यमुना की दुर्दशा की कहानी: हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी क्यों काला पानी और जहरीला झाग तैरता नजर आता है

By अभिनय आकाश | Nov 11, 2021

गंगा नदी जिसे मां गंगा या फिर गंगा मैया कहकह मातृ भाव से पूजी जाती है और उसी प्रकार यमुना या जमुना नदी के आर पार बसे लोग जमुना मैया कह कर ही जल का आचमन करते रहे है। भारत में फलीफूली उस विशिष्ठ संस्कृति जिसमें "वासुदेव: कुटुंब" की भावना प्रबल हो उसे हम इन्हीं दो नदियों के समान “गंगा जमना तहजीब” कहकर संदर्भित करते हैं। आपसी प्रेम, भाईचारे और एकता की मिसाल गंगा-जमुनी तहजीब की बातें हिन्दुस्तान में तो देखने को मिलती है। लेकिन जिस गंगा जमुनी तहजीब से हिन्दुस्तान की पहचान होती रही है। उस हिन्दुस्तान में नदियां अब सांसों के लिए तरप रही हैं। इन नदियों में इतना जहर घोला जा चुका है कि अब वो झाग की शक्ल में तैरने लगा है। छठ के मौके पर दिल्ली से गुजरने वाली यमुना नदी के ऐसे हाल ने सभी को हैरान कर दिया। लेकिन हकीकत ये है कि इसमें कुछ भी नया नहीं है। बरसात के मौसम को छोड़ दें तो पूरे साल यमुना लगभग ऐसी ही दिखती है। काला पानी सफेद झाग ही यमुना की सच्चाई है। 

भगवान कृष्ण के यमुना को क्या बना डाला

यमुना केवल एक नदी नहीं है, वह भारतीय इतिहास और विश्‍वास की ऐसी कड़ी है जिससे करोड़ों लोगों की आस्‍था जुड़ती है। भगवान श्रीकृष्‍ण के अधिकतर संस्‍मरण यमुना के विहंगम दृश्‍य के समक्ष लिखे गए हैं। कृष्‍ण और यमुना जैसे एक-दूसरे के लिए ही बने हों। मगर कृष्‍ण को यमुना से जितना लगाव था, उनके भक्‍त यमुना से उतना ही कटे नजर आते हैं। दिल्ली को जन्म देने वाली यमुना ही है। इतिहास गवाह है कि जब-जब शहर बसाए गए तो राजा-महाराजाओं ने यह ध्यान रखा कि जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत पानी वहां मौजूद हो। दिल्ली को दिल्ली बनाने वाली यमुना ही है। क्योंकि वो यमुना ही थी जिसके दोनो किनारों पर सभ्यता ने जन्म लिया। यमुना ने कई कई बार दिल्ली को बसते और उजड़ते देखा है। यमुना की चीख को हमने न केवल सुना है बल्कि कोशिश की है कि यमुना के उस दर्द और इसके साफ करने के पीछे हजारों करोड़ खर्च कर भी नजीता शून्य ही निकलने की पूरी कहानी का स्कैन किया है। ताकी आप भी यमुना के दर्द को सुने और समझें भी। 

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दिल्ली में यमुना का 2 फीसदी हिस्सा, 80 प्रतिशत प्रदूषण 

दिल्ली की हवा सांस लेने लायक नहीं है और दिल्ली का पानी छूने के लायक भी नहीं है। हम बात कर रहे हैं उस यमुना नदी की जिसका एक छोटा सा हिस्सा महज 2 फीसद दिल्ली से गुजरता है। इस दिल्ली में एक केंद्र की सरकार है और एक राज्य की सरकार है लेकिन दोनों सरकारें मिलकर यमुना के इस दो फीसदी हिस्से को साफ नहीं कर पा रही है। उल्टा सच्चाई ये है कि पूरी यमुना नदी में जितनी गंदगी है उसमें 80 फीसदी हिस्सेदारी दिल्ली की है। मतलब यमुना को मैली करने वाली दिल्ली ही हैं। यमनोत्री से प्रयागराज तक जाने वाली यमुना का केवल दो फीसदी हिस्सा ही दिल्ली में बहता है। लेकिन उसी दो फीसदी में यमुना 80 फीसदी प्रदूषित हो जाती है और इसकी शुरुआत दिल्ली में यमुना के प्रवेश के साथ ही शुरू हो जाती है।

क्यों झागदार हो जाता है यमुना का पानी 

वजीराबाद बैराज से दिल्ली में यमुना का सफर शुरू होता है। जिस यमुना नदी का पानी दिल्ली में दाखिल होते वक्त साफ होता है, वो दिल्ली में घुसने के बाद मैली और जहरीली होने लगती है। दोनों जगह का फर्क साफ-साफ देखा जा सकता है कि चंद किलोमीटर बहने के बाद दिल्ली में यमुना नदी का पानी काला नजर आता है। जिसकी वजह है वो गंदे नाले जिसका पानी यमुना में छोड़ा जाता है। नालों की गंदगी से न केवल यमुना का पानी दूषित होता है बल्कि उसमें दुर्गंध भी आने लगती है। यही प्रदूषित पानी आईटीओ होते हुए कालिंदी कुंज तक जाता है। वहां पहुंचने तक नदी में इतनी गंदगी मिल चुकी होती है कि वो एक गंदे नाले में बदल जाती है। दिल्ली में यमुना का बहाव केवल 22 किलोमीटर तक का ही है लेकिन इस 22 किलोमीटर में ही कुल 40 नालों का गंदा पानी यमुना में गिरता है। यानी हर दो किलोमीटर पर दो नाले यमुना को प्रदूषित करते चलते हैं। इस पानी को साफ करने के लिए सभी नालों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। बिना ट्रीटमेंट वाले सीवेज से व्यापक स्तर पर निपटने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) को एक जून तक का समय दिया गया था। लेकिन बोर्ड ऐसा नहीं कर पाया। सीपीसीबी की एक रिपोर्ट में सरफेक्टेंट और फॉस्फेट को इसकी वजह माना गया है। घरों और उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले डिटर्जेंट में इसकी मात्रा काफी अधिक होती है और यह विभिन्न नालों से होते हुए सीधा यमुना में गिरता है। सीपीसीबी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि झाग की यह परत ओखला बैराज और आईटीओ पर दिखती है। ओखला बैराज पर ऊंचाई से पानी गिरने से फॉस्फेट और सरफेक्टेंट पानी में घुलते हैं और झाग बनाते हैं।

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दिल्ली सरकार ने सफाई के लिए करोड़ो रुपए आवंटित किए 

एक के बाद एक कई नाले यमुना में गिरते हैं। जिससे इसका पानी नाले के पानी के समान काला हो जाता है। झाग बनाना शरू कर देता है और धीरे-धीरे पानी में अमोनिया का स्तर इतना बढ़ जाता है कि वो पीने के लायक भी नहीं रह जाता है। यमुना के पानी पर प्रदूषण की सफेद चादर इस झाग के रूप में तैरती रहती है। लेकिन यमुना के वर्तमान हालात एक दिन के नहीं बल्कि पिछले दो दशक से यमुना प्रदूषित हो रही है और पिछले दो दशक से ही यमुना की सफाई का अभियान चल रहा है। दिल्ली सरकार की तरफ से जनवरी के महीने में यमुना करे झाग को रोकने के लिए 9 सूत्रीय कार्य योजना बनाई। लेकिन इसका नजीजा अभी तक कोई खास नहीं रहा। दिल्ली सरकार की तरफ से अपने बजट में यमुना सफाई अभियान के लिए 2074 करोड़ रुपये आवंटित किए। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। दिल्ली सरकार ने यमुना की सफाई के लिए साल 2018 से 2021 के बीच में करीब 200 करोड़ की राशि आवंटित की लेकिन उसे खर्च करने का असर अभी तक नजर नहीं आया है।

केंद्र ने भी 1500 करोड़ से ज्यादा खर्च किया

यमुना की सफाई के नाम पर करोड़ो-करोड़ खर्च करने का आंकड़ा केवल दिल्ली सरकार का नहीं है। बल्कि इसकी सफाई में खर्च करने के लिए केंद्र की तरफ से भी पानी की तरह पैसा बहाया गया है। केंद्र सरकार ने पिछले दो दशकों के दौरान 1500 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। लेकिन यमुना की स्थिति देखें तो आज भी इसका काला पानी और झाग नाले की तस्दीक कराता है। यमुना की सफाई के लिए नमामि गंगे प्रोग्राम के तहत 4 हजार करोड़ से अधिक के 24 प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं। उनमें सबसे ज्यादा 13 प्रोजेक्ट दिल्ली में हैं। लेकिन अभी तक उनमें से केवल 2 का काम पूरा हुआ है। उत्तर प्रदेश में 8 में से सिर्फ 1 और हिमाचल में तो एक भी प्रोजेक्ट पर काम पूरा नहीं हुआ है। केवल हरियाणा ने ही अपने दोनों प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया है। 

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अगर यमुना की सफाई में फेल हुआ तो मुझे वोट न देना

यमुना के जहरीले झाग को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बड़े-बड़े दावे किए हैं। उन्होंने एक निजी चैनल के कार्यक्रम में कहा कि यमुना की सफाई मेरी जिम्मेदारी है। यमुना में गंदगी के मुद्दे पर मैं किसी पर आरोप नहीं लगाऊंगा। यमुना साफ होगी और मैं अगले चुनाव से पहले इसमें पवित्र स्नान करूंगा। अगर मैं फेल हो जाता हूं तो मुझे वोट नहीं देना। जनवरी 2020 में चुनाव से पहले केजरीवाल ने अपने चुनावी वादे में कहा ता कि अगर उनकी सरकार आती है तो आने वाले पांच साल में यमुना की सफाई आप सरकार की प्राथमिकता होगी। यह पहला मौका नहीं है जब चुनाव के दौरान केजरीवाल को यमुना की चिंता सताने लगी है। सच्‍चाई ये हैं कि आम आदमी पार्टी (आप) ने अपने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से जुड़े अपने घोषणापत्र में लिखा था कि 'लंबे समय से यमुना नदी दिल्ली की सामुहिक याद का हिस्सा रही है लेकिन ये जीवनरेखा मर रही है। हम दिल्ली के 100 प्रतिशत सीवेज को इक्ट्ठा करके उसका ट्रीटमेंट सुनिश्चित करेंगे जिसके लिए व्यापक सीवर नेटवर्क और नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएंगे। बिना ट्रीटमेंट वाले पानी और औद्योगिक गंदगी को यमुना में बहाए जाने से सख्ती से रोका जाएगा।

हमें भी समझनी होगी अपनी जिम्मेदारी

यमुना की प्रदूषण-मुक्ति के लिये सरकार के साथ-साथ जन-जन को जागना होगा। सरकार की सख्ती एवं जागरूकता ज्यादा जरूरी है। यमुना प्रदूषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय हरित पंचाट, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकाय औद्योगिक इकाइयों के लिए समय-समय सख्त नियम बनाते रहे हैं। पर लगता है कि इनके दिशानिर्देशों पर अमल करवाने वाला तंत्र कमजोर साबित हो रहा है। वरना क्या कारण है कि सख्ती के बाद भी औद्योगिक कचरा और जहरीले रसायन यमुना में बहाए जा रहे हैं? औद्योगिक इकाइयों को सख्त हिदायत है कि वे तरल कचरा नदियों में प्रवाहित न करें। पर जिस सरकार, उसके महकमे और कानून प्रवर्तन एजंसी पर इसे सुनिश्चित करवाने की जिम्मेदारी है, लगता है वह काम ही नहीं कर रही। कुछ समस्याएं राजनीतिक नफा-नुकसान से ऊपर होती है। उन्हें राजनीतिक नजरिये से नहीं, मानवीय नजरिये से देखना होता है।  अन्यथा जीवन मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जायेगा। मनुष्य के भविष्य के लिए यह चिन्ता का बड़ा कारण हैं। दिल्ली की यमुना इसी प्रकार अगर प्रभावित एवं प्रदूषित होती रही तो अगली शताब्दी में दिल्ली की बहुत कुछ विशेषताएं समाप्त हो जाएंगी। क्या आप ऐसी सुबह चाहेंगे जब दिल्ली का जीवन घोर अंधेरों से घिरा हो? विडम्बना यह है इस ओर हमारे दायित्व के प्रति हम सबने आंखें मूंद रखी हैं। ऐसे में आइए हम एकजुट होते हैं ताकि यमुना फिर बलखाए और मुस्कुरा सके।

 -अभिनय आकाश

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