By नीरज कुमार दुबे | Nov 05, 2024
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 2004 के उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी है जो राज्य के मदरसों के लिए एक बड़ी राहत है। हम आपको याद दिला दें कि उच्च न्यायालय ने इस आधार पर इस कानून को खारिज कर दिया था कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। मगर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह मानकर गलती की कि यह कानून मूल ढांचे यानी धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। इस मुद्दे को लेकर विपक्ष योगी सरकार पर हमलावर हो रहा है और कह रहा है कि अदालत ने भाजपा सरकार को तगड़ा झटका दिया है। जबकि हकीकत यह है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश का प्रशासन 'तुष्टिकरण किसी का नहीं और संतुष्टिकरण सभी का', की नीति के तहत काम कर रहा है।
योगी सरकार मदरसों के छात्र-छात्राओं को भी आधुनिक शिक्षा देना चाहती है ताकि वह भी तरक्की कर सकें। योगी के नेतृत्व में ही उत्तर प्रदेश के विद्यालयों और मदरसों के अध्यापकों के अभिमुखीकरण के लिए पिछले साल ‘‘ओरिएंटेशन मॉड्यूल ऑन ए.आई’' का शुभारम्भ किया गया, जिससे मदरसों के छात्र-छात्राओं के पाठ्यक्रम में डिजिटल लिट्रेसी, कोडिंग एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को शामिल कर कम्प्यूटेशनल थिंकिंग को बढ़ावा मिल सका। यही नहीं, योगी सरकार ने ही मदरसों में कम्प्यूटर लगवाये और वहां बुक बैंक, विज्ञान व गणित किट बंटवाईं ताकि सिर्फ धार्मिक शिक्षा पढ़ रहे बच्चे आधुनिक शिक्षा हासिल कर डॉक्टर, इंजीनियर व प्रशासनिक अधिकारी बनने का अपना सपना साकार कर सकें।
उल्लेखनीय है उत्तर प्रदेश में कुल 16513 मदरसे हैं, जिसमें 560 राज्यानुदानित एवं 121 मदरसों में मिनी आई0टी0आई0 संचालित हैं। प्रदेश की सरकार ने मदरसों को मुख्य धारा से जोड़ने और अन्य बोर्डों के समान शिक्षा प्रदान करने के लिए समय-समय पर यथाआवश्यक संशोधन किये हैं। उप्र मदरसा शिक्षा परिषद द्वारा संचालित मदरसों में अध्ययनरत छात्रों के ज्ञान को विस्तारण देना समसामयिक शिक्षा के लिए प्रोत्साहन देना, सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता का विकास करना और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने के उद्देश्य से उ०प्र० अशासकीय अरबी और फारसी मदरसा मान्यता प्रशासन एवं सेवा विनियमावली 2016 में संशोधन किया गया और शैक्षिक सत्र 2017 से मदरसों में शिक्षण का माध्यम उर्दू के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेजी किया गया।
जहां तक सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की बात है तो आपको बता दें कि प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा, ''हम उत्तर प्रदेश मदरसा कानून की वैधता बरकरार रखते हैं और दूसरी बात यह कि यदि राज्य के पास विधायी शक्ति नहीं है, केवल तभी किसी कानून को खारिज किया जा सकता है।’’ उच्चतम न्यायालय का यह आदेश उत्तर प्रदेश के मदरसों के अध्यापकों एवं विद्यार्थियों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है क्योंकि उच्च न्यायालय ने इन मदरसों को बंद करने तथा उसके विद्यार्थियों को राज्य के अन्य विद्यालयों में दाखिला देने का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस कानून की विधायी योजना मदरसों में दी जा रही शिक्षा के स्तर के मानकीकरण के लिए है। हम आपको याद दिला दें कि शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गयी अर्जियों पर 22 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले करीब दो दिनों तक आठ याचिकाकर्ताओं की ओर से अंजुम कादरी, अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल केएम नटराज समेत कई वकीलों की दलीलें सुनीं। नटराज उत्तर प्रदेश सरकार की ओर शीर्ष अदालत में पेश हुए थे।
हम आपको याद दिला दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 22 मार्च को इस कानून को ‘असंवैधानिक’ तथा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला घोषित किया था। उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से मदरसों के विद्यार्थियों को औपचारिक विद्यालयों में भेजने का निर्देश दिया था। मदरसों के करीब 17 लाख विद्यार्थियों को राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने पांच अप्रैल को उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी।
बहरहाल, इस मुद्दे पर आ रही तमाम प्रतिक्रियाओं के बीच सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात श्री अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि माइनॉरिटी स्कीम चल रही है, माइनॉरिटी कमीशन चल रहा है, माइनॉरिटी अफेयर मिनिस्ट्री चल रही है, लेकिन माइनॉरिटी कौन है? यह कोई नहीं बता रहा है।