By अंकित सिंह | Mar 22, 2024
प्रभा साक्षी के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमेशा की तरह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) मौजूद रहे। इस दौरान हमने रूस-यूक्रेन युद्ध, इसराइल और हमार संघर्ष, पाकिस्तान का अफगानिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, पीएम मोदी का भूटान दौरा और आस्ट्रेलिया-चीन की दोस्ती पर चर्चा की। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने सभी विषयों पर विस्तार से बताया। साथ ही साथ यह भी बताने की कोशिश की कि भारत के लिए कहां फायदा है और कहां नुकसान है।
- रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी ने कहा अभी भी यह जबरदस्त तरीके से जारी है। रूस ने अपनी बढ़त बना रखी है। आर्थिक तौर पर भी रूस मजबूत हुआ है। दूसरी ओर यूक्रेन लगातार कमजोर होता दिखाई दे रहा है। यूक्रेन की हालात पूरी तरीके से खराब हो चुकी है। उसके पास ना तो इंफ्रास्ट्रक्चर बचा है और ना ही हथियार है। व्लादिमीर पुतिन के फिर से राष्ट्रपति बनने के बाद लड़ाई और तेज होगी। उन्होंने कहा कि रूस ने खुद को रक्षा के क्षेत्र में भी मजबूत किया है। स्थिति ऐसी है कि अगर यूक्रेन की ओर से एक वार किया जाता है तो बदले में रूस 22 वार करता है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि यूक्रेन पूरी तरीके से हाथ खड़े कर चुका है। यूक्रेन हमला जरूर कर रहा है कि लेकिन रूस ने उसको कंट्रोल कर रखा है। जहां तक प्रधानमंत्री मोदी का सवाल है तो उन्होंने यूक्रेन और रूस के राष्ट्रपति दोनों से बातचीत की है। इसका मतलब साफ है कि भारत बैक चैनल कहीं ना कहीं दोनों देशों के बीच बातचीत कराने की कोशिश कर रहा है। भारत का शुरू से मानना रहा है कि बातचीत के जरिए ही समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
- इजरायल-हमास युद्ध को लेकर भी हमने डीएस त्रिपाठी से सवाल पूछा। उन्होंने कहा की स्थिति भयंकर है। 32000 से ज्यादा फिलिस्तीन के नागरिक मारे गए हैं। इजरायल के 2000 के आस-पास लोग मारे गए हैं। 75000 से ज्यादा जख्मी हुए हैं। यह कहीं ना कहीं बड़ी मानवीय त्रासदी है। वहां कुछ भी नहीं मिल रहा। खाने-पीने की चीजों की पूरी कमी है। राफा की भी हालत खराब है। नेतनयाहू अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। इसलिए अमेरिका भी नाराज दिख रहा है। हमास भी अपनी रणनीतिक तैयारी के साथ आगे बढ़ रहा है। वह भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है। उन्होंने कहा कि गाज़ा में भी हमला जारी है। इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरीके से डैमेज हो चुका है। अमेरिका में भी ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह युद्ध रुकनी चाहिए। यही कारण है कि जो बिडेन की टेंशन बढ़ी हुई है क्योंकि वहां चुनाव होने हैं। बैक चैनल बातचीत करने की कोशिश भी हो रही है। ऐसे में अगर शांति लाना है तो दोनों को ही पीछे हटना पड़ेगा। चीन और रूस भी अपना एजेंडा चला रहे हैं।
- डीएस त्रिपाठी ने कहा कि याद कीजिए जब तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा हुआ था तो सबसे ज्यादा खुश पाकिस्तान था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तक तालिबान दौरा कर चुके थे। लेकिन अब तालिबान ने पाकिस्तान की टेंशन पूरी तरीके से बढ़ती है। अफगानिस्तान में चाहे कोई भी सत्ता में रहा हो लेकिन पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद पुराना है। अफगानिस्तान ने कभी भी बॉर्डर को नहीं माना है। कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां दोनों अपना दावा करते हैं। उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में दोनों ओर से लोग आते जाते हैं। पाकिस्तान अपने सीमा इलाकों में फेंसिंग कर रहा है जो कि अफगानिस्तान को मंजूर नहीं है। इन सबके बीच पाकिस्तान पर हमला हुआ। तालिबान या अफगानिस्तान में इसकी जिम्मेदारी नहीं ली। बावजूद इसके पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक किया। ऐसे में बातचीत की बेहद जरूरत है क्योंकि दोनों देशों को एक दूसरे पर भरोसा नहीं है। जबकि दोनों देशों से सामान्य रिश्ते साझा करने वाला चीन शांत है।
- प्रधानमंत्री के भूटान दौरे पर ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि भले ही मौसम की वजह से यह दौरा एक दिन के लिए टला। लेकिन अगर मोदी का कार्यक्रम एक बार तय हो गया था तो वह पूरा होना ही था। दोनों देशों के बीच कई बड़ी साझेदारी है। भूटान के साथ हमारा रिश्ता बहुत पुराना है। प्रधानमंत्री का भूटान दौरा चुनाव से पहले का आखिरी विदेश दौरा होगा। प्रधानमंत्री कहीं भी जाते हैं तो किसी खास उद्देश्य के लिए जाते हैं और भूटान का दौरा भी किसी खास उद्देश्य को पूर्ति के लिए ही होगा। उन्होंने कहा कि भूटान लगातार भारत की ओर से मिल रहे हैं मदद के लिए धन्यवाद करता रहा है। भूटान में हमारी कई परियोजनाएं चल रही है जिसमें रेल कनेक्टिविटी भी है। वही, दोनों देशों के बीच हाइड्रो पावर एक बड़ा मुद्दा है। उन्होंने कहा कि कहीं ना कहीं भारत किसी भी कीमत पर भूटान को अपने पक्ष में खड़ा रखना चाहता है। भूटान का पूर्वी एरिया भारत के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण है जहां डोकलाम पड़ता है। इसलिए भारत के लिए जरूरी है कि भूटान के साथ रिश्ते सौहार्दपूर्ण रहे। चीन की पूर्वी एरिया पर बड़ी नजर है।
- ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि चीन और ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते नए नहीं है। 1909 से दोनों के संबंध बेहद ही मधुर रहे हैं। 2015 में तो फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी हो चुका है। ऑस्ट्रेलिया के लिए चीन दूसरा बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। आस्ट्रेलिया चीन को रॉ मैटेरियल भेजता है। इसलिए अगर दोनों देश एक साथ होते दिखाई दे रहे हैं तो इसका बड़ा कारण व्यापार है। साउथ चीन सी, इंडो पेसिफिक रीजन को लेकर ऑस्ट्रेलिया का विरोध जारी रह सकता है। साथ ही साथ ऑस्ट्रेलिया कभी भी चीन के विस्तारवादी नीति के साथ खड़ा नहीं रहा है। कोविड के बाद दोनों ही देशों के रिश्ते बेहद खराब हो गए थे। लेकिन अक्टूबर 2023 से जब ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री चीन के दौरे पर पहुंचे थे, उसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार देखने को मिला है। ]