दलित वोटों को साधने के लिए सपा करेगी 'बाबा साहेब वाहिनी' का गठन, मायावती के लिए बढ़ेगी चुनौती?

By अभिनय आकाश | Apr 12, 2021

अखिलेश यादव का साथ 2019 में मायावती की पार्टी से छूट गया। लेकिन अखिलेश यादव को लगता है कि मायावती का कुछ वोट सपा की तरफ शिफ्ट हो सकता है। 2019 के चुनाव में मैदान पर सपा और बसपा के कार्यकर्ताओं की जो दोस्ती बनी थी वो अभी टूटी नहीं है। इसलिए समाजवादी पार्टी दलित समुदाय को खुले दिल से अपना वोटर मानने लगी है। वैसे तो उत्तर प्रदेश चुनाव में अभी एक साल का वक्त शेष है। लेकिन जातीय समीतकरण साधने की तैयारी अभी से जोर पकड़ने लगी है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव 14 अप्रैल को बाबा साहेब आंबेडकर की जयंती के अवसर पर 'बाबा साहेब वाहिनी' का गठन करने का निर्णय लिया है। 

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अखिलेश यादव ने ट्वीट में कहा कि  संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के विचारों को सक्रिय कर असमानता-अन्याय को दूर करने व सामाजिक न्याय के समतामूलक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, हम उनकी जयंती पर जिला, प्रदेश व देश के स्तर पर सपा की ‘बाबा साहेब वाहिनी’ के गठन का संकल्प लेते हैं। इसके पहले अखिलेश ने कहा था कि भाजपा के राजनीतिक अमावस्या के काल में वो संविधान ख़तरे में है, जिससे मा. बाबासाहेब ने स्वतंत्र भारत को नयी रोशनी दी थी। इसलिए बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की जयंती, 14 अप्रैल को समाजवादी पार्टी उप्र, देश व विदेश में ‘दलित दीवाली’ मनाने का आह्वान करती है।

दलित वोटों पर नजर 

उत्तर प्रदेश में दलित वोटर करीब 22 फीसदी हैं। अस्सी के दशक तक दलित मतदाता मजबूती के साथ कांग्रेस के साथ खड़ा था। लेकिन राज्य में बहुजन समाज पार्टी के उभरने के साथ ही दलित वोटर कांग्रेस से दूर होता गया और मायावती का कोर वोट बैंक बन गया। उत्तर प्रदेश के 22 फीसदी दलित वोटरों पर गौर करें तो ये दो हिस्सों में विभाजित है। पहला जाटव जिसकी आबादी करीब 12 फीसदी मानी जाती है। दूसरा गैर जाटव दलित।  

मायावती की बढ़ेगी चुनौती

उत्तर प्रदेश का जाटव मतदाता मायावती का कोर वोटर माना जाता है। अखिलेश की नजर इन्हीं को साधने की है। इस वोट बैंक पर भीम आर्मी के चंद्रशेखर की पहले से ही नजर है। वहीं कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की तरफ से भी अपने पुराने दलित वोटरों को पाले में लाने की कवायद चल रही है।  

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