By अनुराग गुप्ता | Aug 16, 2021
अंग्रेजों को खदेड़ने वालीं झांसी की रानी महारानी लक्ष्मी बाई की असाधारण वीरता की गाथा को अपने शब्दों और कविताओं के जरिए लोगों के बीच पहुंचाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान को भूला नहीं जा सकता है। बुंदेलखंड के साथ-साथ हिन्दुस्तान के स्वाधीनता आंदोलन को मजबूती देने वाली कविता को हर एक व्यक्ति ने गुनगुनाया है। बचपन से लेकर जवानी तक इन पंक्तियों को पढ़ने के साथ ही रोम-रोम रोमांचित हो उठता था और हो उठता भी है।
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रारंभिक जीवन
इलाहाबाद के करीब एक छोटे से गांव के जमींदार परिवार में जन्मीं सुभद्रा कुमारी चौहान ने बचपन में ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। राष्ट्रीयता की भावना को उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए धार दिया था। उनके शब्द लोगों के भीतर राष्ट्रवाद की चेतना को जागृत करते थे। सुभद्रा कुमारी चौहान के पिता ठाकुर रामनाथ सिंह को पढ़ाई-लिखाई से काफी प्रेम था और वो अपने बच्चों में भी यही भावना पैदा करना चाहते थे।
दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह लिखने वालीं कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का विवाह खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाह हुआ। जिसके बाद वह जबलपुर में रहने लगीं।
कवियित्री होने के साथ-साथ सुभद्रा कुमारी चौहान एक स्वाधीनता संग्राम की सेनानी भी थीं। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया था और इस आंदोलन में हिस्सा लेने वाली वह पहली महिला थी।
गूगल ने बनाया डूडल
सुभद्रा कुमारी चौहान की 117वीं जयंती पर गूगल ने अपने अंदाज में उन्हें श्रद्धांजलि दी। दरअसल, गूगल ने सोमवार (16 अगस्त) को एक खास डूडल बनाया। डूडल में साड़ी पहने हुए सुभद्रा कुमारी चौहान कलम और पन्नों के साथ नजर आईं।
- अनुराग गुप्ता