By रेनू तिवारी | Apr 06, 2022
आगरा का ताजमहल अपनी नायाब खूबसूरती और भव्यता के कारण पूरी दुनिया के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। सात अजूबों में शामिल इस मकबरे को दुनिया के कोने-कोने से लोग देखने के लिए भारत आते हैं। नदी के कितारे बनें ताजमहल को प्यार की निशानी माना जाता है। कहते हैं कि मुगल शासक शाहजहां ने इस मकबरे को अपनी सबसे चहेती बेगम मुमताज की मौत के बाद उनकी याद में बनवाया था। शाहजहां मुमताज को बेइंतहा प्यार करते थे। मुमताज की मौत का गम उनसे सहन नहीं हो रहा था। तभी अपनी पत्नी के प्यार में उन्होंने ताजमहल को बनवाया था। कथित तौर पर यह भी कहा जाता है कि तालमहल को बनाने वाले कारिगरों के हाथों को शाहजहां ने कटवा दिया था ताकि इस तरह की कोई दूसरी इमारत न बन सके। इस लिए आज तक इस इमारत जैसी पूरी दुनिया में कोई दूसरी इमारत नहीं है। नजरों को चकाचौंध कर देने वाली इसकी खूबसूरती विशाल है।
प्यार की निशानी है ताजमहल
ताजमहल को शाहजहाँ ने 1631 में बनवाया था, जिसे उनकी पत्नी मुमताज़ महल की याद में बनवाया गया था, 17 जून 1631 को बेटे को जन्म देने के दौरान मुमताज की मौत हो गयी थी। मुमताज़ ने उस समय शाहजहाँ की 14वीं संतान गौहारा बेगम को जन्म दिया गया था। निर्माण 1632 में शुरू हुआ और मकबरा 1648 में पूरा हुआ, जबकि आसपास के भवन और उद्यान पांच साल बाद समाप्त हो गए थे। मुमताज की मृत्यु के बाद शाहजहाँ के दुःख का दस्तावेजीकरण करने वाला शाही दरबार ताजमहल की प्रेरणा के रूप में आयोजित प्रेम कहानी को दर्शाता है।
ताजमहल की खूबसूरती
ताजमहल 'क्राउन ऑफ द पैलेस' भारतीय शहर आगरा में यमुना नदी के दाहिने किनारे पर बना एक हाथीदांत-सफेद संगमरमर का मकबरा है। इस मकबरे को बनाने में लगभग तीस सालों का समय लगा था। ताजमहल वास्तव में संरचनाओं का एक एकीकृत परिसर है जिसमें सफेद गुंबददार संगमरमर का मकबरा इसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है। सम्राट शाहजहाँ द्वारा एक बोर्ड-ऑफ-वास्तुकार को सौंपा गया, ताज परिसर का निर्माण लगभग 1631 ईस्वी में शुरू हुआ। मुख्य मकबरा 1648 ई. में हजारों कारीगरों और शिल्पकारों को नियोजित करके पूरा किया गया था, जबकि बाहरी इमारतों और उद्यानों को पांच साल बाद 1653 ईस्वी में समाप्त कर दिया गया था।
वास्तुकला और डिजाइन
ताजमहल इंडो-इस्लामिक और पहले की मुगल वास्तुकला की डिजाइन परंपराओं को शामिल और विस्तारित करता है। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। अरबी लिपि में कई ऐतिहासिक और कुरानिक शिलालेखों के अस्तित्व ने ताजमहल के कालक्रम को स्थापित करने में मदद की है। इसके निर्माण के लिए, पूरे साम्राज्य से और मध्य एशिया और ईरान से भी राजमिस्त्री, पत्थर काटने वाले, इनलेयर, नक्काशी करने वाले, चित्रकार, सुलेखक, गुंबद बनाने वाले और अन्य कारीगरों की मांग की गई थी। ताजमहल के मुख्य वास्तुकार उस्ताद-अहमद लाहौरी थे।