By अभिनय आकाश | Dec 26, 2023
बाल दिवस किस तारीख को मनाया जाता है? जवाब है 14 नवंबर को जिस दिन चाचा नेहरू का जन्मदिन है और चाचा को बच्चों से बहुत प्यार था। लेकिन इसी साल 9 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती पर प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को सिख गुरु के बेटों जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। 26 दिसंबर का दिन जब गुरु गोविंद सिंह के बेटों ने धर्म त्यागने की जगह प्राण त्यागना स्वीकार किया और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि बलिदानी होने के लिए उम्र नहीं स्वधर्म के लिए अनुराग चाहिए। 26 दिसंबर इतिहास के पन्नों में दर्ज उच्चतम शौर्य, शीर्ष बलिदान और वीरता की वो दास्तां है, जिसे सुनकर आज भी मस्तक श्रद्धा भाव से झुक जाया करते हैं और सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। आज वीर बाल दिवस है जब याद किया जाता है उन शूरवीर बलिदानी बच्चों को जिन्होंने गलत के सामने झुकने की जगह खुद को कुर्बान कर देना ही सही समझा था। आज ही के दिन सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के परिवार ने शहादत दी थी। इनके चार पुत्रों की याद में बिताया जाता है। गुरुद्वारा फतेहसाहेब उसी स्थान पर खड़ा है जहां साहिबजादों ने आखिर सांस ली थी। आज ऐसे ही वीर बालकों की कहानी आपको बताते हैं जिन्हें अपने कोख से जन्म देकर भारत देश की मिट्टी धन्य हो गई।
चमकौर साहिब का युद्ध
गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटे थे, चार साहिबजादे, चारों ने मुगलों के खिलाफ खालसा पंथ की पहचान और सम्मान को बनाए रखने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने 40 बहादुर सिख योद्धाओं के साथ मिलकर चमकौर का युद्ध मुगलों के खिलाफ लड़ा। यह युद्ध पंजाब के चमकौर में 1704 में 21 दिसंबर से 23 दिसंबर तक लड़ा गया। मुगलों की विशाल सेना से बहादुर सिखों ने डटकर मुकाबला किया। मुगलों की आधी से अधिक सेना मारी गई। इस युद्ध में मुगल सेना गुरु गोबिंद सिंह जी के प्राणों की प्यासी थी। लेकिन उनके मनसूबे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने पूरे नहीं होने दिए। गुरु गोबिंद सिंह जी सुरक्षित रहे। चमकौर साहिब की लड़ाई में अजीत सिंह और जुझार सिंह की मृत्यु हो गई।
जिंदा दीवार में चुनवाया गया
गुरु गोबिंद सिंह ने 5-6 दिसंबर, 1705 की रात आनंदपुर को खाली करा लिया। गुरु गोबिंद सिंह जी अपने बहादुर योद्धाओं के साथ मुगलों की सेना से लड़ते हुए तेजी आगे बढ़ रहे थे। उस समय उनके साथ उनकी माता गुजरी और दो बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह भी थे। सरसा नदी पार करते वक्त गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार से बिछड़ गए थे। वहीं परिवार के बिछड़े अन्य लोग घर वापस चले गए। कहा जाता है कि माता गुजरी के पास मुगल सेना के सिक्कों को देख कर गंगू लालच में आ जाता है और उसे इनाम पाने की इतनी चाहत थी कि उसने कोतवाल को माता गुजरी की सूचना दे दी। माता गुजरी अपने दो छोटे पोतों के साथ गिरफ्तार हो गई। 9 दिसंबर, 1705 को जोरावर सिंह और फतेह सिंह को वजीर खान के सामने पेश किया गया। उसने उन्हें धन और सम्मान के वादे के साथ इस्लाम अपनाने के लिए लुभाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उसने उन्हें इस्लाम के विकल्प के रूप में मौत की धमकी दी, लेकिन वे दृढ़ रहे। अंततः मौत की सजा दी गई। मलेरकोटला के नवाब शेर मुहम्मद खान ने विरोध किया कि निर्दोष बच्चों को नुकसान पहुंचाना अनुचित होगा और इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ था। उन्हें भीषण सर्दी में कोल्ड टॉवर में उनकी दादी के साथ दो और दिनों के लिए रखा गया था। 12 दिसंबर को दीवार में चुनवा दिया। ही माता गुजरी को सरहिंद के किले से धकेल दिया जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई।