आज का जमाना एप्लीकेशन का है। सिंगल क्लिक पर आप गूगल के प्ले स्टोर से, या एप्पल स्टोर से किसी भी एप्लीकेशन को डाउनलोड करके कोई भी काम चुटकी बजाते कर सकते हैं। चाहे गाने सुनना हो, चाहे ऑफिस का कोई काम हो, चाहे किसी तरह का कोई रिमाइंडर हो, तमाम कार्य आप अपने एप्लीकेशन के माध्यम से निश्चित रूप से बेहद आसानी से कर सकते हैं।
देखा जाए तो एप्लीकेशन नामक अविष्कार ने इस दुनिया के लोगों की जिंदगी में भारी बदलाव किये हैं, और जैसे-जैसे इंटरनेट का प्रसार बढ़ा है, जैसे-जैसे इंटरनेट की स्पीड बढ़ी है, वैसे-वैसे एप्लीकेशंस ने हमारी दुनिया में बदलाव का सफ़र भी तेजी से तय किया है।
पहले जहां भारी-भरकम कंप्यूटर से ही कोई कार्य होता था, वहीं अब आपकी पॉकेट में फिट आ जाने वाले मोबाइल से आप हर कार्य को आसानी कर सकते हैं। हालांकि, जैसे-जैसे एप्लीकेशन की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे लोगों की इनसे उम्मीदें भी बढ़ रही हैं।
सुपर एप्स का कॉन्सेप्ट
वहीं, अलग-अलग कार्य के लिए अलग-अलग एप्लीकेशन इस्तेमाल करना लोगों को अब थोड़ा जटिल लग सकता है, इसलिए अब सुपर एप्स का कॉन्सेप्ट आया है। जी हां! सुपर ऐप्स मतलब आपके कई सारे कार्यों का एक ही स्थान। मतलब एक एप्लीकेशन खोलिए और उसमें आप सब कुछ कर लीजिए। निश्चित रूप से कंज्यूमर्स को इससे काफी आसानी होगी।
वास्तव में सुपर ऐप्स का कॉन्सेप्ट सबसे पहले चीन और दक्षिण पूर्व एशिया में सामने आया। यहां पर वीचैट, गोजेक, ग्रैब जैसे एप्लीकेशंस ने अपना रेवेन्यू अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए अलग-अलग सर्विसेज को ऐड करना शुरू कर दिया था।
इन एप्लीकेशंस पर न केवल ट्रैफिक बढ़ा, बल्कि इनका रेवेन्यू भी बढ़ा। इस तरीके से सुपर ऐप का कांसेप्ट चल निकला। इसी प्रकार से पश्चिम एशिया क्षेत्र ने भी कई सारे ट्रेडिशनल बिजनेस एंपायर, शॉपिंग मॉल्स, ग्रॉसरी और एंटरटेनमेंट इत्यादि को मिलाकर उन्होंने सुपर ऐप्स लांच करना शुरू कर दिया।
बढ़ेंगे रिपीटेड कस्टमर
एक तरह से यह शॉपिंग मॉल जैसा कॉन्सेप्ट हो गया। मतलब मार्केट में आप जाते हैं, तो अलग-अलग सामानों की अलग-अलग दुकानें दिखती हैं, किंतु जब आप शॉपिंग मॉल में जाते हैं, तब आपको सारी दुकानें एक प्लेस पर मिल जाती हैं, और सुपर एप्स का वास्तविक कांसेप्ट भी यही है। इस संदर्भ में की गई कई स्टडीज ने यह प्रूफ किया है कि इससे कस्टमर्स की संख्या बढ़ जाती है, और रिपीटेड कस्टमर भी बढ़ जाते हैं। यही नहीं, बार-बार कस्टमर आपके ऐप पर आना भी पसंद करते हैं। वास्तव में सुपर ऐप्स इसीलिए आगे की तरफ बढ़ता जा रहा है।
अगर भारत में हम बात करें, तो पेटीएम सुपर ऐप का एक अच्छा उदाहरण है। इसी प्रकार से जियो फोन पर भी तमाम सुपर ऐप्स आपको नजर आ जाएंगे, जो एक से अधिक सुविधाएं एक स्थान पर दे रहे हैं। जियो की अगर बात करें तो यह तो 100 से अधिक प्रोडक्ट्स और सर्विसेज देने के लिए आगे बढ़ चुका है। जियो की लोकप्रियता का आलम आप इसी बात से समझ लीजिए कि, इसमें विश्व की 2 सबसे बड़ी और आपस में कंपटीशन देने वाली कंपनियों ने इन्वेस्टमेंट किया है, और वह हैं फेसबुक और गूगल।
जी हां, जियो शॉपिंग से लेकर कंटेंट स्ट्रीमिंग, ग्रॉसरी, पेमेंट क्लाउड, स्टोरेज सर्विसेज के साथ-साथ टिकट बुकिंग जैसे कई सारे ऑफर एक जगह दे रहा है। इसी प्रकार से अगर पेटीएम की हम बात करें, तो पेमेंट से लेकर टिकट बुकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग, बैंकिंग, यहां तक कि कंज्यूमर फाइनेंस और गेम से लेकर इन्वेस्टमेंट जैसे कई ऑप्शन देता है।
टाटा ने शुरू किया काम
खबर है कि भारत की बड़ी कंपनी टाटा ग्रुप ने भी सुपर एप्स पर काम शुरू कर दिया है, और इसका पायलट प्रोजेक्ट जल्द ही सामने आ सकता है। इसके लिए टाटा डिजिटल नाम से कंपनी रजिस्टर्ड हुई है, जो कंज्यूमर फेसिंग, तमाम बिजनेस को साथ में लाने के लिए कार्य कर रही है।
इसी प्रकार से आईटीसी भी देश की बड़ी एफएमसीजी कंपनियों में से एक है, और वह भी अपना सुपर ऐप आईटीसी मार्स नाम से लांच करने वाली है। बताया जा रहा है कि इसमें किसानों की रेवेन्यू बढ़ाने के उपाय के साथ-साथ आईटीसी के दूसरे ब्रांच को एक साथ जोड़ा जाएगा।
वास्तव में जैसे-जैसे भारत की बड़ी आबादी तक इंटरनेट की पहुंच बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे सुपर ऐप्स का इको सिस्टम विकसित होने की तरफ बढ़ चला है। वहीं यूजर बिहेवियर का अंदाजा लगाना इससे काफी आसान होता है।
वैसे तो यह कंजूमर के लिए भी काफी फायदेमंद है, क्योंकि उसकी टाइम सेविंग से लेकर तमाम ऑफर एक जगह मिल जाते हैं, किंतु बताया जाता है कि मोनोपोली का इसमें खतरा है। हालांकि सभी कंपनियों के लिए मार्केट उतना ही खुला हुआ है, तो मोनोपोली की बात संभव प्रतीत नहीं होती है।
वहीं एक कस्टमर के रूप में सुपर एप्स के लिए केवल विश्वसनीय और अच्छी रेटिंग वाली कंपनियों को ही चयन करना चाहिए। बताया जाता है कि प्राइवेसी का भी इसमें एक मुद्दा है, क्योंकि कई सारे सुपर ऐप्स थर्ड पार्टी एप्लीकेशन के साथ भी काम करते हैं।
जो भी हो, रिसर्च कभी रुकती नहीं है, इनोवेशन कभी रुकती नहीं है, और इसलिए रिसर्च का स्वागत करने के लिए आप सब को तैयार रहना चाहिए। खासकर तब जब भारत की बड़ी कंपनियां इस फील्ड में उतर चुकी हैं।
- विंध्यवासिनी सिंह