By अभिनय आकाश | Aug 19, 2021
15 अगस्त की सुबह से पहले तक ये बात हजम करना मुश्किल था कि अमेरिका के बोरिया-बिस्तर बांधते ही तालिबान इतनी तेजी से काबुल को दबोच लेगा। लेकिन तालिबान की हुकूमत अफगानिस्तान की नई हकीकत है। 20 साल से आप जिस तालिबान को देखते रहे हैं उसकी सोच में तब से लेकर अब तक में कोई फर्क नहीं आया है। लेकिन वक्त के साथ-साथ तालिबान ने अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने की कोशिश की। बीते दिनों एक तस्वीर सामने आई जिसे देखकर आप उसे यूएस आर्मी समझने की गलती कर सकते हैं। ये यूएस आर्मी के नहीं तालिबान के कमांडो हैं। जिसे बदरी 313 कहा जाता है और ये तालिबान की एलिट कमांडो यूनिट है। हालिया दिनों में इंटरनेट पर इसकी बहुत सारी तस्वीरें सामने आई है। जिसमें इन्होंने तालिबान का झंडा भी उठा रखा है जिसे तालिबान अब अफगानिस्तान का ऑफिशियल झंडा कहने लगा है। आज हम आपको तालिबान की एक ऐसी खूंखार कमांडो यूनिट के बारे में बताएंगे जो दुनिया कि किसी भी सैन्य टुकड़ी को टक्कर देने का माद्दा रखती है। अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे में 313 कमांडो की इस टुकड़ी की बड़ी भूमिका है।
तालिबानियों को अब तक आप कबिलियाई ड्रेस में ही देखते थे। पठानी ड्रेस, सिर पर पगड़ी और हाथों में हथियार। काबुल तक पहुंचने में सेना को 100 दिन भी नहीं लगे। लेकिन इसी तालिबान की एक ऐसी बटालियन है जिसे देखकर । इसे तालिबान का बदरी बटालियन कहा जाता है। तालिबान के बड़े-बड़े ऑपरेशन को यही बटालियन अंजाम देती है। काबुल के प्रेसिडेंटिशियल पैलेस की पहरेदारी इस बटालियन के जिम्मे है। इस बटालियन में तालिबान ने अपने सबसे खूंखार और सबसे खतरनाक आदमियों की भर्ती कर रखी है।
स्मार्ट तालिबान की बदरी 313 बटालियन
एक अमेरिकी स्टाइल का हैलमेट और साथ में नाइट विजन माउंट के साथ। अच्छे-अच्छे देशों के कमांडो के पास ऐसे हेलमेट आपको नजर नहीं आएंगे। इसके साथ ही इनके शरीर पर मेड इन अमेरिका बॉडी ऑर्मर है। हाथों में यूएस एम-4 रायफल लिए ये कमांडो टैक्टिकल नी पैड पहने हैं। इसके साथ ही कम्युनिकेशन के लिए एक रेडियो भी है और अब तालिबानी लड़ाके आर्मेड हमवीज पर चलने लगे हैं। फोर्ब्स के अनुसार, "अकेले जून के महीने में तालिबान ने अफगान सुरक्षा बलों से हथियारबंद वाहन और आर्टिलरी के साथ ही 700 ट्रक और हमवीज़ पर कब्जा कर लिया। सबसे चिंता की बात ये है कि इनंमें से एक समान भी तालिबान ने खरीदी नहीं है। सारी की सारी अमेरिकी मिलिट्री एयरबेस से लूटी गई है। अगर कल को ये अत्याधुनिक सामग्री इन्होंने दूसरे आतंकवादी संगठनों को मुहैया करना शुरू कर दिया तो दुनियाभर दे देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाएगी।
जंग-ए-बद्र का इस्लामिक इतिहास में बड़ा महत्व
इस्लामिक इतिहास में जंग-ए-बद्र का बड़ा महत्व है। यह वह लड़ाई थी जिसने साबित किया कि सेना की ताकत और हथियारों की संख्या बेकार है जब तक कि आपके पास अल्लाह की सहायता न हो। इस्लाम के पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि व सल्लम के जीवन के दौरान इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ मुसलमानों द्वारा बद्र की लड़ाई पहली बड़ी लड़ाई थी। जब उमय्या वंश के प्रमुख अबू सूफ़ियान की रक्षा में एक विशेष धनी क़ाफ़िले की सूचना मुहम्मद तक पहुँची, तब लगभग 313 मुसलमानों के एक हमलावर दल का गठन किया गया, जिसकी अगुआई स्वयं मुहम्मद को करनी थी। ब्रद में लड़ने वाले मुसलमान बद्रियूं कहलाए।
आतंक की कुख्यात कमांडो कंपनी को दी जाती है स्पेशल ट्रेनिंग
आने वाले दिनों में तालिबान अपनी सेना को किस हद तक मॉर्डनाइज करने की कोशिश में लगा है ये आपको बदरी 313 बटालियन को देखकर ही अंदाजा लग जाएगा। जिसका गठन करीब दो साल पहले ही किया गया था। लेकिन तालिबान के इतने बड़े कदम की जानकारी अमेरिकी की खुफिया एजेंसी सीआईए व भारत की रॉ तक को भी नहीं हुई। कहा जा रहा है कि तालिबान ने अपनी स्पेशल यूनिट बदरी 313 को बहुत कठिन प्रशिक्षण दी है और किसी देश की आर्मी की भांति ही इसका अपना ड्रेस है। बदरी 313 किसी भी देश की अत्याधुनिक टुकड़ी की तर्ज पर लेटेस्ट हथियारों और अन्य उपकरणों से लैस है।
अंधेरे में सैन्य ऑपरेशन को दिया अंजाम
15 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी में पॉवर ब्लैकऑउट था। पूरे काबुल की बिजली गायब थी और इस ब्लैकऑउट की वजह से तालिबान ने अपने सैन्य ऑपरेशन को अंधेरे में ही अंजाम दे डाला। जबकि अमेरिकी से कुशल प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली अफगानी सेना एक हवाई हमला तक न कर सकी। इस स्पेशल ऑपरेशन को तालिबान की बदरी 313 यूनिट ने अंजाम दिया। जिसके धावा बोलते ही अफगान सैनिकों ने बिना संघर्ष के ही सरेंडर बोल दिया।
तालिबानी मुजाहिद्दीन की कैसे होती है ट्रेनिंग
अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ने के कुछ ही दिनों के भीतर तालिबान ने वहां की सभी प्रांतों पर कब्जा कर लिया। तालिबान लड़ाकों की रफ्तार ने दुनियाभर के सुरक्षा विश्लेषकों को हैरान कर दिया। तालिबान ने कई जिलों औऱ शहरों पर बिना एक भी गोली चलाए कब्जा किया है। अफगानिस्तान से अमेरिका की रूचि कम होती गई और तालिबान मजबूत होता गया। इसी के साथ ही पाकिस्तानी आतंकी संगठनों और पाकिस्तान की सेना व आईएसआई की खुफिया मदद से पाक सीमा से सटे इलाकों में तालिबान ने अपना बेस मजबूत किया। बीते दिनों तालिबानी प्रोपेगेंडा चैनल अल इमारा की तरफ से सोशल मीडिया पर तालिबानी मुजाहिद्दीन की ट्रेनिंग कैंप का एक वीडियो जारी किया गया था। जिसमें एक घने पहाड़ी इलाके के कैंप में तालिबानी कमांडो प्रशिक्षण के दृश्यों को दर्शाया गया था। वीडियों में तालिबानी झंडे के साथ विभिन्न तरीके से प्रशिक्षण लेते हुए देखा जा सकता है। कमांडो की वर्दी में नकाब पहनकर ट्रेनिंग करते सभी खतरनाक हथियारों से लैस नजर आते हैं। शारीरिक प्रशिक्षण के अलावा सैकड़ों की तादाद में कमांडो को कठिन शरीरिक प्रशिक्षण के अलावा आग से खेलने, रस्सी पर चढ़ने, घोड़ों के ऊपर चढ़कर गोली-बारी करने, गाड़ियों के ऊपर से गोली चलाने, अत्याधुनिक स्वचालित रायफल का प्रशिक्षण एवं रॉकेट लांचर से विस्फोट करते नजर आए।
बच्चों को कैसे करते हैं भर्ती
वर्षों पहले बीबीसी की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें एक तीन साल के एक बच्चे को बंदूक के साथ दिखाया गया है, जो कहता है कि वह लोगों को मारेगा। फुटेज में अन्य तालिबान लड़ाके चेहरा ढंके हुए, बंदूकों और रॉकेट लॉन्चरों के साथ दिखाई देते हैं। लड़ाकों को ट्रेनिंग लेते और बंदूक, रॉकेट लॉन्चर सहित हर तरह का हथियार चलाते हुए दिखाया गया है। इसके अलावा तालिबान द्वारा मानव बम और ह्यूमन शील्ड के तौर पर बड़े पैमाने पर बच्चों की भर्ती की बात भी कई रिपोर्ट्स में सामने आई। जिसमें कहा गया कि कुछ ही महीनों में 1000 से ज्यादा बच्चों की भर्ती की गई। जिसके पीछे तालिबान की सोच न सिर्फ टारगेट के करीब जाने की रही बल्कि बच्चों को ह्यूमन शील्ड के तौर पर इस्तेमाल कर अफगान फोर्सेज का मनोबल तोड़ने की भी। टारगेट के करीब एक बच्चे को जाता देख कोई उस पर शक नहीं करेगा और ह्यूमन शील्ड के तौर पर एक बच्चे को देख अफ़ग़ान फोर्सेज हथियारों का इस्तेमाल करने से झिझकेंगे।
क्या है शरिया कानून ?
शरिया कानून इस्लाम की कानूनी प्रणाली है, जो कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों पर आधारित है, और मुसलमानों की दिनचर्या के लिए एक आचार संहिता के रूप में कार्य करता है। ये कानून यह सुनिश्चित करता है कि वे (मुसलमान) जीवन के सभी क्षेत्रों में दैनिक दिनचर्या से लेकर व्यक्तिगत तक खुदा की इच्छाओं का पालन करते हैं। अरबी में शरीयत का अर्थ वास्तव में "रास्ता" है और यह कानून के एक निकाय का उल्लेख नहीं करता है। शरिया कानून मूल रूप से कुरान और सुन्ना की शिक्षाओं पर निर्भर करता है, जिसमें पैगंबर मोहम्मद की बातें, शिक्षाएं और अभ्यास के बारे में लिखा है। शरिया कानून मुसलमानों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर सकता है, लेकिन, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका कितनी सख्ती से पालन किया जाता है।
जब तालिबान ने शरिया लॉ के नाम पर हर तरह की आजादी छीन ली
तालिबान ने 1996 से 2001 तक इस देश पर शासन किया था। तालिबान ने पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया। उनका पहला शिकार बनी महिलाएं। धार्मिक पुलिस सड़कों पर कोड़े लेकर टहलती रहती थी। जो भी महिला सड़क पर अकेली दिखती या उनके हिसाब से पर्दे में कुछ कमी दिखती तो उन महिलाओं को वहीं पर बुरी तरह पीटा जाता। एक आदेश जारी हुआ कि महिलाएं काम नहीं कर सकती। घर में रहना होगा। बाहर नहीं जा सकते तो पढ़ भी नहीं सकते। अगर किसी महिला को बाहर निकलना है तो घर के पुरूष के साथ पर्देदारी में निकलना होगा। बच्चियां भी स्कूल नहीं जा सकती। अगर आदेश का पालन नहीं हुआ तो सजा मिलेगी। ये पिटाई से लेकर पत्थर मारकर हत्या तक की सजा हो सकती थी। पुरूषों के लिए नवाज पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया। ढाढ़ी कटाने पर रोक लगा दी गई। सरकारी दफ्तरों में तालिबान ने अपने लोगों को नियुक्त किया जिनका काम था कर्मचारियों से नवाज पढ़वाना। अगर कोई महिला ने नेल पॉलिस लगा लिया तो उसके अंगूठे के सिरे को काट दिया जाता था। महिलाओं और लड़कियों के लिए खिड़की से देखना मना था और वो घर की बालकनी में भी नहीं आ सकती थी। अखबारों को सख्त हिदायत दी गई थी कि वो महिलाओं की तस्वीर नहीं छाप सकते हैं। वहीं दुकानों में भी महिलाओं की तस्वीर लगाना प्रतिबंधित था। इसके साथ ही जिन दुकानों के नाम में 'महिला' शब्द आ रहा था, उन दुकानों से ऐसे शब्द हटा दिए गये थे। संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सिनेमाघरों में ताले लगा दिए गए। यहां तक की बच्चों के पतंग उड़ाने या कबूतर पालने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। तालिबान की क्रूरताओं का ये अंत नहीं था। समलैंगिकों और दूसरे अपराधियों को एक श्रेणी में रखा गया। हर शुक्रवार को उन्हें रस्सी में बांध कर शहर में घुमाया जाता और फिर किसी चौराहे पर सदा दी जाती। जिन भी लोगों ने किसी भी तरह से तालिबान का विरोध किया उनका दिन दहाड़े कत्ल होने लगा। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, शरिया कानून का हवाला देकर तालिबान ने अफगानिस्तान में बड़े नरसंहार किए। वहीं, करीब एक लाख 60 हजार लोगों को भूखा रखने के लिए उनका अनाज जला दिया गया औऱ उनके खेतों में आग लगा दी गई थी। कानून का कोई नामो-निशान नहीं। जैसा कि अभी भी हो रहा है। जिन महिलाओं के पति जंग में मारे गए उन्होंने गुहार लगाई कि काम करने दिया जाए ताकि अपने और बच्चों का पेट पाला जा सके। लेकिन तालिबान ने उन्हें पीटने का हुक्म दिया और कहा कि अल्लाह सब का ख्याल रखेगा तुम्हें काम करने की जरूरत नहीं है। - अभिनय आकाश