By अशोक मधुप | Nov 22, 2021
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रदेश में किन्नर कल्याण बोर्ड गठित कर उसके लिए किन्नर सदस्य नामित किए हैं। सरकार चाहे तो किन्नर समाज को प्रदेश के अंचलों और आदिवासी लोक नृत्य सिखा कर प्रदेश की लुप्त होती कला को जीवित कर सकती है। प्रदेश के कई किन्नर इन कलाओं का सीखकर पद्म पुरस्कार पाने वाले मजम्मा जोगाठी की तरह सम्मान प्राप्त कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश में किन्नर कल्याण बोर्ड के गठन का उद्देश्य समाज के विकास की मुख्यधारा से वंचित किन्नरों को आगे लाने की जद्दोजहद है। सरकार ने सोनम चिश्ती को इस बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया है। उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया है। गठित किन्नर कल्याण बोर्ड में इनके अलावा चार किन्नर सदस्य पद के लिए प्रयागराज की कौशल्या नन्द गिरी उर्फ टीना मां, गोरखपुर की किरन बाबा, जौनपुर की मधु उर्फ काजल व कासगंज की मोहम्मद आरिफ पूजा किन्नर शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश में कहा गया है कि बोर्ड किन्नरों की आवश्यकताओं, मुद्दों व समस्याओं पर काम करते हुए नीति व संस्थागत सुधारों के लिए सरकार को सुझाव देगा। बोर्ड के अध्यक्ष समाज कल्याण मंत्री होंगे। जबकि मुख्यमंत्री द्वारा नामित किन्नर उपाध्यक्ष होगा। समाज कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव संयोजक होंगे। किन्नर संबंधी विभाग के अधिकारियों के अनावा पांच किन्नर व एनजीओ के प्रतिनिधियों को मंत्री नामित करेंगे। गैर-आधिकारिक सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों होगा। बोर्ड का सदस्य सचिव, निदेशक समाज कल्याण होगा। बोर्ड को तीन महीने में बैठक करना जरूरी होगा। विभागीय प्रमुख सचिव के. रविन्द्र नायक ने बताया कि सभी के नामित होते ही बोर्ड की बैठक होगी। बोर्ड का काम किन्नर नीति को विभागों में लागू करने के साथ ही किन्नरों का शैक्षिक, सामाजिक व आर्थिक विकास करने, समानता व समता के लिए दिशा-निर्देश जारी कर उनका क्रियान्वयन कराने तथा जिला स्तरीय समिति या किन्नर सहायता इकाई के प्रकरणों पर निर्णय करना होगा।
जिलों में डीएम की अध्यक्षता में भी 13 सदस्यीय समिति होगी। इसकी प्रतिमाह बैठक होगी। इसमें अधिकारियों के अलावा डीएम द्वारा नामित मनोवैज्ञानिक व किन्नर समुदाय के दो प्रतिनिधि सदस्य और जिला समाज कल्याण अधिकारी सदस्य सचिव होंगे। यह भी कहा गया है कि किन्नरों को पहचान पत्र मिलेंगे। किन्नरों को मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए केंद्र भी बनेंगे। किन्नर समाज अब तक बिल्कुल उपेक्षित हैं। समाज उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं है। लोग बाग इनसे बात करने से बचते हैं। किन्नरों का भी रवैया ठीक नहीं। वह त्योहारों के नाम पर व्यापारियों से, दुकानदारों से कई बार जबरदस्ती वसूली करते हैं। बस और ट्रेन में हंगामा करते हैं। परिवार में बच्चा होने और शादी के बाद दुल्हन के परिवार में तो उनकी उद्दंडता देखते बनती है। मनमानी राशि मांगते हैं। न देने पर हुड़दंग करते हैं। परिवार अपनी बेइज्जती से बचने के लिए, अपनी इज्जत बचाने के लिए इनकी नग्नता और गुंडई को देख कर चुप हो जाते हैं। हालात न होने पर भी इन्हें मनमानी रकम देते हैं। कई बार तो वे परिवार उधार भी उठाते हैं। देहात में तो इनके श्राप देने का भी आतंक है। कुछ लोग कहते हैं कि ये नए विवाहित जोड़े और शिशु को आशीर्वाद देते हैं। मांगी रकम न दिए जाने पर श्राप भी देते हैं। इनका श्राप दिया जाना ठीक नहीं।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर गठित इस बोर्ड के गठन से किन्नरों की समस्याओं पर विचार हो सकेगा। उन्हें शिक्षा की मुख्यधारा में लाने, समाज के विकास कार्यों में लगाने का कार्य किया जाएगा। उनकी समस्याओं पर विचार होगा। उन्हें बताया जाना चाहएि कि उनका रवैया समाज में उन्हें घृणा का पात्र बनाता है यदि वे थोड़ी सरलता−उदारता का प्रयोग करें समाज में उनकी छवि निखर सकती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इनकी संख्या डेढ़ लाख बताई गई है जबकि वास्तव में काफी ज्यादा है। क्योंकि ये अपना परिचय बताना नहीं चाहते।
सरकार की योजना किन्नरों को परिचय कार्ड जारी करने की है। इससे किन्नरों को बहुत लाभ मिलेगा। नकली किन्नरों की गतिविधियों को रोका जा सकेगा। कुछ व्यक्ति नकली किन्नर बनकर वसूली करते हैं। इससे नकली और असली किन्नरों में झगड़े होते हैं। मारपीट होती है। कई बार कत्ल हो जाते हैं। परिचय पत्र मिलने के बाद नकली किन्नरों की वसूली बन्द हो सकेगी। अगर इनकी समस्या को समझा जाता, इन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का काम होता तो इनके व्यवहार में बड़ा परिवर्तन होता। इनके साथ समाज को भी इनके बारे में जागरूक किया जाता तो देश के हालत बिल्कुल अलग होते। ये भी समाज का जिम्मेदार हिस्सा होते। वैसे आज कई किन्नर समाजहित के लिए काम कर रहे हैं। बिजनौर के एक किन्नर ने अपने पास से पैसा लगाकर एक गरीब परिवार की लड़की की शादी की है। अब समाज कल्याण के कार्य सरकार कराने लगी। पहले सेठ, सम्पन्न और जमींदार ये कार्य करते थे। आजादी के पूर्व में बने कई कुएं ऐसे हैं जो किन्नरों ने बनवाए। पुराने लोग बताते भी हैं। ये कुएं हिजड़े का कुआं के नाम से प्रसिद्ध भी हैं। ये चुनाव का समय है। सब दल कहेंगे कि भाजपा ने इसे चुनावी लाभ के लिए गठन किया है। लगता भी ऐसा ही है। भाजपा को इसका लाभ भी मिलना निश्चित है।
सरकार किन्नर कल्याण बोर्ड के माध्यम से किन्नरों को प्रदेश की क्षेत्रीय नृत्य और नाट्य कला, प्रदेश में बसने वाली जनजातियों के नृत्य सिखाकर इन कलाओं से जोड़ने का बड़ा काम कर सकती है। इन्हीं कलाओं में भनेड़ा (बिजनौर) के नक्काल, अरब से भारत आई और बिजनौर के चांदपुर, अमरोहा और रामपुर जनपद में गाई जाने वाली चाहरबैत को इनसे गवाकर जिंदा और रोचक बनाया जा सकता है। चाहरबैत पुरुषों द्वारा ढप (एक तरह का साज) पर गाई जाने वाली कला है। यदि इसे महिलाओं के परिधान में किन्नर गायें तो ये कला ज्यादा रुचिकर और लोकप्रिय होगी। ऐसे ही 'अगरही' (पूर्वांचल के आदिवासियों का एक प्रमुख नृत्य) पूर्वांचल के देवरिया, गोरखपुर और बलिया जिलों में 'गोड़उ' नृत्य, अहीर (वीरों की संस्कृति) की कला, नृत्य सिखाकर इनसे मंचित कराए जा सकते हैं। कुछ समय पूर्व सारंगी वादक जगह−जगह दिखाई देते थे, यदि कुछ जीवित सारंगी वादकों से इन्हें शिक्षा दिलाई जाए तो समाप्त होती क्षेत्रीय, आदिवासी और परम्परागत कला को जीवित किया जा सकता है। किन्नर मजम्मा ने तो अपने आप लोक कला सीखकर पद्म पुरस्कार पाया। अगर सरकारी स्तर से प्रदेश के किन्नरों के साथ ईमानदारी से मेहनत की गई तो उत्तर प्रदेश देश को किन्नर मजम्मा जैसे कई प्रसिद्ध कलाकार दे सकेगा।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)