''मिशन शक्ति'' का सफल परीक्षण दुश्मनों में दहशत पहुंचाएगा

By रजनीश कुमार शुक्ल | Apr 01, 2019

'मिशन शक्ति' का सफल परीक्षण भारत के लिए बहुत ही बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि अभी तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ही अंतरिक्ष युद्घ में समर्थ थे। अब भारत के वैज्ञानिकों ने जो कर दिखाया वह भारत को सर्वोच्च शिखर पर ले जायेगा। तकनीकी रूप से यह बहुत मुश्किल क्षमता मानी जाती है, क्योंकि जिस 'ऑब्जेक्ट' को हम निशाना बना रहे होते हैं, वह बहुत तेज गति से चक्कर काटता रहता है। जो बेहद ही मुश्किल काम है। किसी रुकी हुई चीज में निशाना लगाना आसान होता है परन्तु किसी तीव्र गति से घूम रहे 'ऑब्जेक्ट' को निशाना बनाना बहुत ही कठिन होता है। हमारे वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में 300 किमी दूर धरती की निचली कक्षा में गतिमान सैटेलाइट को पृथ्वी से निशाना बनाया और सफलता पूवर्क नष्ट किया, जो असाध्य काम है, लेकिन भारतीय रक्षा और अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने दिन रात एक करके इसे कर दिखाया। वर्तमान समय टेक्नोलॉजी का है भविष्य में वही पूरी दुनिया में हुकूमत कर सकता है जिसके पास धरती से लेकर आसमान तक युद्घ करने की क्षमता हो। क्योंकि यह युग में आधुनिक हथियारों है और दुश्मनों को परास्त करने के लिए संचार जीपीएस, नेवीगेशन, सैन्य, टेलीविजन पर अपना नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। अगर दुश्मन देश के सैटेलाइट को निस्तोनाबूद कर दिया जाता है तो उनका अपने लोगों से सम्पर्क टूट जाता है और सैन्य कार्रवाई करने में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उन पर काबू पाने में कोई परेशानी नहीं होती।

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'मिशन शक्ति' से उपग्रह को नष्ट करना वर्तमान समय की मांग थी, क्योंकि अंतरिक्ष तकनीकी से भविष्य में होने वाले युद्घ या कोई बड़ी परेशानी में यह सार्थक साबित होगा। इस समय सिर्फ तीन देशों के पास ही ऐसी क्षमता थी। चीन भारत का हमेशा से ही दुश्मन रहा है वह भारत को परेशान करने के लिए हमेशा से ही पाक का साथ देता रहा है। उसके पास ऐसी ताकत थी, लेकिन अब भारत की इस क्षमता को देखने के बाद उसके सुर जैसे बदल से गए, और शांति की बात करने लगा कि इस सफल परीक्षण से अंतरिक्ष में कोई अशांति नहीं फैलेगी। वर्ष 2007 में चीन ने इसी तरह का परीक्षण करके अपनी ताकत का एहसास कराया था। अब भारत के लिए भी जरूरी हो गया था कि वह भी अपने आप को इस क्षमता के लिए तैयार रखे। यह बात अलग है कि भारत अंतरिक्ष को हथियारों की होड़ से मुक्त रखना चाहता था लेकिन केवल भारत के चाहने से ऐसे हालात नहीं बदलने वाले क्योंकि सभी अपने आप को ताकतवर दिखाने के लिए नए-नए परीक्षण कर विश्व में नम्बर एक पर पहुँचना चाहते हैं।

 

अमेरिका ने वर्ष 1959 में ही एंटी सैटेलाइट वीपन तकनीकी विकसित कर ली थी। परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बोल्ड ओरियन नामक बैलिस्टिक मिसाइल सेटेलाइट को तबाह करने के दोहरे मकसद के लिए भी तैयार किया था। इस सैटेलाइट को बमवर्षक लड़ाकू विमान से दागा गया था। वर्ष 1985 में अमरीका ने एजीएम-135 को एफ-15 लड़ाकू विमान से दागा था। इस मिसाइल ने अंतरिक्ष में जाकर सोलविंड पी 78-1 उपग्रह को सफलता पूर्वक तबाह किया था। वर्ष 2008 में अमरीका ने ऑपरेशन ब्रंट फ्रोस्ट कर एसएम-३ मिसाइल को शिप से लाँच कर अपने जासूसी उपग्रह को नष्टï किया था।

 

अमेरिका की इस उपलब्धि पाने के बाद तत्कालीन सोवियत संघ ने भी इस तरह के परीक्षण किये थे। वर्ष 1960 और 1970 के बीच ऐसे कई हथियारों का परीक्षण किया जिसे अंतरिक्ष में भेजकर दुश्मनों के सैटेलाइट को विस्फाटकों से उड़ा सकता था। वर्ष 2007 चीन ने भी एंटी बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया था, और उच्च ध्रुवीय कक्षा में मौजूद अपने पुराने मौसम उपग्रह को ध्वस्त किया था।

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पूरी दुनियां में सभी देश अपनी धाक जमाने के लिए नए-नए हथियार विकसित करने की होड़ में लगे हुए हैं। उत्तर कोरिया आये दिन परमाणु हथियारों का परीक्षण कर रहा है। जिससे उसके पास के देशों में दहशत बनी रहती है। अगर भारत की बात करें तो पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन चीन है वह पाक को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है। इन सबको लेकर देखा जाये तो भारत को अत्याधुनिक तकनीकी इसी तरह बढ़ानी होगी। जिससे कोई भी देश आँख उठाकर न देख सके। भारत को 'मिशन शक्ति' में सफलता मिलने के बाद ज्यादातर देश उसके साथ खड़े दिख रहे। इस समय अमेरिका और रूस भी भारत के साथ रक्षा और अंतरिक्ष तकनीकी को विकसित करने के लिए साथ देने को कहा, क्योंकि उनको भी मालूम है कि चीन से यदि कोई टक्कर ले सकता है तो वह भारत ही है। भारत की कूटनीति भी काम आ रही क्योंकि जब चीन ने 2007 में अपने मौसम उपग्रह को नष्टï किया था। तब अमरीका ने इसका विरोध किया था। लेकिन भारत का किसी ने विरोध नहीं किया।

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हमारे वैज्ञानिकों ने जो उपलब्धि हासिल की। वह उनकी उपलब्धि ही नहीं बल्कि उनके साथ-साथ पूरे देश की है। 'मिशन शक्ति' पर आज से काम नहीं हुआ यह पीढिय़ों की मेहनत का फल है। यह उपलब्धि अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ का नहीं है। यह किसी गतिशील 'ऑब्जेक्ट' को मार गिराने की तकनीकी श्रेष्ठता पाने का मामला है, जिसका इस्तेमाल कई दूसरी प्रणालियों और अन्य उद्देश्यों में हो सकता है। यह हमारे देश लोगों के अंदर विश्वास पैदा करेगा कि हमने यह मुकाम हासिल कर लिया है, जिसका श्रेय पूरी तरह से वैज्ञानिकों को दिया जाना चाहिए। इस पर किसी तरह की कोई राजनीति नहीं होनी चाहिये, जिससे वैज्ञानिकों को कोई ठेस पहुँचे।

 

- रजनीश कुमार शुक्ल

 

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