By अभिनय आकाश | Jun 23, 2022
महाराष्ट्र की राजनीति में बीते कुछ दिनों से दो नामों की चर्चा चारो ओर है। एक तो बाला साहेब का सपना पूरा करने के दावे कर सीएम पद की पर ढाई साल का वक्त गुजार चुके उद्धव ठाकरे और दूसरे खुद को असली शिवसैनिक बताते हुए शिवसेना में ही सेंधमारी कर ठाकरे सरकार को सत्ताबदर होने के मुहाने पर लाने वाले एकनाथ शिंदे। लेकिन महाराष्ट्र के पूरे सियासी खेल में बीजेपी की वेट एंड वॉच नीति की भी खूब चर्चा हो रही है। कहने के लिए तो पर्दे के पीछे सारा खेल बीजेपी द्वारा रचे जाने, मेजबानी के लिए उसके ही शासित राज्य का चुने जाने की वजहें भी गिनाई जा रही है। लेकिन शिंदे की बगावत के बाद सरकार बहुमत गंवाने की कगार पर पहुंचे उद्धव को हटा सरकार बनाने की जल्दबाजी में इस बार बीजेपी नहीं दिख रही है।
23 नवंबर 2019 की तारीख महाराष्ट्र के इतिहास में दर्ज हो गयी। उस सुबह जिन लोगों ने अखबार पढ़ा और फिर टीवी देखा, वे लोग कश्मकश में थे कि आखिर किस पर यकीन करें। अखबार में हेडलाईन थी कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे होंगे लेकिन टीवी पर तो बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस शपथ लेते नजर आ रहे थे। उनके पीछे एनसीपी के अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। जिसके बाद जो हुआ वो इतिहास है। शरद पवार के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मोड़ जब शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही कहा कि शाम 5 बजे तक फडणवीस को फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा उसके बाद तो बीजेपी की जमीन ही खिसक गई। पहले अजित पवार का इस्तीफा हुआ फिर फडणवीस का। जिस अजित पवार ने अंधेरी रात में उम्मीद का दिया फडणवीस के हाथ में दिया उसकी लौ पवार की आंधी में बुझ गई। कहावत है दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है। इस बार महाराष्ट्र में शिवसेना विधायकों की बगावत को लेकर भाजपा बेहद सतर्कता बरत रही है। पार्टी सीधे तौर पर अभी तक सामने नहीं आई है। हालांकि, उसने राज्य में अपनी सरकार बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी नेता शिवसेना के साथ उसके दोनों सहयोगी दलों कांग्रेस और एनसीपी के रुख पर भी नजर रखे हुए हैं। खासकर शरद पवार पर, उनकी अगली रणनीति क्या रहती है?
दरअसल, उद्धव ठाकरे भी पवार की सलाह पर ही सरकार बचाने के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में पवार की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है। शिवसेना के दोनों सहयोगी दलों कांग्रेस और एनसीपी पर भी नजर रखे हुए हैं। कांग्रेस के कुछ विधायक भी भाजपा के संपर्क में बताए जा रहे हैं। भाजपा को चिंता एनसीपी नेता शरद पवार को लेकर है जिनकी रणनीति काफी गहरी होती है और पिछले मौके पर भाजपा उसमें मात भी खा चुकी है। ऐसे में खुलकर सामने आने से पहले पवार की ताकत को पूरी तरह जांच लेना चाहती है कि कहीं कोई गड़बड़ी न रह जाए।