राफेल मामला फिर पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, मोदी सरकार की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 21, 2019

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए हुए सौदे की जांच की जरूरत को खारिज करने के 14 दिसंबर के उसके फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली अपीलों को वह सूचीबद्ध करने के बारे में विचार करेगा। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राफेल मुद्दे पर चार आवेदन या याचिकाएं दाखिल की गई हैं और इनमें से एक तो अब तक खामी की वजह से रजिस्ट्री में ही पड़ी है। इस पीठ में न्यायमूर्ति एल एन राव और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी हैं।

जब प्रशांत भूषण ने राफेल मामले में याचिकाओं को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की तो पीठ ने कहा कि पीठ (के न्यायाधीशों) में बदलाव करना होगा। यह बहुत मुश्किल है। हमें इसके लिए कुछ करना होगा। भूषण ने कहा कि आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह द्वारा दायर समीक्षा याचिका में खामी है और अन्य याचिकाओं में खामी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि समीक्षा याचिकाओं के अलावा एक ऐसा आवेदन भी दाखिल किया गया है जिसमें अदालत को गुमराह करने वाली जानकारी देने के लिए केंद्र सरकार के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है।

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पिछले साल 14 दिसंबर को उच्चतम न्यायालय ने कुछ याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इन याचिकाओं मेंपूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी तथा वकील प्रशांत भूषण की याचिकाएं भी थीं। तब न्यायालय ने कहा था कि फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद में केंद्र की निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह का सवाल ही नहीं उठता। भूषण, सिन्हा और शौरी.. तीनों ने उच्चतम न्यायालय को हाईप्रोफाइल राफेल मामले में सीलबंद लिफाफे में ‘‘झूठी या भ्रामक’’ जानकारी कथित तौर पर देने के लिए केंद्र सरकार के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ झूठे साक्ष्य का मुकदमा शुरू करने का सोमवार को आग्रह किया।

यह मुकदमा भादसं की धाराओं 193 और 195 के तहत दायर करने की मांग की गई है। ये धाराएं झूठे प्रमाण देने, प्रमाण के तौर पर झूठे दस्तावेज देने तथा नौकरशाहों के कानूनी प्राधिकार की अवमानना के अपराध से संबंधित हैं। अपील में कहा गया है कि नोट्स में जानकारी को छिपाने और असत्य बातें लिखने से झूठे साक्ष्य और अवमानना का मामला बनता है क्योंकि ये नोट्स अदालत के आदेश की अनुपालना में जमा किए गए थे। इसमें कहा गया है कि मूल्य से संबंधित जानकारी याचिकाकर्ताओं के साथ साझा नहीं की गई। आगे कहा गया है कि सरकार की ओर से सूचना छिपाए जाने की वजह से अदालत को पूरे तथ्यों की जानकारी नहीं मिल पाई जिसके कारण जनहित याचिकाएं खारिज कर दी गईं। इनमें कहा गया है कि अदालत को गुमराह करने वाले अधिकारियों की पहचान की जाए तथा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

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अपील में कैग की रिपोर्ट का हवाला भी दिया गया है। इसमें कहा गया कि तब कैग की रिपोर्ट नहीं आई थी। सरकार ने इस रिपोर्ट के आए बिना इसे लेकर अदालत को गुमराह कर दिया और यह बात फैसले में दामों को लेकर किए गए आकलन का आधार बनी। इस अपील में कहा गया है कि अपनी गलती मानने के बजाय सरकार की ओर से व्याख्या और अंग्रेजी व्याकरण की गलती बता दी गई। साथ ही अपील में, मीडिया में आई हालिया खबरों का भी संदर्भ दिया गया है जिनके अनुसार रक्षा मंत्रालय एवं भारतीय वार्ताकार दल को दरकिनार कर प्रधानमंत्री कार्यालय ने ‘अनधिकृत समानांतर वार्ताएं’ कीं और इसे कथित तौर पर दबा दिया गया।

इस मामले में पहली याचिका अधिवक्ता एम एल शर्मा ने डाली। फिर एक अन्य वकील विनीत ढांडा ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर मामले की अदालत की निगरानी में जांच कराने की मांग की। आप नेता संजय सिंह ने भी याचिका डाली। तीनों याचिकाओं के बाद सिन्हा, शौरी और भूषण ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर सीबीआई को, राफेल सौदे में कथित अनियमितताओं को लेकर एक प्राथमिकी दर्ज करने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया।

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