कि क्षेत्र के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में युवा तमिल राष्ट्रवादी संगठन नाम तमिझार काची का प्रभाव भी देखने को मिल रहा है जिसे 18-25 आयु वर्ग के वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिलने की संभावना है। देखने में आ रहा है कि डिंडीगुल, मदुरै, विरुधुनगर और शिवगंगा में लड़ाई द्रमुक और अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधनों के बीच है, जबकि रामनाथपुरम और थेनी में त्रिकोणीय मुकाबला है, जिसमें ओपीएस और टीटीवी खुद मैदान में उतरे हुए हैं। इसके अलावा थूथुकुडी, जहां कनिमोझी करुणानिधि उम्मीदवार हैं उसके अलावा तेनकासी (एससी) में तस्वीर सत्तारुढ़ द्रमुक के लिए अच्छी दिख रही है। वहीं तिरुनेलवेली में मुख्य लड़ाई रॉबर्ट ब्रूस (कांग्रेस) और नैनार नागेंद्रन (भाजपा) के बीच होती दिख रही है। जबकि कन्याकुमारी में चुनावी लड़ाई स्पष्ट रूप से धर्म पर विभाजित दिख रही है।


हम आपको बता दें कि भाजपा तमिलनाडु में लंबे समय से हिंदू नादर और मरावारों का समर्थन हासिल करने की दिशा में काम कर रही है। रिपोर्टें हैं कि नादर और मारवारों का बड़ा वर्ग भाजपा की ओर मुड़ रहा है। इसके अलावा गठबंधन के कारण दलित वोटों का बड़ा हिस्सा डीएमके को मिलने की संभावना है। इसके अलावा तिरुनेलवेली, थूथुकुडी और कन्याकुमारी में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी हैं और इन लोगों का झुकाव सामान्य तौर पर डीएमके की ओर अधिक है। डिंडीगुल में लड़ाई सीपीआई (एम) के सचिदानंदम और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के 'नेल्लई' मुबारक के बीच है, जो एआईएडीएमके के दो पत्तों वाले चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि बीजेपी गठबंधन के पीएमके उम्मीदवार थिलागाबामा तीसरे स्थान पर नजर आ रहे हैं। वहीं मदुरै में अन्नाद्रमुक के उम्मीदवार पी. सरवनन सीपीआई (एम) के उम्मीदवार सु वेंकटेशन को कड़ी टक्कर दे रहे हैं और उन्हें "नॉन परफॉर्मर" बता रहे हैं, जबकि विरुधुनगर में चुनावी मुकाबला मनिकम के बीच सिमटने की संभावना है। वहीं शिवगंगा में कार्ति पी. चिदम्बरम अन्नाद्रमुक के ए जेवियरडोस और भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे देवनाथन यादव से लड़ रहे हैं। तिरुनेलवेली में भाजपा उम्मीद कर रही है कि अन्नाद्रमुक की आंतरिक खींचतान से उसे फायदा होगा।


कुल मिलाकर देखें तो ऐसा लगता है कि राज्य में सत्तारुढ़ द्रमुक 17 सीटों पर जीत हासिल कर सकता है। वहीं भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए 6 सीटों पर जीत हासिल कर सकता है जिसमें से चार पर भाजपा को जीत मिल सकती है। कांग्रेस को तमिलनाडु में आठ सीटों पर जीत मिल सकती है जबकि विपक्षी अन्नाद्रमुक के खाते में चार सीटें जाती दिख रही हैं।


-नीरज कुमार दुबे

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