By अनन्या मिश्रा | May 06, 2024
देशभर में प्रभु श्रीराम के सैकड़ों की संख्या में भक्त हैं। वहीं हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक त्रेता युग में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मध्याह्न बेला में श्रीराम का अवतरण हुआ था। इस मौके पर अयोध्या नगरी में स्थित राम मंदिर में श्रीराम की विशेष पूजा का आयोजन किया गया।
जानकारी के अनुसार, दर्पण, लेंस और पीतल पाइप के जरिए श्रीराम को सूर्य तिलक किया गया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश कि विदिशा में स्थित श्रीराम मंदिर में श्रीराम को सूर्य तिलक करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। आइए जानते हैं इस मंदिर और यहां की परंपरा के बारे में।
कहां स्थित है राम मंदिर
मध्य प्रदेश में स्थित विदिशा जिले के पेढ़ी चौराहे पर प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बना है। इस मंदिर में पिछले 280 वर्षों से मध्याह्न बेला में श्रीराम का सूर्य तिलक किया जाता है। क्योंकि श्रीराम मध्याह्न बेला में अवतरित हुए थे। बताया जाता है कि मंदिर की स्थापना 18वीं शताब्दी में की गई। उस दौरान देशभर में राम भक्तों ने सैकड़ों की संख्या में राम मंदिर बनवाए थे। वही यह मंदिर अयोध्या के महान संत राजाराम को दान में दिया या था। संत राजाराम ने स्वयं राम मंदिर में स्थापित प्रभु श्रीराम की पूजा-सेवा की जिम्मेदारी ली थी। तब से प्रभु श्रीराम का सूर्य तिलक किया जाता है।
कैसे होता है सूर्य तिलक
बता दें कि समर्थ मठ श्रीराम मंदिर में दोपहर 12 बजे जन्मोत्सव आरती होती है। इस दौरान मंदिर के प्रांगण में स्थित चबूतरे पर एक व्यक्ति ढाई फिट लंबा और एक फिट चौड़ा दर्पण लेकर खड़ा रहता है। इस दर्पण से मंदिर में सूर्य की किरणें उतरती हैं। दर्पण के माध्यम से इन किरणों को मंदिर के गर्भ गृह में पहुंचाया जाता है। इन किरणों के माध्यम से प्रभु श्रीराम का करीब15 मिनट तिलक किया जाता है।