चुनौतियों को संभावना में बदलने का नाम है शिवराज

By मनोज कुमार | Mar 24, 2020

कुलजमा 15 महीने के अंतराल में शिवराजसिंह चौहान की मुख्यमंत्री के रूप वापसी मध्यप्रदेश की राजनीति में ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जाना चाहिए। नए मध्यप्रदेश के गठन के बाद से अब तक मुख्यमंत्री के रूप में जिन नाम को हम जानते हैं, उनमें से कोई ऐसा नहीं है कि लगातार 13 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे हों और बहुत छोटे अंतराल में वापस मुख्यमंत्री बनकर सत्ता में वापसी हुई हो। अपनों और परायों को मुरीद बना लेना शिवराज सिंह चौहान के व्यक्तित्व की खासियत है तो राजनीतिक कौशल का लोहा भी वे मनवाते रहे हैं। एक बार फिर मध्यप्रदेश की राजनीति में वे चाणक्य बनकर नहीं बल्कि एक सौम्य राजनेता के रूप में अपनी वापसी की है। एक जननेता और जननायक के रूप में उनकी छवि बेमिसाल है क्योंकि वे सहज हैं, सरल हैं और आम और खास दोनों के लिए सर्वदा उपलब्ध रहने वाले राजनेताओं में हैं। 13 वर्षों के अपने लम्बे कार्यकाल में ऐसे कई अवसर आए जब वे मुख्यमंत्री के रूप में नहीं बल्कि कभी घर-परिवार के मुखिया बनकर तो कभी भाई और मामा बनकर। मामा शिवराजसिंह की जब एक बार फिर वापसी हुई है तो प्रदेश की जनता की उम्मीदें और बढ़ गई है। यह उम्मीदें शिवराज सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है लेकिन सच यही है कि चुनौतियों को संभावना में बदलने का नाम ही शिवराजसिंह चौहान है।

 

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शिवराजसिंह चौहान को आप किस रूप में देखते हैं? यह सवाल आपसे पूछा जाए तो स्वाभाविक रूप से जवाब होगा कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में लेकिन इससे आगे आपसे पूछा जाए कि एक आम आदमी के रूप में क्यों नहीं तो जवाब देने में थोड़ा वक्त लग सकता है। इस सवाल का जवाब देने में वक्त लगना स्वाभाविक है क्योंकि जिस कालखंड में हम जी रहे हैं अथवा पिछला समय हमने जो गुजारा है, उसमें व्यक्ति को उसके गुणों से नहीं बल्कि उसके पद और पद की हैसियत से पहचाना है। स्वाभाविक है कि शिवराजसिंह चौहान की पहचान एक मुख्यमंत्री के रूप में है और इतिहास के पन्नों में भी उन्हें इसी पहचान के साथ दर्ज किया जाएगा लेकिन सच तो यह है कि अपना सा लगने वाला यह मुख्यमंत्री हमारे बीच का, आज भी अपना सा ही है। शिवराजसिंह के चेहरे पर तेज है तो कामयाबी का लेकिन मुख्यमंत्री होने का गरूर पहले भी नहीं रहा और आज भी नहीं होगा। चेहरे पर राजनेता की छाप नहीं। सत्ता के शीर्ष पर बैठने की उनकी कभी शर्त नहीं रही बल्कि उनका संकल्प रहा है प्रदेश की बेहतरी का। वे राजनीति में आने से पहले भी आम आदमी की आवाज उठाने में कभी पीछे नहीं रहे। वे किसी विचारधारा के प्रवर्तक हो सकते हैं लेकिन वे संवेदनशील इंसान है। एक ऐसा इंसान जो अन्याय को लेकर तड़प उठता है और यह सोचे बिना कि परिणाम क्या होगा, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने निकल पड़ता है। बहुतेरों को यह ज्ञात नहीं होगा कि शिवराजसिंह चौहान किसी समय मजदूरों को कम मजदूरी मिलने के मुद्दे पर अपने ही परिवार के खिलाफ खड़े हो गए थे। शिवराजसिंह चौहान का यह तेवर परिवार को अंचभा में डालने वाला था। मामूली सजा भी मिली लेकिन उन्होंने आगाज कर दिया था कि वे आम आदमी के हक के लिए आवाज उठाते रहेंगे। ऐसा भी नहीं है कि शिवराजसिंह चौहान में कुछ कमियां ना हो लेकिन जो खूबियां उनके व्यक्तित्व में है, वह उन कमियों को बौना कर देती है। 


कुछ पुराने दिनों को याद कर लेना भी इस अवसर पर सामयिक हो जाता है। ज्ञात रहे कि बीते 13 सालों में शिवराजसिंह चौहान के कांधे पर हाथ रखकर सैकड़ों लोग यह कहते मिल जाते थे कि शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं. ‘शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं’, इसमें अपनापन तो था ही लेकिन एक भाव यह भी कि देखो हमारे साथ पढ़ा विद्यार्थी, हमारा दोस्त शिवराजसिंह आज मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री है। थोड़े से लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि ‘हम शिवराजसिंह के साथ पढ़े हैं' और थोड़े से लोग होंगे जो कहते मिल जाएंगे- ‘शिवराजसिंह और हम साथ पढ़े हैं।’ शिवराजसिंह के साथ सहपाठी होने की यह गर्वानुभूति सालों गुजर जाने के बाद हो रही है तो इसलिए कि शिवराजसिंह चौहान जब भोपाल के अपने स्कूल ‘मॉडल स्कूल’ में जाते हैं तो मुख्यमंत्री बनकर नहीं, स्कूल के एक पुराने विद्यार्थी की तरह। शिक्षकों का चरण स्पर्श करना नहीं भूले। सहपाठियों को नाम से याद रखना और उन्हें संबोधित करना उनकी सादगी की एक झलक है।

 

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1956 में जब नए मध्यप्रदेश का गठन हुआ और समय-समय पर मुख्यमंत्री बदलते रहे। हर मुख्यमंत्री की अपनी शैली थी। काम करने से लेकर जीवन जीने तक। लगभग सभी मुख्यमंत्री कुछ अलग दिखना चाहते थे या लोगों ने उन्हें वैसा प्रस्तुत करने की कोशिश की लेकिन 2005 में मुख्यमंत्री के इस परम्परागत चेहरे के विपरीत सादगी भरा एक चेहरा नुमाया हुआ था शिवराजसिंह चौहान का। संसद से विधानसभा और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद भी उन्होंने अपने लिए कोई बनावट नहीं की। उनकी बुनावट इतनी मोहक थी कि कभी पांव पांव वाले भइया के नाम से मशहूर शिवराजसिंह मामा के नाम से मशहूर हो गए। ऐसा नहीं है कि शिवराजसिंह चौहान पहले मुख्यमंत्री हों जिन्हें विशेषण दिया गया बल्कि लगभग हर मुख्यमंत्री को उनकी कार्यशैली और उनके तेवर के अनुरूप विशेषण मिलता रहा है। कोई राजा-महाराजा कहलाए तो किसी को संवेदनशील होने का विशेषण दिया गया। संत और साध्वी के रूप में मध्यप्रदेश की सत्ता सम्हालने वाले भी थे लेकिन लगातार सत्ता के शिखर पर बैठे शिवराजसिंह चौहान की सादगी चर्चा में रही। एक बार जब वे सत्ता के शीर्ष पर बैठ रहे हैं तो इस बार भी उनकी सादगी, स्पष्टवादिता और अपनों के लिए जुझारूपन एक कारण होगा।


शिवराजसिंह चौहान की सादगी भारतीय राजनीति में उन्हें अलग तरह से रखती है। ‘आम’ से ‘खास’ बनने में उनकी कोई रूचि नहीं रही सो वे जैसा थे, वैसा ही बना रहना चाहते हैं। लगभग हर जगह वे अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ पायजामा-कुरता में मिलेंगे। जब वे अवकाश पर होते हैं तो निहायत एक आदमी की तरह टीशर्ट और फुलपेंट में दिख जाते हैं। यह उनका प्रिय लिबास है। तामझाम और शोशेबाजी के इस आधुनिक दौर में शिवराजसिंह की यह सादगी उन्हें औरों से अलग, बिलकुल अलग बनाती है। शिवराजसिंह की सादगी का आलम यह है कि वे गांव-देहात के दौरे के समय धूल भरी सडक़ में अपने लोगों के साथ बैठने में कोई हिचक नहीं करते हैं।


इस अवसर पर एक घटना का उल्लेख करना लाजिमी हो जाता है। विदिशा में जब वे सडक़ निर्माण का औचक निरीक्षण के लिए पहुंचते हैं और बताते हैं कि वे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हैं तो मजदूर उन्हें पहचानने से इंकार कर देते हैं। इस वाकये से शिवराजसिंह के चेहरे पर गुस्से का भाव नहीं आता है बल्कि वे हंसी में लेते हैं। साथ चल रहे अफसरों को कहते हैं चलो, भई यहां शिवराज को कोई पहचानता नहीं। क्या यह संभव है कि एक मुख्यमंत्री को उसकी जनता पहचानने से इंकार करे और वह निर्विकार भाव से लौट आए? यह सादगी शिवराजसिंह में मिल सकती है। उनके इन्हीं अनुभवों ने उन्हें आम आदमी से जोडऩे के लिए कई तरह के जतन करने का उपाय भी बताया। इन्हीं में से एक मुख्यमंत्री आवास पर होने वाली विभिन्न वर्गों की पंचायत रही है। कभी मुख्यमंत्री आवास आम आदमी के लिए तिलस्म सा था। बाहर से लोग अंदाज लगाया करते थे कि अंदर क्या क्या होगा लेकिन जब आम आदमी को मुख्यमंत्री आवास से बुलावा आया तो यह तिलस्म टूट गया था।


शिवराजसिंह की सादगी के यह उद्धरण वह हैं जिसकी गवाही पूरा मध्यप्रदेश दे रहा है। हां, यह बात भी तय है कि जब आप शिवराजसिंह चौहान को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जांचते हैं, परखते हैं तो एक राजनेता के रूप में कुछ कमियां आप को दिख सकती हैं। कुछ फैसले सबके मन के नहीं होते हैं और इस बिना पर आप उन्हें घेरे में ले सकते हैं लेकिन एक आदमी से जब आप सवाल करेंगे तो उनका जवाब होगा कि अपना अपना सा लगने वाला यह शिवराज हमारा मुख्यमंत्री है और हमें ऐसा ही मुख्यमंत्री चाहिए। शिवराजसिंह चौहान चौथी दफा मध्यप्रदेश के सिंहासन पर विराजमान हो रहे हैं तो वह सारे मिथक टूट जाते हैं कि भाजपा हाईकमान उनके नाम पर सहमत नहीं है। या ऐसे ही तमाम तरह के तर्क-कुर्तक धराशायी हो जाते हैं। उन पर यह आरोप भी सहजता से कई तरह के आरोप लगाया जा सकता है लेकिन सारे आरोप बेमानी हो जाते हैं क्योंकि जो जनता से दूर है, वह सिंहासन से दूर है।


मनोज कुमार

वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल 


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