By अभिनय आकाश | Apr 28, 2025
गर फिरदौस जमी अस्त, हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त यानी अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है यहीं है, यही हैं। अमीर खुसरो ने तो कई साल पहले ये कहा था। लेकिन आतंकियों ने मासूम लोगों की हत्या करके अमीर खुसरो को गलत साबित कर दिया। साथ ही ये पैगाम भी दे दिया कि कश्मीर की जन्नत अब भी जल रही है। "कश्मीर इस्लामाबाद की गले की नस है। ये हमारी दुखती रग थी और दुखती रग रहेगी। हम इसे नहीं भूलेंगे। हम अपने कश्मीरी भाइयों को उनकी लड़ाई में नहीं छोड़ेंगे।" ये शब्द पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर के थे। 16 अप्रैल को इस्लामाबाद में ओवरसीज पाकिस्तानी कंन्वेंसन में इन्होंने ऐसा कहा था। इसके बाद क्या हुआ 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम के पास एक खूबसूरत जगह बैसर। पर्यटक बैसर की खूबसूरती में खोए थे। कोई कैमरे में कुदरत को कैद कर रहा था तो कोई अपने जिंदगी के बेहतरीन लम्हों को। समय 2:45 मिनट का था। तभी आर्मी की ड्रेस पहने हुए आतंकवादी वहां घुसते हैं और ताबड़तोड़ गोलियां चलाते हैं। 28 लोगों को इन कायरों ने मार दिया। कोई पहली बार हनीमून पर आया था। कोई बुर्जुग अपने बचपन की यादें ताजा करने लौटा था। सबसे शर्मनाक बात ये थी कि धर्म पूछकर गोली मारी गई। ये हमला सिर्फ आतंक नहीं बल्कि इंसानियत पर प्रहार था।
कैसे आईएसआई के इशारे पर रची गई साजिश
10 फरवरी 2018 कश्मीर के सुंजवान कैंप में एक आतंकी हमला होता है। जिसमें मौलाना मसूद अजहर के जैश ए मोहम्मद का हाथ था। इस हमले को उसके कमांडर मियां मुजाहिद ने अंजाम दिया था। कहते हैं कि इस हमले में मियां मुजाहिद तो केवल एक मोहरा था। जैसे पहलगाम में सैफुल्ला कश्मीरी का नाम आ रहा है, वो भी एक मोहरा है। असल में उस वक्त उस पूरे हमले के पीछे जिस शख्स का नाम आया था वो कोई और नहीं बल्कि तब पाकिस्तान में इंडिया डेस्क के इंचार्ज ब्रिगेडियर आमिर हमजा था। ब्रिगेडियर आमिर हमजाजब पाकिस्तान सेना से रिटायर हुए तो उसके बाद एक हथियार बंद शख्स ने उन्हें गोली मार दी। इस वक्त पाकिस्तान में इंडिया टेस्क को देखने वाले ब्रिगेडियर खालिद शहजाद हैं। पहलगाम से ब्रिगेडियर खालिद शहजाद को कहीं से किनारे नहीं किया जा सकता है। पाकिस्तान में जितने भी आतंकवादी संगठन हैं वो अपने बलबूते पर काम नहीं करते हैं। चाहे लश्कर, जैश या फिर टीआरएफ हो। इन्हें घूमकर आईएसआई के पास जाना पड़ता है। कश्मीर से धारा 30 हटने और पर्यटन में इजाफा होने के बाद से ही पाकिस्तान में हलचल मची थी। भारत के डेस्क के इंचार्ज खालिद शहजाद ने अपने मेजर को इस काम पर लगाया कि 2019 के बाद कुछ हुआ नहीं है, कुछ किया जाए। फिर वो वहां के आतंकी संगठन के साथ बातचीत करता है। लश्कर ए तैयबा के बॉस हाफिज सईद से मेजर की मुलाकात होती है। हाफिज के संगठन पर बैन है और एक शैडो आर्गनाइजेशन टीआरएफ काम कर रहा है। टीआरएफ के हेड शैफुल्ला कश्मीरी से बात किया जाता है। हाफिज सईद और मेजर और शैफुल्ला कश्मीरी मिलकर सारा प्लान तैयार करते हैं। उनका मेडिकल चेकअप किया जाता है। फिर 2 ग्रुप बनाकर उन्हें ट्रेन किया जाता है। फिर मेजर डेस्क हेड के पास जाकर पूरा लेखा जोखा रखता है। प्लान सुनकर संतुष्ट होने के बाद ब्रिगेडियर आईएसआई चीफ से मिलता है। आईएसआई चीफ पाकिस्तान आर्मी चीफ से भी ज्यादा पावरफुल माना जाता है। आपको याद होगा कि आसिम मुनीर भी आईएसआई चीफ रह चुके हैं। सबसे आखिर में पाक जनरल की पूरे प्लान में एंट्री होती है। एक चीज इसमें गैौर करने वाली बात ये है कि अगर किसी दूसरे देश में कोई ऑपरेशन चलाना होता है तो अमूमन सुरक्षा एजेंसियां सरकार को भी भरोसे में लेती है। लेकिन पाकिस्तान एकलौता ऐसा मुल्क है जिसकी सेना और आईएसआई अपनी सरकार को इस काबिल मानती ही नहीं कि उसे कोई बात शेयर की जाए।
कैसे होती है ट्रेनिंग
पाकिस्तान आर्मी और आतंकवादियों का पूरा नेक्सस अपनी जड़े इस कदर जमा चुका है कि धार्मिक जंग जैसी स्थिति पैदा करने के लिए समय समय पर गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है। जिहाद का पाठ पढ़ाकर आतंक को खाद पानी देने की हर वो तिकड़म की जाती है, जिससे दूसरे देशों को अस्थिर किया जा सके। यूरोपीयन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टीड पर छपे एक रिसर्च पेपर में पाकिस्तान इंस्टीच्यूट ऑफ पीस स्टडी के डायरेक्टर अमीर राणा के हवाले से जानकारी दी गई है कि पाकिस्तान में मुाजाहिदी की ट्रेनिंका का पूरा प्रोसेस क्या होता है?
स्पेट नं 1
धार्मिक तौर र ब्रेन वॉश किया जाता है। एक महीने तक रिलीजियस ट्रेनिंग चलती है।
स्टेप नं 2
इसमें मिलिट्री ट्रेनिंग की शुरुआत होती है। इसके अलावा ट्रेनी के फिटनेस की जांच होती है। ताकी पता चल सके कि उन्हें ग्राउंड पर उतारा जा सकता है कि नहीं। ये प्रोसेस तीन महीने तक तलचा है।
स्टेप नं 3
इसमें करीब छह महीने तक गुरुल्ला अटैक की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद ट्रेनी कैंप के कमांडर को वसीयत लिखता है। उससे ये लिखवाया जाता है कि वो अपनी मर्जी से ही ये राह चुन रहा है।
इन तीन स्टेप के बाद मुजाहिद्दीन ग्राउंड पर जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन अगर उसे कोई स्पेशल ट्रेनिंग देनी हो तो चौथे स्टेप में हाई लेवल ट्रेनिंग में भेजा जाता है। जहां उसे शक्तीशाली बंदूकों और हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती है।
ऑटोमैटिक हथियार और बम बनाने की ट्रेनिंग कुछ ही आतंकी कैंपों में मिलती है। जिसमें लश्कर ए तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन, हरकत उल जिहा ए इस्लामी। इस बात से आप ये समझ सकते हैं कि पाकिस्तान में रहकर ऑपरेट करने वाले ऐसे कई आतंकी संगठन हैं जो खतरे के पैरामीटर पर अलग अलग लेवल पर दिखते हैं। ऐसे में एक नजर इन संगठनों पर भी मार लेते हैं।
पाकिस्तान के आतंकी सगंठन
अलकायदा (पाकिस्तान): पाकिस्तान में स्थित अलकायदा के कार्यकर्ता अधिकतर गैर-पाकिस्तानी हैं। वे पाकिस्तानी तालिबान, जैश-ए-मोहम्मद (जेएम), लश्कर-ए-झांगवी (एलईजे) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) जैसे देवबंदी समूहों के साथ सबसे मजबूत संबंध रखने वाले सहायक पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों के नेटवर्क के माध्यम से काम करते हैं। अलकायदा ने अंतरराष्ट्रीय हमलों की योजना बनाई है। इस आतंकवादी समूह का उद्देश्य एक इस्लामी खिलाफत की स्थापना करना है। इंटरनेट अपनी वैश्विक पहुंच के कारण अलकायदा का सबसे खतरनाक हथियार है। उन्होंने किसी भी अन्य आतंकवादी संगठन की तुलना में अधिक अमेरिकियों को मार डाला है। अफगानिस्तान में= वे इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) और आत्मघाती IED, अपहरण, रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड (RPG), मोर्टार और रॉकेट का उपयोग करते हैं।
हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम): इसका गठन 1989 में एक पूर्व कश्मीरी स्कूल शिक्षक मुहम्मद अहसान डार ने किया था, जो भारत प्रशासित जम्मू और कश्मीर को पाकिस्तान के साथ जोड़ने और सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के इस्लामीकरण के लिए एक अभियान के लिए प्रतिबद्ध था, जिससे एक इस्लामी खिलाफत की स्थापना हुई। एचएम जमात-ए-इस्लामी विचारधारा का पालन करता है, जो समूह अपनी गतिविधियों को वित्तपोषित भी करता है। जेआई के साथ संबद्धता ने एचएम आतंकवादियों को अफगान शिविरों में हथियार प्रशिक्षण प्राप्त करने की अनुमति दी, जब तक कि तालिबान ने सत्ता पर कब्जा नहीं कर लिया। एचएम का नेतृत्व वर्तमान में सैयद सलाहुद्दीन कर रहा है, जिसमें मुख्य रूप से जातीय कश्मीरी और गैर-कश्मीरी मूल के पाकिस्तानी शामिल हैं।
लश्कर-ए-तैयबा (LeT): पाकिस्तान और कश्मीर घाटी में सक्रिय सबसे प्रमुख अहल-ए-हदीस समूह है और इसकी स्थापना अफ़गानिस्तान के कुनार प्रांत में हुई थी। यह एक बड़े धार्मिक संगठन, मरकज़ दावा-उल-इरशाद की उग्रवादी शाखा है, जिसका गठन 1980 के दशक के मध्य से लेकर अंत तक हाफ़िज़ मुहम्मद सईद, ज़फ़र इक़बाल और अब्दुल्ला आज़म ने किया था। LeT में पाकिस्तान, पाकिस्तान प्रशासित और भारतीय प्रशासित जम्मू और कश्मीर के कई हज़ार सदस्य और अफ़गान युद्ध के दिग्गज शामिल हैं, और इसने 1990 के दशक की शुरुआत में भारतीय प्रशासित जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियाँ शुरू कीं। LeT का दावा है कि यह पाकिस्तान में सबसे बड़ा आतंकवादी नेटवर्क है, जिसके देशभर में 2,200 कार्यालय हैं और नियंत्रण रेखा (LoC) के पार भारतीय प्रशासित जम्मू और कश्मीर में लड़ाकों को भेजने के लिए लगभग दो दर्जन शिविर हैं।
जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम): जेईएम का गठन जनवरी 2000 में मौलाना मसूद अजहर ने किया था, जो पहले हरक-उल-मुजाहिदीन (एचयूएम) का प्रभावशाली नेता था। जेईएम जिहाद को फिर से शुरू करने का एक प्रयास था, जो अन्य समूहों में उभरी दरारों से बचने के लिए था। जेईएम एक अखिल-इस्लामिक विचारधारा की वकालत करता है जो पश्चिम विरोधी, यहूदी विरोधी है और जिसका प्राथमिक उद्देश्य भारतीय प्रशासित कश्मीर को पाकिस्तान के साथ जोड़ना है। 1 अक्टूबर 2001 को कश्मीर विधानसभा पर हुए हमले के संदिग्ध अपराधी जेईएम के सदस्य थे, जिसमें 31 लोग मारे गए थे। 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले में जेईएम और लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था, जिसमें नौ लोग मारे गए थे। 2003 के अंत में राष्ट्रपति मुशर्रफ की हत्या के प्रयासों में शामिल समूहों में जेईएम भी शामिल था, जब अधिकारियों ने आत्मघाती हमलावरों में से एक के मोबाइल फोन पर फोन नंबर का पता लगाया था। इस समूह का संबंध ईसाई चर्चों पर हमलों से भी रहा है।
अल-उमर, अल-बद्र, जमीयत-उल-मुजाहिदीन जैसे अन्य छोटे समूह भी हैं जो एचएम, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसी ही विचारधारा का पालन करते हैं। उनका लक्ष्य जम्मू-कश्मीर का पाकिस्तान में विलय है और वे महिलाओं को काम करने या पढ़ाई करने की अनुमति न देने जैसे कठोर विचारों का पालन करते हैं।
पाकिस्तान की सेना -आईएसआई - आतंकवादी संगठन का नेक्सस
पाकिस्तान की शक्तिशाली खुफिया एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) 1979 में सोवियत संघ द्वारा आक्रमण किए जाने से पहले अफगानिस्तान में गुप्त रूप से सैन्य खुफिया कार्यक्रम चला रही थी। 1980 के दशक की शुरुआत में यूनाइटेड स्टेट्स सेंट्रल एजेंसी (सीआईए) के ऑपरेशन साइक्लोन के बाद, अफगानिस्तान में जिहादी योद्धाओं को हथियार और वित्त प्रदान करने का एक कार्यक्रम शुरू हुआ। पाकिस्तान ने व्यवस्थित रूप से आतंकवादी समूहों को हथियारों और वित्तीय साधनों के वितरण और वितरण का समन्वय किया, जो अक्सर मुजाहिदीन के सबसे प्रतिगामी और चरमपंथी जैसे गुलबुद्दीन हिकमतयार के हिज्ब-ए इस्लामी (एचईआई) जैसे आतंकवादी समूहों को हथियार और वित्तीय साधनों के वितरण का समन्वय करता था। यह सीआईए द्वारा संचालित सबसे बड़े और सबसे महंगे गुप्त अभियानों में से एक था, जिसका झुकाव जिया-उल-हक के शासन द्वारा समर्थित पाकिस्तान में सुरक्षित ठिकानों से काम कर रहे आतंकवादी इस्लामी समूहों को समर्थन देने की ओर था। उस समय और आज भी बिना किसी बदलाव के आईएसआई की रणनीति को पाकिस्तानी तानाशाह जिया उल-हक द्वारा अपने एक जनरल से कही गई बात से समझा जा सकता है: “अफगानिस्तान को सही तापमान पर उबालना चाहिए”। अफगान तालिबान खुद आईएसआई का ही एक निर्माण था और 1996 में काबुल पर कब्जा करने के समय तक यह वास्तव में आईएसआई का ही छद्म रूप था। 1999 में, बेनजीर भुट्टो के गृह मंत्री नसरुल्लाह बाबर ने इसे स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए कहा कि हमने तालिबान को बनाया है। आज, तालिबान उग्रवादी संगठनों का एक समूह है, जिसका केंद्रीय नेतृत्व (अफगान तालिबान) पाकिस्तान के क्वेटा में माना जाता है। पूर्व पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल जियाउद्दीन बट (जिन्हें जनरल जियाउद्दीन ख्वाजा के नाम से भी जाना जाता है) ने अक्टूबर 2011 में पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों पर एक सम्मेलन में खुलासा किया था कि उनकी जानकारी के अनुसार पाकिस्तान के खुफिया ब्यूरो के तत्कालीन पूर्व महानिदेशक (2004-2008), ब्रिगेडियर एजाज शाह (सेवानिवृत्त) ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में खुफिया ब्यूरो के एक सुरक्षित घर में रखा था। जनरल जियाउद्दीन बट ने कहा कि बिन लादेन को परवेज़ मुशर्रफ़ की ‘पूरी जानकारी’ में एबटाबाद में छिपाया गया था। बाद में बट ने ऐसा कोई बयान देने से इनकार कर दिया। 9/11 के हमलों के बाद अमेरिकी कमांडो ने ओसामा बिन लादेन को मार गिराया जब वह पाकिस्तान के एबटाबाद में रह रहा था।