MODIfied100: पानी की किल्लत और लगातार बढ़ रही भुखमरी पर कब विचार करेगी सरकार

By अनुराग गुप्ता | Sep 09, 2019

‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ का चांद पर उतरते समय जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया। सपंर्क तब टूटा जब लैंडर चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था। ऐसे में इसरो के वैज्ञानिक पूरी तरह से भावुक हो गए। लेकिन वहां पर मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका हौसला बढ़ाया और गले लगाकर भावुक इसरो प्रमुख के. सिवन को आगे बढ़ने और सपने को साकार करने का जज्बा दिया। यह उस वक्त हो रहा था जब नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लिए थे। लेकिन इन 100 दिनों में सरकार के समक्ष भी कुछ कम चुनौतियां नहीं थीं। एक तरफ उत्तर और दक्षिण भारत में बाढ़ जैसे हालात बने हुए थे तो दूसरी तरफ पानी सतह से और नीचे जाता हुआ प्रतीत हो रहा था।

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जल संकट से प्रभावित भारत

हाल ही में आई विश्व संसाधन संस्थान की एक रिपोर्ट एक्वाडक्ट वॉटर रिस्क एटलस के मुताबिक भारत उन 17 देशों में शुमार है, जो गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। इस सूची में भारत का 13वां स्थान है। इस रिपोर्ट ने अंदेशा जताया है कि सूची में शामिल देशों में पानी समाप्त होने की कगार पर आ चुका है।

हमने हमेशा से यही पढ़ा और जाना है कि 'जल ही जीवन है' लेकिन सोचिए अगर जल ही न रहे तो जीवन का क्या होगा। ठीक यही हालात आज हमारे मुल्क हिन्दुस्तान के हैं। क्योंकि मानव जीवन पर यह एक संकट के तौर पर मंडरा रहा है। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस बात का आभास हो गया है तभी तो स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से देश के नाम संबोधन देते वक्त उन्होंने 'जल जीवन मिशन' का ऐलान किया और फिर कहा कि 3.5 लाख करोड़ से भी ज़्यादा रकम इस मिशन के लिए खर्च करने की योजना है। 

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सरकार ने योजना तो लॉन्च कर दी लेकिन क्या वह सफल हो पाएगी यह एक बड़ा सवाल है। क्योंकि भारत आज तक के इतिहास में सबसे खराब जल संकट की समस्या से जूझ रहा है। नीति आयोग के मुताबिक साल 2021 तक देश के 21 शहरों से पानी समाप्त हो जाएगा। इनमें से सबसे ज्यादा खतरा 11 शहरों में मंडरा रहा है। जिनमें दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, नासिक, जयपुर, अहमदाबाद और इंदौर जैसे शहर शामिल हैं।

किसानों की आत्महत्या का कारण भी बना 'पानी'

क्या कभी किसी ने सोचा होगा कि किसान पानी की वजह से आत्महत्या भी कर सकते हैं। अभी तक तो हमने यही सुना था कि कर्ज में डूबे किसान ने आत्महत्या की लेकिन मामला अब थोड़ा उलट है। किसानों की आत्महत्या की सबसे ज्यादा खबरें महाराष्ट्र से आती हैं और इसकी मुख्य वजह पानी है। क्योंकि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा की हालत ऐसी है कि किसानों को खेती के लिए टैंकरों में पानी खरीदना पड़ता है और यहां के बांधों में लगभग पानी समाप्त होने को है। इतना ही नहीं आलम यह है कि यहां पर बारिश भी बहुत कम होती है ऐसे में किसान मजबूर हो जाता है और खबरें हमारे पास आती हैं।

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एक्वाडक्ट वॉटर रिस्क एटलस रिपोर्ट में 17 देशों का नाम शामिल है जहां पर पानी समाप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है। लेकिन सबसे चौंका देने वाली बात यह है कि भारत की जनसंख्या इस कैटेगरी के बाकी 16 देशों की जनसंख्या से तीन गुना से भी ज्यादा है। और आप यह बखूबी जानते हैं कि जितनी ज्यादा जनसंख्या उतना ही ज्यादा होगा संसाधनों का इस्तेमाल...ऐसे में बाकी देशों की तुलना में हमारा देश बड़ी तेजी से इस समस्या में समाता चला जा रहा है।

भुखमरी का हाल भी कुछ ऐसा ही है

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें बताया गया कि हमारे मुल्क में विश्व की भूखी आबादी का करीब एक तिहाई हिस्सा निवास करता है और तो और देश में करीब 39 फीसदी मासूम बच्चों को पर्याप्त मात्रा में आहार नहीं मिल पाता। बचपन से ही हमने यह सुना है कि इंसानी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा और मकान अहम है। लेकिन हम यहां पर तो कपड़ा और मकान की बात नहीं कर रहे सिर्फ रोटी यानी की आहार की बात कर रहे हैं।

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हमने हमेशा नेताओं को विकास के दावे दोहराते हुए सुना है, लंबे-चौड़े भाषण देते और दावे करते भी देखा होगा लेकिन जो दावे संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में किए गए वो नेताओं की बातों और दावों की हकीकत सामने रखती है। दुनिया भर के देशों में भुखमरी के हालात का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संस्था-इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक 119 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक 2018 में भारत 103वें पायदान पर था। इस रिपोर्ट में तमाम देशों के खानपान की स्थिति का विस्तृत ब्यौरा होता है। हर साल अक्टूबर के माह में यह रिपोर्ट जारी की जाती है। पिछले साल यानी की साल 2018 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स का 13वां संस्करण सामने आया था। 

कहीं भूल तो नहीं गए नेपाल और बांग्लादेश बेहतर हैं हमसे

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक हमारी (भारत) स्थिति पड़ोसी देशों चीन, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका से भी बद्दतर है। रैंकिंग की बात करें तो चीन को 25वां, बांग्लादेश को 86वां, नेपाल को 72वां, श्रीलंका को 67वां और म्यांमार को 68वां स्थान मिला। हां भारत की पाकिस्तान से जरूर बेहतर है। पाकिस्तान को 106वां स्थान मिला था जबकि अपने भारत का 103वां स्थान है। चलिए आप इस बात से जरूर खुश होंगे कि हम पाकिस्तान से बेहतर थे, हैं और आगे रहेंगे भी... लेकिन क्या हम इस लड़ाई में खुद का स्तर नहीं गिरा रहें... साल 2014 में जब पहली बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी तब वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 55वें रैंक पर था, वहीं 2015 में 80वें, 2016 में 97वें, साल 2017 में 100वें स्थान पर थे... यह आंकड़े कुछ कहें या न कहें लेकिन विकास के तमाम दावों पर सवाल जरूर खड़े कर रहें हैं। जाते-जाते निदा फाजली का शेर याद आता है कि ‘इन नन्हें मुन्ने बच्चों को चांद सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़कर ये हम जैसे हो जाएंगे’ 

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