Matrubhoomi: कहानी देश की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी की, 9 साल में हुई शादी, 21 की उम्र में मिली MD की डिग्री

By अंकित सिंह | Mar 09, 2022

भारत की तरक्की में कई महिलाओं का योगदान है। महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं। राजनीति से लेकर प्रशासनिक सेवा हो या फिर खेल से लेकर प्रोफेशनल जॉब हो, सभी में महिलाओं ने सफलता की बुलंदियों को हासिल किया है। हालांकि यह बात भी सच है कि भारत में आज भी कई मामलों में महिलाएं पुरुषों से पीछे हैं। पुराने समय में महिलाओं को सिर्फ घर-गृहस्थी की देखभाल करने के लिए ही जाना जाता था। शिक्षा से उनका बहुत ज्यादा वास्ता नहीं होता था। ऐसी तमाम कठिनाइयों के बावजूद भी कई महिलाओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में अपना नाम रोशन किया है। उन्हीं में से एक हैं आनंदीबाई गोपालराव जोशी। आनंदीबाई जोशी को भारत की पहली महिला डॉक्टर होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने 18वीं सदी में महिला डॉक्टर बनकर नया इतिहास रच दिया था। विषम परिस्थितियों में उन्होंने हिम्मत नहीं हारा और शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ीं। विदेश में शिक्षा हासिल कर भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। 

 

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डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे में हुआ था। वह महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। महज 9 साल की उम्र में उनकी शादी 25 साल के गोपाल राव जोशी से हो गई थी। 14 साल की उम्र में आनंदी मां बन चुकी थीं। हालांकि 10 दिनों के भीतर ही उनके नवजात बच्चे की मौत हो गई। इस दुख ने आनंदी को अंदर से झकझोर दिया। आनंदी ने डॉक्टर बनने की ठान ली ताकि उनकी तरह किसी और मां को इस तकलीफ का सामना ना करना पड़े। आनंदी गोपाल जोशी डॉक्टर बनने के लिए पढ़ाई करने लगी और उनमें उनके पति ने उनका भरपूर साथ दिया। हालांकि समाज में उनकी आलोचना भी होती थी। 

 

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आलोचनाओं की परवाह किए बगैर उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा। शुरुआत में उनके पति ने उनका दाखिला मिशनरी स्कूल में कराया जिसके बाद भी आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता चली गईं। आनंदी गोपाल जोशी ने संस्कृत और अंग्रेजी में पढ़ना और बोलना सिखा। उनके पति लगातार मेडिकल की पढ़ाई के लिए उन्हें उत्साहित करते रहे। हालांकि उनके लिए अमेरिका के मेडिकल कॉलेज में एडमिशन आसान नहीं था। उनके समक्ष धर्म परिवर्तन की शर्त रखी गई थी। लेकिन वह तैयार नहीं हुईं। वह हमेशा चाहते थी कि ब्राह्मण महिला के रूप में ही वह डॉक्टर की उपाधि लें और उन्होंने ऐसा कर के भी दिखाया। 


मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए शादीशुदा होने के बावजूद उन्होंने अमेरिका जाने का निर्णय लिया। आनंदी ने कोलकाता से जहाज पकड़ा और न्यूयॉर्क जा पहुंची। न्यूयॉर्क जाने के लिए आनंदी जहाज पर चढ़ने से पहले उन्होंने सेरामपुर कॉलेज हॉल में एक सार्वजनिक सभा को भी संबोधित किया था, जिसमें उन्होंने चिकित्सा में विदेशी शिक्षा हासिल करने के अपने फैसले को सही ठहराया था। उन्होंने पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा कार्यक्रम में एडिमशन लिया। 1886 में उन्होंने महज 21 साल की उम्र में एमडी की डिग्री हासिल की। एमडी की डिग्री हासिल कर डॉक्टर बनने वाली वह भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। डॉक्टर बनने के बाद जब वह भारत लौटीं तो उनका भव्य स्वागत हुआ।

 

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सबसे पहले उनकी नियुक्ति कोल्हापुर रियासत के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल में महिला वार्ड प्रभारी के रूप में हुई थी। डॉक्टर बनने के बाद उन्होंने समाज की सेवा के लिए कई सपने संजोए थे। हालांकि किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। भारत की पहली महिला डॉक्टर बनने का कीर्तिमान स्थापित करने वालीं आनंदीबाई गोपाल टीवी की बीमारी का शिकार हो गईं। दूसरों का इलाज करने से पहले ही वह स्वर्ग सिधार गईं। लगातार बीमार रहने की वजह से उनका निधन 26 फरवरी 1887 को 887 में महज 22 साल की उम्र में हो गा। उनकी मृत्यु पर पूरे भारत में अपना शोक व्यक्त किया था। आनंदीबाई ना सिर्फ भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया की महिला समाज के लिए एक मिसाल बनीं। उनकी जीवनी पर कैरोलिन वेलस ने 1888 में एक बायोग्राफी भी लिखी थी। इसी बायोग्राफी के आधार पर एक सीरियल भी बनाया गया था जिसे दूरदर्शन पर आनंदी गोपाल के नाम से प्रसारित किया गया था। 31 मार्च 2018 को गूगल की ओर से उनके 153 वी जयंती पर गूगल डूडल बना कर सम्मानित किया गया था।


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