By अभिनय आकाश | Apr 19, 2023
रमजान का महीना चल रहा है और दावत-ए-इफ्तार का दौर भी खूब देखने को मिल रहा है। दशकों से, सूर्यास्त के बाद भोजन कर मुस्लिम अपना रोजा समाप्त करते हैं। इसके साथ-साथ इफ्तार पार्टी सियासत के केंद्र में भी हमेशा से रहा है। राजनीतिक इफ्तार पार्टियों की परंपरा भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा मुख्य रूप से अपने दोस्तों और परिचितों के लिए शुरू की गई थी। तब से ये राजनीति में लगातार चली आ रही है।
आजादी के बाद नेहरू ने शुरू की इफ्तार की परंपरा
रमज़ान के महीने के दौरान, तमिलनाडु में राजनीतिक नेता कई इफ्तार पार्टियों की मेजबानी करते हैं और उनमें भाग लेते हैं, कभी-कभी इसे राजनीतिक बयान देने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, राज्य के राजनेताओं का कहना है कि यह आयोजन सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे का प्रतीक है। मनिथनेय जननायगा काची के संस्थापक और विधायक तमीमुन अंसारी का कहना है कि भारत में इफ्तार जवाहरलाल नेहरू द्वारा एक सामाजिक सभा के रूप में शुरू किया गया था। जब मुसलमानों ने विभाजन और हिंसा के दौर को देखा तो जवाहर लाल नेहरू को ये महसूस हुआ कि इसके जरिये अल्पसंख्यकों को अपनेपन का अहसा दिलाया जाएगा।
मुस्लिम समर्थन का आधार बरकरार रखने के लिए इंदिरा ने भी अपनाया
सियासत में इफ्तार पार्टी की एंट्री आजादी के बाद से ही शुरू हो गई थी। हालांकि इस पार्टी के पीछे उनका मकसद मुस्लिों को विभाजन के दर्द से उबारना और उनमें आत्मविश्वास जगाना था। हालांकि, अपने कार्यकाल के दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने इफ्तार पार्टी बंद कर दी। इसके बाद इंदिरा गांधी को मुस्लिम समर्थन का आधार बरकरार रखने की सलाह दी गई। इसलिए उन्होंने एक बार फिर इफ्तार पार्टी का आयोजन शुरू किया। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी भी इफ्तार पार्टी का आयोजन करते रहे।