Prabhasakshi NewsRoom: मुंबई हमले के पीड़ितों को मिल सकेगा न्याय, अमेरिकी अदालत ने Tahawwur Rana के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी

By नीरज कुमार दुबे | Aug 17, 2024

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत को आज तब बड़ी जीत मिली जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा से लगभग एक महीने पहले वहां की एक अदालत ने पाकिस्तानी मूल के कनाडाई व्यवसायी तहव्वुर राणा को बड़ा झटका दे दिया। हम आपको बता दें कि अमेरिकी अदालत ने फैसला सुनाया है कि मुंबई आतंकवादी हमलों में संलिप्तता के आरोपी तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पण संधि के तहत भारत को प्रत्यर्पित किया जा सकता है। ‘यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर नाइंथ सर्किट’ ने 15 अगस्त को सुनाए अपने फैसले में कहा, ‘‘(भारत अमेरिका प्रत्यर्पण) संधि तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की अनुमति देती है।'' अदालत का यह फैसला खासतौर पर ऐसे समय आया है जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं। हम आपको याद दिला दें कि मुंबई आतंकवादी हमलों में छह अमेरिकी नागरिकों समेत कुल 166 लोगों की मौत हो गई थी।


अदालत ने क्या कहा


जहां तक तहव्वुर राणा के संबंध में आये अदालती फैसले की बात है तो सबसे पहले आपको यह बता दें कि उसने कैलिफोर्निया में अमेरिकी ‘डिस्ट्रिक्ट कोर्ट’ के आदेश के खिलाफ ‘यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर नाइंथ सर्किट’ में याचिका दायर की थी। कैलिफोर्निया की अदालत ने उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अस्वीकार कर दिया था। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में मुंबई में आतंकवादी हमलों में तहव्वुर राणा की कथित संलिप्तता के लिए उसे भारत प्रत्यर्पित किए जाने के मजिस्ट्रेट न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी। अब ‘यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर नाइंथ सर्किट’ के न्यायाधीशों के पैनल ने ‘डिस्ट्रिक्ट कोर्ट’ के फैसले की पुष्टि कर दी है। हम आपको बता दें कि प्रत्यर्पण आदेश की बंदी प्रत्यक्षीकरण समीक्षा के सीमित दायरे के तहत, पैनल ने माना है कि तहव्वुर राणा पर लगाए गए आरोप अमेरिका और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि की शर्तों के अंतर्गत आते हैं।


इस संधि में प्रत्यर्पण के लिए ‘नॉन बिस इन आइडेम’ (किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किए जाने का सिद्धांत) अपवाद शामिल है। इसके मुताबिक जिस देश से प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया हो, यदि ‘‘वांछित व्यक्ति को उस देश में उन अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया हो या दोषमुक्त कर दिया गया हो, जिनके लिए प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया है’’, तो ऐसी स्थिति में यह अपवाद लागू होता है। पैनल ने संधि की विषय वस्तु, विदेश मंत्रालय के तकनीकी विश्लेषण और अन्य सर्किट अदालतों में इस प्रकार के मामलों पर गौर करते हुए माना कि ‘‘अपराध’’ शब्द अंतर्निहित कृत्यों के बजाय आरोपों को संदर्भित करता है तथा इसके लिए प्रत्येक अपराध के तत्वों का विश्लेषण आवश्यक है।


तीन न्यायाधीशों के पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि सह-साजिशकर्ता की दलीलों के आधार पर किया गया समझौता किसी अलग नतीजे पर पहुंचने के लिए बाध्य नहीं करता। पैनल ने माना कि ‘नॉन बिस इन आइडेम’ अपवाद इस मामले पर लागू नहीं होता, क्योंकि भारतीय आरोपों में उन आरोपों से भिन्न तत्व शामिल हैं, जिनके लिए राणा को अमेरिका में बरी कर दिया गया था। पैनल ने अपने फैसले में यह भी माना कि भारत ने मजिस्ट्रेट जज के इस निष्कर्ष का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सक्षम सबूत पेश किए हैं कि तहव्वुर राणा ने वे अपराध किए हैं, जिनका उस पर आरोप लगाया गया है। पैनल के तीन न्यायाधीशों में मिलन डी स्मिथ, ब्रिजेट एस बेड और सिडनी ए फिट्जवाटर शामिल थे।


हम आपको याद दिला दें कि पाकिस्तानी नागरिक तहव्वुर राणा पर अमेरिका की एक जिला अदालत में मुंबई में बड़े पैमाने पर आतंकवादी हमले करने वाले एक आतंकवादी संगठन को समर्थन देने के आरोप में मुकदमा चलाया गया था। जूरी ने तहव्वुर राणा को एक विदेशी आतंकवादी संगठन को सहायता प्रदान करने और डेनमार्क में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने की नाकाम साजिश में सहायता प्रदान करने की साजिश रचने का दोषी ठहराया था।


हालांकि, इस जूरी ने भारत में हमलों से संबंधित आतंकवादी कृत्यों में सहायता प्रदान करने की साजिश रचने के आरोप से तहव्वुर राणा को बरी कर दिया था। तहव्वुर राणा को जिन आरोपों के तहत दोषी ठहराया गया था, उसने उनके लिए सात साल जेल में काटे और उसकी रिहाई के बाद भारत ने मुंबई हमलों में उसकी संलिप्तता के मामले में उस पर मुकदमा चलाने के लिए उसके प्रत्यर्पण का अनुरोध किया था। तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पित किए जा सकने का सबसे पहले फैसला सुनाने वाले मजिस्ट्रेट न्यायाधीश के समक्ष उसने दलील दी थी कि भारत के साथ अमेरिका की प्रत्यर्पण संधि उसे ‘नॉन बिस इन आइडेम’ प्रावधान के कारण प्रत्यर्पण से संरक्षण प्रदान करती है। उन्होंने यह भी दलील दी थी कि भारत ने यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं दिए कि अपराध उसने ही किए हैं। अदालत ने तहव्वुर राणा की इन दलीलों को खारिज करने के बाद उसे प्रत्यर्पित किए जा सकने का प्रमाणपत्र जारी किया था।


अमेरिकी सरकार का रुख


हम आपको बता दें कि दस जून, 2020 को भारत ने प्रत्यर्पण की दृष्टि से तहव्वुर राणा की अस्थायी गिरफ्तारी की मांग करते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। बाइडन प्रशासन ने राणा के भारत प्रत्यर्पण का समर्थन किया था और उसे मंजूरी दी थी। हम आपको याद दिला दें कि छब्बीस नवंबर 2008 को मुंबई में हुए भीषण आतंकी हमलों में भूमिका को लेकर भारत द्वारा प्रत्यर्पण का अनुरोध किए जाने पर तहव्वुर राणा को अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था।


भारत लाने की तैयारी


इस बीच, माना जा रहा है कि एनआईए जल्द ही राजनयिक माध्यमों से तहव्वुर राणा को भारत लाने की कार्यवाही शुरू करने को तैयार है। हम आपको बता दें कि पाकिस्तान आधारित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों द्वारा किए गए 26/11 हमलों में राणा की भूमिका की जांच एनआईए द्वारा की जा रही है।


भयावह था मुंबई हमला


अमेरिका में अदालती सुनवाई के दौरान, अमेरिकी सरकार के वकीलों ने तर्क दिया था कि तहव्वुर राणा को पता था कि उसका बचपन का दोस्त पाकिस्तानी-अमेरिकी डेविड कोलमैन हेडली लश्कर-ए-तैयबा में शामिल है और इस तरह हेडली की सहायता करके एवं उसकी गतिविधियों के लिए उसे बचाव प्रदान कर उसने आतंकवादी संगठन और इसके सहयोगियों की मदद की। हम आपको यह भी याद दिला दें कि मुंबई आतंकी हमलों में छह अमेरिकियों सहित कुल 166 लोग मारे गए थे। इन हमलों को 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों ने अंजाम दिया था। ये हमले मुंबई के प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण स्थानों पर 60 घंटे से अधिक समय तक जारी रहे थे। इन हमलों में अजमल कसाब नाम का आतंकवादी जीवित पकड़ा गया था जिसे 21 नवंबर 2012 को भारत में फांसी की सजा दी गई थी। शेष आतंकवादियों को हमलों के दौरान भारतीय सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया था।


अमेरिका बहुत पहले से मान रहा था कि भारत आतंक से पीड़ित है


अमेरिकी अदालत ने भले अब तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी हो लेकिन उसने साल 2008 में ही मान लिया था कि भारत विश्व के सर्वाधिक आतंकवाद प्रभावित देशों में से एक है। हालांकि इसके साथ ही अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के अभियान की धीमी प्रक्रिया पर भी चिंता जताते हुए कहा था कि भारत में हुए आतंकी हमले और ऐसी ही अन्य घटनाएं बताती हैं कि आतंकी चंदे की मोटी राशि मिलने के कारण आर्थिक रूप से काफी समृद्ध हैं। अमेरिकी विदेश विभाग की वार्षिक 'कंट्री रिपोर्ट्स आन टेरेरिज्म-2008' में 26/11 के मुंबई हमलों के अलावा 2008 में भारत में हुए अन्य प्रमुख हमलों का भी उल्लेख था जिनमें जयपुर विस्फोट, काबुल में भारतीय दूतावास के अलावा अहमदाबाद, दिल्ली और असम के विस्फोट भी शामिल थे। 


मुंबई हमलों को देश के सबसे खतरनाक हमले की उपमा देते हुए रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में स्थानीय और प्रदेश की पुलिस प्रशिक्षण के मामले में बहुत कमजोर है और सभी के बीच समन्वय की भारी कमी है। रिपोर्ट में कहा गया था कि हालांकि भारत ने बाहर से आने वाले यात्रियों की जानकारी पाने के लिए विकसित यात्री सूचना प्रणाली लागू कर दी है लेकिन यह अमेरिका और यूरोपियन संघ की प्रणाली से जानकारी बांटने के अनुरूप नहीं है।


हम आपको बता दें कि अमेरिका की जेल में बंद तहव्वुर राणा को पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली का साथी माना जाता है, जो 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए हमलों के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक है। डेविड कोलमैन हेडली और उसके सहयोगी तहव्वुर हुसैन राणा को लश्कर की शह पर भारत में हमले करने और डेनमार्क के एक अखबार को निशाना बनाने की साजिश रचने के आरोप में एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया था। बहरहाल, तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के फैसले के बाद उम्मीद है कि मुंबई हमला के पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय मिल पायेगा।

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