शांत स्वभाव, आबेनॉमिक्स वाली आर्थिक नीति और चीन-नॉर्थ कोरिया को सीधा टक्कर, कुछ ऐसा था जापान की राजनीति में शिंजो आबे का रूतबा

By अभिनय आकाश | Jul 08, 2022

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे का, एक चुनावी कार्यक्रम के दौरान शुक्रवार को गोली मारे जाने के बाद निधन हो गया। सरकारी प्रसारणकर्ता एनएचके ने यह जानकारी दी। आबे को पश्चिमी जापान के नारा में भाषण शुरू करने के कुछ मिनटों बाद ही गोली मार दी गयी थी। उन्हें विमान से एक अस्पताल ले जाया गया लेकिन उनकी सांस नहीं चल रही थी और उनकी हृदय गति रुक गयी थी। अस्पताल में बाद में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। एक प्रमुख राजनीतिक परिवार में जन्मे, शिंजो आबे, देश के सबसे लंबे समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री भी थे। आइए उनके जीवन और राजनीतिक करियर से जुड़े पहलुओं के बारे में आपको बताते हैं। 

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21 सितंबर, 1954: शिंजो आबे का जन्म टोक्यो में हुआ। शिंजो के पिता शिंतारो आबे जापान के युद्ध के बाद के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख सदस्य थे। जिन्होंने जापान के विदेश मंत्री के रूप में सेवा की। वहीं आबे के नाना नोबुसुके किशी जापान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। 

1977: टोक्यो में सेइकी विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में डिग्री के साथ स्नातक की डिग्री लेने के बाद वो तीन सेमेस्टर के लिए दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में सार्वजनिक नीति का अध्ययन करने के लिए यूएस चले गए।

1979: आबे ने विदेशों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने वाली कोबे स्टील में काम करना शुरू किया।

1982: शिंजो आबे ने विदेश मंत्रालय और सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ नए पदों पर काम करने के लिए कंपनी छोड़ दी।

1993: इसी वर्ष आबे के राजनीतिक करियर में उछाल आई। यामागुची के दक्षिण-पश्चिमी प्रान्त का प्रतिनिधित्व करने वाले एलडीपी विधायक के रूप में पहली बार चुने गए। आबे पिता की तर्ज पर ही पहले से ही एक रूढ़िवादी के रूप में देखे जाने वाले नेता थे। 

2005: आबे को प्रधान मंत्री जुनिचिरो कोइज़ुमी के तहत मुख्य कैबिनेट सचिव नियुक्त किया गया, जिस दौरान उन्होंने उत्तर कोरिया में अपहृत जापानी नागरिकों को वापस करने के लिए बातचीत का नेतृत्व किया। उसी वर्ष उन्हें एलडीपी का प्रमुख चुना गया, जिससे उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने के लिए तैयार किया गया।

26 सितंबर, 2006: आबे पहली बार जापान के प्रधानमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने उत्तर कोरिया पर कड़ा रुख अपनाते हुए और दक्षिण कोरिया और चीन के साथ जुड़ने की मांग करते हुए आर्थिक सुधारों की देखरेख की।

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2007: चुनावी हार के बाद एलडीपी ने 52 वर्षों में पहली बार विधायिका का नियंत्रण खो दिया। आबे ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया। आबे अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीड़ित थे, लेकिन दवा से इसे नियंत्रित करने में सक्षम थे।

2012: फिर से एलडीपी अध्यक्ष चुने जाने के बाद, आबे दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। चुनाव के दौरान जापान के लोगों से इकोनॉमी को मजबूत बनाने, डिफ्लेशन पर लगाम लगाने, दूसरे विश्व युद्ध के बाद लागू संविधान की पाबंदियों को कम करने और पारंपरिक मूल्यों को बहाल करने का वादा किया था।

2013: विकास को बढ़ावा देने के लिए शिंजो आबे के 'आबेनॉमिक्स' सिद्धांत को दुनिया भर में चर्चा तो खूब मिली। चीन के साथ जापान के संबंध विशेष रूप से खराब हो गए हैं, लेकिन आबे के बीजिंग में APEC शिखर सम्मेलन में चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ मुलाकात के बाद इसमें सुधार होना शुरू हो गया।

2014-2020: आबे फिर से एलडीपी के नेता गए। जिसके दौरान उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए और, एक साथ शिखर सम्मेलन और गोल्फिंग की। गोल्फ कोर्स पर एबे ने ट्रंप के साथ ली अपनी सेल्फी की तस्वीरों को ट्वीट करते कहा था कि वह 'जापान-अमरीका गठबंधन को नए जापानी युग में और मजबूत बनाएंगे।' ट्रंप ने भी एक ट्वीट करते हुए लिखा 'प्रधानमंत्री एबे शिंजो से मिलकर बहुत अच्छा लगा। 

 

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28 अगस्त, 2020: शिंजो आबे की राजनीति में पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह इतिहास के सबसे लंबे अवधि वाले प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 7 साल 6 महीने तक जापान की सत्ता पर राज किया लेकिन आंत की एक गंभीर बीमारी के चलते उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था।

 2021: पद छोड़ने के बावजूद आबे ने अपने बयानों के जरिए दिखाया कि वो अभी भी ताइवान पर टिप्पणियों के जरिये बीजिंग को चिंता में डालने का माद्दा रखते हैं। आबे ने स्व-शासित द्वीप पर चीन के अपने क्षेत्र के रूप में दावा और हमले की धमकी को लेकर एक भाषण में चेतावनी देते हुए किसी भी किस्म की सैन्य कार्रवाई आर्थिक आत्महत्या की ओर ले जाने वाला कदम बताया था।"

सबसे ज्यादा भारत का दौरा करने वाले प्रधानमंत्री

शिंजो आबे जापान के ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्होंने सबसे ज्यादा बार अपने कार्यकाल के दौरान भारत का दौरा किया। पहली बार शिंजो आबे अपने पहले कार्यकाल (2006-07) के दौरान भारत आए। अपने दूसरे कार्यकाल (2012-2020) के दौरान शिंजो आबे ने तीन बार भारत का दौरा किया। वो जनवरी 2014, दिसंबर 2015 और सितंबर 2017 में भारत के दौरे पर आए।

शिंजो आबे और उत्तर कोरिया

शिंजो आबे की सरकार ही थी जिसने अपने पद की पिछले अवधि के दौरान उत्तर कोरिया पर उक्त संदर्भित प्रतिबंध लगाए थे। ये प्रतिबंध संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के अतिरिक्त थे। 


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