रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेलवे की निजीकरण की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा कि आम लोगों के हित को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने साथ ही इसे जन सेवा के दायित्वों के निर्वहन से भी जोड़ा। प्रभु से पूछा गया कि दीर्घकालिक दृष्टि अपनाने पर ऐसा प्रतीत होता है कि रेलवे आम लोगों के परिवहन का किफायती माध्यम नहीं रहकर निजीकरण की राह पर चला जाएगा तो उन्होंने कहा, ‘‘भारत में ऐसा नहीं हो सकता। रेलवे एकमात्र माध्यम बना रहेगा..मेरे ख्याल से रेलवे आम लोगों के लिए परिवहन का अंतिम विकल्प है और हमें इस भार और जिम्मेदारी का निर्वहन करना है।’’
निजीकरण के विचार को खारिज करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आप यह नहीं कह सकते हैं कि निजीकरण के जरिए रेलवे की समस्याओं का समाधान संभव है। समाधान नतीजा आधारित कदम पर निर्भर होना चाहिए। दुनिया में बहुत कम रेलवे का निजीकरण हुआ है। ब्रिटेन की रेलवे के एक हिस्से का निजीकरण हुआ। उसे किसने खरीदा? इटली के रेलवे ने, जिसका नियंत्रण इटली की सरकार करती है। सरकारी संस्थाएं इसे खरीद रही हैं।’’ उन्होंने सवाल किया कि कौन सी निजी कंपनी ऐसा करने में दिलचस्पी रखेगी। उन्होंने पूछा, ‘‘आपको लगता है कि निजी विमान कंपनियां किसानों के लिए विशेष उड़ानों का परिचालन करेंगी। हम ट्रेन में यात्रा करने वाले लोगों को लेकर चिंतित हैं।’’ जनसेवा के दायित्वों पर जोर देते हुए प्रभु ने विश्वभर की व्यवस्था की नजीर पेश की और कहा, ‘‘इसके लिए किसी को भुगतान करना है जैसा कि दुनिया भर में हो रहा है। अगर आप जनसेवा कर रहे हैं तो वह केवल लोगों की सेवा है। इसलिए किसी को तो जनसेवा दायित्व का निर्वहन करना है और ऐसा पूरी दुनिया में होता है।’’
भारतीय रेलवे ने नीति आयोग से जनसेवा दायित्व के पहलू पर गौर करने को कहा है। वित्तीय वर्ष 2016-2017 को ‘अभूतपूर्व’ करार देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘रेलवे के लिए यह बहुत ही कठिन साल रहा। शायद सबसे चुनौतीपूर्ण वर्षों में से एक।’'