World Environment Day 2023: पर्यावरण सुरक्षा की जिम्मेदारी ले समाज

By डॉ. वंदना सेन | Jun 05, 2023

वर्तमान में पर्यावरण सुरक्षा की चिंता पूरे विश्व में की जा रही है, लेकिन यह चिंता धरातलीय रूप लेने में सक्षम नहीं हो रही है। इस कारण जल के अभाव में वसुंधरा सूख रही है। पेड़ आत्महत्या कर रहे हैं। नदियां समाप्ति की ओर हैं। कुए, बाबड़ी रीत गए हैं। यह एक ऐसा भयानक संकट है, जिसको हम जानते हुए भी अनदेखा कर रहे हैं। अगर इसी प्रकार से चलता रहा तो आने वाला समय कितना त्रासद होगा, इसकी अभी मात्र कल्पना ही की जा सकती है, लेकिन जब यह समय सामने होगा तब हमारे हाथ में कुछ भी नहीं होगा। यह सभी जानते हैं कि प्रकृति ही जीवन है, प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। जब हम प्रकृति कहते हैं तो स्वाभाविक रूप मानव यही सोचता है कि पेड़ पौधों की बात हो रही है, लेकिन इसका आशय इतना मात्र नहीं, बहुत व्यापक है। प्रकृति में जितने तत्व हैं, वे सभी तत्व हमारे जीवन का आवश्यक अंग हैं। चाहे वह श्वांस हो, जल हो, या फिर खाद्य पदार्थ ही हों। सब प्रकृति की ही देन हैं। विचार कीजिए जब यह सब नहीं मिलेगा, तब हमारा जीवन कैसा होगा?


देश में अनेक संस्थाओं द्वारा पौधारोपण के कार्य भी किए जाते हैं। विसंगति यह है कि पौधारोपण करने के बाद उन पौधों का क्या होता है। यह सब देखने का समय हमारे पास नहीं है। पौधों के लिए जल ही जीवन है और पौधा भी एक जीवित वनस्पति है। अगर किसी पौधे का जीवन जन्म के समय ही समाप्ति होने की ओर अग्रसर होता है तो स्वाभाविक रूप से यही कहा जा सकता है कि ऐसा करके हम निश्चित ही एक जीवन की हत्या ही कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति में हत्या के परिणाम क्या होते हैं, इसे बताने की आवश्यकता नहीं हैं, लेकिन यह सत्य है कि जिस पेड़ की असमय मौत होती है, उसकी आत्मा कराह रही होती है। हम अगर पेड़ या पौधे में जीवन का अध्ययन करें तो हमें स्वाभाविक रूप से यह ज्ञात हो जाता है कि जीवित वनस्पति जब मौत की ओर जाती है, तब उसकी क्या स्थिति होती होगी। अब जरा अपने शरीर का ही विचार कर लीजिए, उसे भोजन नहीं मिलेगा, तब शरीर का क्या हाल होगा।


वर्तमान में हम सब पर्यावरण प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। यह सब प्रकृति के साथ किए जा रहे खिलवाड़ का ही परिणाम है। हम सभी केवल इस चिंता में व्यस्त हैं कि पेड़ पौधों के नष्ट करने से प्रदूषण बढ़ रहा है, लेकिन क्या हमने कभी इस बात का चिंतन किया है कि हम प्रकृति संरक्षण के लिए क्या कर रहे हैं। क्या हम प्रकृति से जीवन रूपी सांस को ग्रहण नहीं करते? क्या हम शुद्ध वातावरण नहीं चाहते? तो फिर क्यों दूसरों की कमियां देखने में ही व्यस्त हैं। हम स्वयं पहल क्यों नहीं करते? आज प्रकृति कठोर चेतावनी दे रही है। बिगड़ते पर्यावरण के कारण हमारे समक्ष महामारियों की अधिकता होती जा रही हैं। अगर हम इस चेतावनी को समय रहते नहीं समझे तो आने वाला समय कितना विनाश कारी होगा, कल्पना कर सकते हैं।

इसे भी पढ़ें: World Environment Day: विकास की अंधी दौड़ और प्रकृति का विनाश

वर्तमान में स्थिति यह है कि हम पर्यावरण को बचाने के लिए बातों से चिंता व्यक्त करते हैं। सवाल यह है कि इस प्रकार की चिंता करने समाज ने अपने जीवन काल में कितने पौधे लगाए और कितनों का संवर्धन किया। अगर यह नहीं किया तो यह बहुत ही चिंता का विषय इसलिए भी है कि जो व्यक्ति पर्यावरण के प्रभाव और दुष्प्रभावों से भली भांति परिचित है, वही निष्क्रिय है तो फिर सामान्य व्यक्ति के क्या कहने। ऐसे व्यक्ति यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि पर्यावरण और जीवन का अटूट संबंध है। यह संबंध आज टूटते दिखाई दे रहे हैं। प्राण वायु ऑक्सीजन भी दूषित होती जा रही है। वह तो भला हो कि ईश्वर के अंश के रूप में में भारत भूमि पर पैदा हुआ हमारे इस शरीर में ऐसा श्वसन तंत्र विद्यमान है, जो वातावरण से केवल शुद्ध ऑक्सीजन ग्रहण करता है, लेकिन सवाल यह है कि जिस प्रकार से देश में जनसंख्या बढ़ रही है, उसके अनुपात में पेड़ पौधों की संख्या बहुत कम है। इतना ही नहीं लगातार और कम होती जा रही है। जो भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।


आज के समाज की मानसिकता का सबसे बड़ा दोष यही है कि अपनी जिम्मेदारियों को भूल गया है। अपने संस्कारों को भूल गया है। किसी भी प्रकार की विसंगति को दूर करने के लिए समाज की ओर से पहल नहीं की जाती। वह हर समस्या के लिए शासन और प्रशासन को ही जिम्मेदार ठहराता है। जबकि सच यह है कि शासन के बनाए नियमों का पालन करने की जिम्मेदारी हमारी है। शासन और प्रशासन में बैठे व्यक्ति भी समाज के हिस्सा ही है। इसलिए समाज के नाते पर्यावरण को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है। पौधों को पेड़ बनाने की दिशा में हम भी सोच सकते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए हम कपड़े के थैले का उपयोग कर सकते हैं। अभी ज्यादा संकट नहीं आया है, इसलिए क्यों नहीं हम आज से ही एक अच्छे नागरिक होने का प्रमाण प्रस्तुत करें। क्योंकि दुनिया में कोई भी कार्य असंभव नहीं है।

 

पिछले एक साल से कोरोना संक्रमण के चलते हमारी जीवन चर्या में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। जिसमें हर व्यक्ति को अपने जीवन के लिए प्रकृति का महत्व भी समझ में आया, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस परिवर्तन के अनुसार हम अपने जीवन को ढाल पाएं हैं? यकीनन नहीं। वर्तमान में हमारा स्वभाव बन चुका है कि हम अच्छी बातों को ग्रहण करने के लिए प्रवृत नहीं होते। जीवन की भी अपनी प्रकृति और प्रवृति होती है। इसी कारण कहा जा सकता है कि जो व्यक्ति प्रकृति के अनुसार जीवन यापन नहीं करता, उसका प्रकृति कभी साथ नहीं देती। हमें घटनाओं के माध्यम से जो संदेश मिलता है, उसे जीवन का अहम हिस्सा बनाना होगा, तभी हम कह सकते हैं कि हमारा जीवन प्राकृतिक है।


- डॉ. वंदना सेन

(लेखिका जीवाजी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध पीजीवी महाविद्यालय में विभागाध्यक्ष हैं)

प्रमुख खबरें

Hair Growth Toner: प्याज के छिलकों से घर पर बनाएं हेयर ग्रोथ टोनर, सफेद बाल भी हो जाएंगे काले

Vivo x200 Series इस दिन हो रहा है लॉन्च, 32GB रैम के अलावा जानें पूरी डिटेल्स

Kuber Temples: भारत के इन फेमस कुबेर मंदिरों में एक बार जरूर कर आएं दर्शन, धन संबंधी कभी नहीं होगी दिक्कत

Latur Rural विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने किया दशकों तक राज, बीजेपी को इस चुनाव में अपनी जीत का भरोसा