कोरोना संक्रमण के प्रकोप से मरीजों को निजात दिलाने के लिए विभिन्न उपचार पद्धतियों का सहारा लिया जा रहा है। इसमें स्टेरॉयड का उपयोग भी व्यापक रूप से हो रहा है। हालांकि, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर और कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (केआईएमस), भुवनेश्वर के शोधकर्ताओं के संयुक्त अध्ययन के अनुसार कोरोना संक्रमित उन मरीजों को स्टेरॉयड देने से परहेज करना चाहिए, जो मलेरिया से भी पीड़ित हों। मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम और सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण के बीच की कड़ियों की गहन पड़ताल के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं।
आईआईटी इंदौर के इन्फेक्शन बायो-इंजीनियरिंग ग्रुप (संक्रमण जैव आभियांत्रिकी समूह) के प्रमुख डॉ. हेमचंद्र झा ने बताया कि “कोविड-19 ने दुनियाभर के इलाकों को अपनी चपेट में लिया है, जिनमें मलेरिया प्रभावित क्षेत्र भी शामिल हैं। मलेरिया और कोविड-19 में कई एक समान लक्षण दिखते हैं। इनमें बुखार, बदन दर्द और सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण मुख्य रूप से शामिल हैं। महामारी के दौर में ऐसे लक्षण वाले मलेरिया के मरीजों का भी सार्स सीओवी-2 की आशंका के अनुरूप ही उपचार करने पर जोर दिया जा रहा है। इस कारण मलेरिया जैसे अन्य संक्रमणों की अनदेखी होने के आसार बढ़े हैं।”
डॉ. झा ने कहा है कि “इस अध्ययन में कोविड-19 एवं मलेरिया के दोहरे सह-संक्रमण की भयावहता को रेखांकित किया गया है। ऐसे सह-संक्रमण की स्थिति में बहुत कम समय में ही संक्रमित व्यक्ति की सेहत तेजी से बिगड़ जाती है।” शोधकर्ताओं के अनुसार, कोविड-19 उपचार के लिए जिस कोर्टिकॉस्टेरॉयड-डेक्सामेथासॉन का व्यापक इस्तेमाल हो रहा है, उसने संक्रमण से निजात दिलाने में जहाँ अच्छे संकेत दिए हैं, वहीं यह दवा मलेरिया की स्थिति में घातक हो सकती है।
डॉ. झा ने बताया कि “1200 मरीजों पर कोविड के अलग-अलग प्रभावों पर अपने शोध के दौरान एक मरीज में मलेरिया और कोरोना के लक्षण एक साथ देखे गए। स्टेरॉयड के अधिक उपयोग के कारण वह बच न सका। उसके बाद हमने इस पहलू पर भी शोध किया, जिसके परिणाम सामने आये हैं। ऐसे दोहरे संक्रमण के अन्य प्रभाव भी देखे गए हैं। इसमें असामान्य न्यूरोलॉजिकल लक्षण और भी घातक प्रभाव वाले हैं। ऐसी स्थिति में, वायरल संक्रमण मलेरिया परजीवी संक्रमित कोशिकाओं को रक्त केशिकाओं के रूप में जानी जाने वाली शरीर की सबसे पतली रक्त वाहिकाओं में जमा होने की स्थिति विकसित कर सकता है। इससे बेहोशी और कोमा में पहुँचने जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं, जो बेहद खतरनाक हो सकती हैं।”
शोधकर्ताओं का कहना है कि कि कोविड-19 और मलेरिया दोनों बीमारियों की स्थिति में ऐसे स्टेरॉयड के उपयोग से बचना चाहिए। उनका कहना है कि यह अध्ययन कोविड-19 के आलोक में अन्य संबंधित संक्रमणों को लेकर और शोध-अध्ययनों की आवश्यकता की महत्ता को रेखांकित करता है। इन नतीजों के आधार पर शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि मलेरिया प्रभावित इलाकों में कोविड-19 आशंकित मरीजों की मलेरिया जाँच अवश्य की जानी चाहिए।
यह अध्ययन शोध पत्रिका बायोसेफ्टी ऐंड हेल्थ में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ. हेमचंद्र झा के अलावा उनके शोध छात्र ओमकार इंदारी एवं बुद्धदेव बरल, और प्रोफेसर निमल कुमार मोहाकुड शामिल हैं।
(इंडिया साइंस वायर)