कभी साइकिल पर रॉकेट ले जाते थे, ऐसा रहा इसरो का सफर

By अभिनय आकाश | Mar 12, 2020

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘इसरो’ ने 15 अगस्त 2019 को अपने सफर के 49 साल पूरे कर लिए और 2020 के 50वें साल की ओर तेजी से बढ़ रहा है। अब तक इसरो अपने सैकड़ों सैटेलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च कर चुका है। इसके अलावा इसरो ने कई अन्य देशों के सैटेलाइट भी लॉन्च किए हैं। इसरो, यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसने आजतक एक भी ऐसे काम नहीं किए जो मानवता के लिए हानिकारक हो। इसरो ने अपने सिद्धांत के साथ कभी समझौता नहीं किया और युद्ध की सामग्री का निर्माण नहीं किया और न ही युद्ध में अपनी संस्था का उपयोग होने दिया, जबकि दुनिया के लगभग सारे अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन युद्ध की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गठित किए गए, इसलिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान दुनिया का एक अभिनव अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है। आज हम आपको इसरो के शुरुआती दिनों के संघर्ष की कहानी से लेकर अब तक के किए गए प्रयोगों के बारे में बताएंगे।

 

वैसे तो कहा जाता है कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव बहुत ही पुराना है। भारतीय धार्मिक पौराणिक कथाओं में अंतरिक्ष अनुसंधान और परिभ्रमण की कई कहानियां दर्ज हैं। एक जगह लिखा गया है कि राम के पिता दशरथ चन्द्रमा से मिलने गए थे। इसके अलावा आधुनिक विश्व में भी भारत ने ही इस तकनीक से दुनिया को परिचित कराया। 1947 में अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त होने के बाद, भारतीय वैज्ञानिकों और राजनीतिज्ञों ने भारत की रॉकेट तकनीक के सुरक्षा क्षेत्र में उपयोग एवं अनुसंधान एवं विकास की योजना बनाई और उस पर काम प्रारंभ किया।

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डॉक्टर विक्रम साराभाई और डॉक्टर रामानाथन ने 16 फरवरी 1962 को Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) की स्थापना की, जो आगे चलकर 15 अगस्त 1969 को इसरो (ISRO) बन गया। उस समय जिस रॉकेट को प्रक्षेपित किया गया था, उसे साइकिल के पीछे लगे कैरियर पर लादकर प्रक्षेपण स्थल तक ले जाया गया था। यानी सुविधा नहीं थी, लेकिन कहते हैं ना कि इरादों में दम हो तो चट्टानों से भी पानी निकाला जा सकता है। साइकिल पर रॉकेट ले जाने की ये तस्वीर देखिए जो आज भी इसरो के दृढ़ संकल्प को दिखाती है। इसरो के पहले ही मिशन का दूसरा रॉकेट भारी और काफी बड़ा था। इसे प्रक्षेपण स्थल तक ले जाने के लिए बैलगाड़ी का सहारा लिया गया। ये तस्वीर भी आपको गर्व महसूस कराएगी। उस दौर में हमारे वैज्ञानिकों के पास कोई दफ्तर नहीं था। पूरी कहानी कुछ इस तरह है। नारियल के पेड़ों के बीच स्टेशन का पहला लॉन्च पैड था। एक स्थानीय कैथोलिक चर्च को वैज्ञानिकों के लिए मुख्य दफ्तर में बदला गया। बिशप हाउस को वर्कशॉप बना दिया गया। मवेशियों के रहने की जगह को प्रयोगशाला बनाया गया जहां अब्दुल कलाम आजाद जैसे युवा वैज्ञानिकों ने काम किया। इसके बाद रॉकेट को लॉन्च पैड तक साइकिल पर ले जाया गया। थोड़े समय बाद दूसरा रॉकेट लॉन्च किया गया। वह पहले वाले से थोड़ा भारी था। उसे बैलगाड़ी पर ले जाया गया था। यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि सुविधा के नाम पर भले ही तब इसरो के पास कुछ नहीं था, लेकिन इरादों की मजबूती बरकरार रही। यही वजह है कि आज पूरे देश में इसरो के 13 सेंटर हैं। इसरो ने अब तक अंतरिक्ष में कुल 370 उपग्रह छोड़े हैं। इनमें 101 देसी और 269 विदेशी सैटेलाइट हैं। मून मिशन चंद्रयान-2 अगर सफल होता तो इनकी संख्या बढ़कर 371 हो जाती। 

 

इसरो ने देश के लिए कुल 101 सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। जिनमें संचार, आपदा प्रबंधन, इंटरनेट, रक्षा, मौसम, शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों को सेवाएं देने वाले उपग्रह हैं। इसरो के वैज्ञानिकों ने आजादी के बाद से अब तक संचार व्यवस्था को लेकर 41 उपग्रह छोड़े। जिनमें से अभी 15 काम कर रहे हैं। ये 15 सैटेलाइट हैं- INSAT-3A, 3C, 4A, 4B, 4CR और इसी प्रणाली के अंदर आने वाले GSAT-6, 7, 8, 9, 10, 12, 14, 15, 16 और 18। ये सभी सैटेलाइट 200 ट्रांसपोंडर्स की मदद से टेलीफोन, मोबाइल, टीवी, समाचार, आपदा प्रबंधन, मौसम पूर्वानुमान जैसे कार्यों में मदद कर रहे हैं। संचार उपग्रहों की लॉन्चिंग और कार्यप्रणाली को लेकर अब तक इसरो वैज्ञानिकों को सिर्फ 6 असफलताएं ही मिली हैं।

 

वर्ष 1976 में उपग्रह के माध्यम से पहली बार शिक्षा देने के लिए प्रायोगिक कदम उठाए गए। वर्ष 1979 में एक प्रायोगिक उपग्रह भास्कर- 01 का प्रक्षेपण किया गया। रोहिणी उपग्रह का पहले प्रायोगिक परीक्षण यान एस एल वी-03 की सहायता से प्रक्षेपण असफल रहा, लेकिन भारतीय वैज्ञानिक अनवरत् अपने काम में लगे रहे। वर्ष 1980 में एस एल वी-3 की सहायता से रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया गया। वर्ष 1981 में ‘एप्पल’ नामक भूवैज्ञानिक संचार उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।

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नवंबर में भास्कर -02 का प्रक्षेपण हुआ और वर्ष 1982 में इन्सैट-01, का अप्रैल में प्रक्षेपण और सितंबर अक्रियकरण। 1983 में एस एल वी-3 का दूसरा प्रक्षेपण। इसके बाद उसी साल आर एस - डी2 को कक्षा में स्थापित किया गया। वर्ष 1984 में भारत और सोवियत संघ द्वारा संयुक्त अंतरिक्ष अभियान के दौरान राकेश शर्मा पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने।

 

वर्ष 1987 में ए एस एल वी का प्रक्षेपण हुआ। इसके बाद तो भारत ने लगभग प्रत्येक साल अपना अभियान जारी रखा और ऐसे ऐसे कारनामे करके दिखाए जिससे दुनिया दंग रह गई। फिर भारत विदेशी उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करने लगा और वर्ष 1999 में पहली बार भारत ने विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण, दक्षिण कोरिया के किटसैट-3 और जर्मनी के डीसी आर-टूबसैट का सफल परीक्षण किया। इसके बाद भारत ने दुनिया के कई देशों के उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया और उसे कक्षा में स्थापित किया।

 

भारत ने 2002 तक अपने मानवयुक्त मिशन को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बनाई है। इस मिशन को गगनयान मिशन का नाम दिया गया है। 

 

22 अक्टूबर 2008 को भारत ने चन्द्रयान प्रथम का सफल परीक्षण किया। 5 नवम्बर 2013 को मंगलयान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। 24 सितंबर 2014 को मंगलयान (प्रक्षेपण के 298 दिन बाद) मंगल की कक्षा में स्थापित भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी-डी5) का सफल प्रक्षेपण (5 जनवरी 2014), आईआरएनएसएस-1बी (04 अप्रैल 2014) व 1 सी (16 अक्टूबर 2014) का सफल प्रक्षेपण, जीएसएलवी एमके-3 की सफल पहली प्रायोगिक उड़ान (18 दिसंबर 2014) में की गई।

 

15 फरवरी, 2017 को इसरो ने दुनिया को चौंका दिया था। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले लॉन्च पैड से भारत ने अंतरिक्ष में 104 सैटलाइट्स छोड़े थे।

 

साल 2020 इसरो के लिए काफ़ी व्यस्तताओं से भरा होगा। इसरो चंद्रयान-3 अगले साल की शुरुआत में लांच करेगा। इसके अलावा 2022 में भेजे जाने वाले गगनयान के यात्रियों यानी एस्ट्रोनॉट की मेडिकल फिटनेस जांच पूरी हो चुकी है।

 

- अभिनय आकाश

 

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