स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने 9 मार्च को महासमाधि में लिया था प्रवेश, मृत्यु के पहले हुआ था ऐसा आभास

By अनन्या मिश्रा | Mar 09, 2023

स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि भारत के एक अद्वतीय महात्मा थे। वह एक योगी कथामृत के लेखक और परमहंस योगानंद के गुरु थे। बता दें कि वह बंगाल के रहने वाले थे। उन्होंने ही अपने शिष्य परमहंस योगानंद को कठोर और श्रमसाध्य प्रशिक्षण दिया था। उन्होंने अपने शिष्य परमहंस योगानंद को प्रशिक्षण देकर इस योग्य बनाया था कि वह पूरी दुनिया में क्रिया योग को पहुंचा सकें। युक्तेश्वरजी ने अपने गुरु लाहिड़ी महाशय से आध्यात्मिक ज्ञान के शिखर को प्राप्त किया था। आज के दिन यानि की 9 मार्च को श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने महासमाधि में प्रवेश किया था। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...


जन्म और शिक्षा

स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि का जन्म बंगाल के श्रीरामपुर में 10 मार्च 1855 को हुआ था। यह बचपन से ही काफी प्रतिभावान थे। वह एक वैदिक ज्योतिष और श्री भगवद् गीता के विद्वान थे। बता दें कि उन्होंने कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था। जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी। श्रीयुक्तेश्वर ने अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी कर क्रिश्चियन मिशनरी कॉलेज में एडमिशन लिया। कॉलेज के दिनों में ही उनकी रुचि बाइबिल में हुई। कॉलेज छोड़ने के बाद श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने शादी की। हालांकि उनकी पत्नी की शादी के कुछ ही साल बाद मृत्यु हो गई थी।


आध्यात्मिक जीवन

श्रीयुक्तेश्वर गिरि वाराणसी के लाहिड़ी महाशय और स्वामी सम्प्रदाय की गिरि शाखा के सदस्य थे। अगले कई वर्षों में श्री युक्तेश्वर ने अपने गुरु की संगति में काफी समय बिताया। वह अक्सर बनारस में लाहिड़ी महाशय के पास जाते थे। वह साल 1984 में लाहिड़ी महाशय से मिले और उनके मार्गदर्शन में दीक्षा ली। वहीं साल 1894 में वह इलाहाबाद में कुंभ मेले में भाग लेने के दौरान लाहिड़ी महाशय ने श्रीयुक्तेश्वर से हिंदू शास्त्रों और ईसाई बाइबिल की तुलना करते हुए एक किताब लिखने का आदेश दिया। उसी बैठक में लाहिड़ी महाशय ने श्रीयुक्तेश्वर गिरि को स्वामी की उपाधि प्रदान की। गुरु का आदेश मिलने के बाद श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने अनुरोधित पुस्तक को कैवल्य दर्शनम, या द होली साइंस नामक किताब लिखी।

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आध्यात्मिक सफर

सेरामपुर में श्री युक्तेश्वर ने अपने बड़े दो मंजिला परिवार के घर को एक आश्रम में बदल दिया। उन्होंने अपने घर का नाम प्रियधाम रख दिया और वह यहां पर अपने शिष्यों और छात्रों के साथ रहते थे। वहीं साल 1903 में उन्होंने समुद्र तटीय शहर में करार आश्रम भी स्थापित किया। इन दोनों आश्रमों में वह अपने शिष्यों को पढ़ाया करते थे। इस दौरान उन्होंने एक साधु सभा नाम का संगठन भी शुरू किया। शिक्षा में रुचि होने के कारण युक्तेश्वर ने भौतिकी, शरीर विज्ञान, भूगोल, खगोल विज्ञान और ज्योतिष विषयों पर स्कूलों के लिए एक पाठ्यक्रम विकसित किया। उस दौरान उन्होंने महिलाओं की शिक्षा में भी दिलचस्पी दिखाई, जो उस दौरान असामान्य बात थी।


ज्योतिष कला

युक्तेश्वरजी गिरि ज्योतिष कला में विशेष रूप से कुशल थे। वह अपने छात्रों के विभिन्न ज्योतषीय रत्न निर्धारित किए थे। इसके अलावा युक्तेश्वरजी को खगोल विज्ञान और विज्ञान में भी रुचि थी। इस दौरान वह साल 1910 में युवा मुकुंद लाल घोष यानि की परमहंस योगानन्द सबसे प्रिय शिष्य बन गए। जिसके बाद उन्होंने योगानंद को प्रशिक्षण देकर पश्चिम देशों को क्रिया योग से अवगत करने का काम किया। वहीं योगानंद ने अपने गुरु के पदचिन्हों पर चलते हुए पश्चिमी देशों को क्रिया योग से रूबरू करवाया।


महासमाधि

युक्तेश्वरजी गिरि को अपनी मृत्यु का पहले से आभास हो गया था। जिसके बाद उन्होंने अपने एक शिष्य को इस बारे में बताया था। उनका व्यक्तित्व काफी ज्यादा प्रभावशाली था। उनके संपर्क में आया व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। उन्होंने 81 साल की आयु में 9 मार्च 1931 में महासमाधि में प्रवेश लिया था। युक्तेश्वरजी गिरि जगन्नाथपुरी में स्थित अपने आश्रम में सचेतन रूप से समाधिस्थ होकर देह-त्याग किया।

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