By शुभा दुबे | Aug 06, 2021
ऐसा शिवलिंग जिसका चिन्ह मिट गया हो, जो टूट−फूट गया हो, मैल आदि से स्थूल हो गया हो, वज्र से आहत हुआ हो, फट गया हो, जिसका अंग भंग हो गया हो तथा जो इसी तरह के अन्य विकारों से ग्रस्त हो, ऐसे दूषित लिंगों की पिण्डी तथा वृषभ का तत्काल त्याग कर देना चाहिए। जो अस्थिर हो, उस शिवलिंग को यदि चालित करें तो उसकी शांति के लिए एक सहस्त्र आहुतियां दें तथा सौ आहुतियां देकर पुनः उसकी स्थापना करें। जीर्णता आदि दोषों से युक्त शिवलिंग भी यदि नित्य पूजा अर्चना आदि से युक्त हो तो उसे सुस्थित ही रहने दें, चालित न करें। जीर्णोद्धार के लिए दक्षिण दिशा में एक मण्डप बनायें। ईशानकोण में पश्चिम द्वार का एक फाटक लगा दें। द्वार पूजा आदि करके, वेदी पर शिवजी की पूजा करें। इसके बाद मंत्रों का पूजन और तर्पण करके वास्तु देवता की पूर्ववत् पूजा करें। तदनन्तर बाहर जाकर दिशाओं में बलि दे, स्वयं आचमन करने के पश्चात गुरु ब्राह्मणों को भोजन करायें। तत्पश्चात् भगवान शंकर से कहें−
'शम्भे! यह लिंग दोषयुक्त हो गया है। इसके उद्धार करने से शांति होगी− ऐसा आपका वचन है। अतः विधिपूर्वक इसका अनुष्ठान होने जा रहा है। शिव! इसके लिए आप मेरे भीतर स्थित होइये और अधिष्ठाता बनकर इस कार्य का सम्पादन कीजिये।' देवेश्वर शिव को इस प्रकार विज्ञप्ति देकर मधु और घृतमिश्रित खीर एवं दूर्वा द्वारा मूल मंत्र से एक सौ आठ आहुतियां देकर शांति होम का कार्य सम्पन्न करें। इसके बाद लिंग को स्नान कराकर वेदी पर इसकी पूजा करें। पूजनकाल में ओम व्यापकेश्वराय शिवाय नमः इस मंत्र का उच्चारण करें। अंगपूजा और अंगन्यास के मंत्र इस प्रकार हैं−
ओम व्यापकेश्वराय हृदयाय नमः।
ओम व्यापकेश्वराय शिरसे स्वाहा।
ओम व्यापकेश्वराय शिखायै वषट्।
ओम व्यापकेश्वराय कवचाय हुम्।
ओम व्यापकेश्वराय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओम व्यापकेश्वराय अस्त्राय फट्।
तत्पश्चात् उस शिवलिंग के आश्रित रहने वाले को अस्त मंत्र के उच्चारण पूर्वक सुनायें− यदि कोई भूत−प्राणी यहां इस लिंग का आश्रय लेकर रहता है, वह भगवान शिव की आज्ञा से इस लिंग को त्यागकर जहां इच्छा हो वहां चला जाये। अब यहां विद्या तथा विद्येश्वरों के साथ साक्षात् भगवान शम्भु निवास करेंगे। इसके बाद पाशुपत मंत्र से प्रत्येक भाग के लिए सहस्त्र आहुतियां देकर शांति जल से प्रोक्षण करें। फिर कुशों द्वारा स्पर्श करके उक्त मंत्र को जपें।
इसके बाद विलोम क्रम से अर्घ्य देकर लिंग और पिण्डिका में स्थित तत्वों, तत्वाधिपतियों और अष्ट मूर्तीश्वरों का गुरु स्वर्णपाश से विसर्जन करके वृषभ के कंधे पर स्थित रज्जु द्वारा उसे बांधकर ले जायें तथा जनसमुदाय के साथ शिव नाम का कीर्तन करते हुए, उस वृषभ को जल में डाल दें। फिर मंत्रज्ञ आचार्य पुष्टि के लिए सौ आहुतियां दें। दिक्पालों की तृप्ति तथा वास्तु शुद्धि के लिए भी सौ−सौ आहुतियों का होम करें। तत्पश्चात् महापाशुपत मंत्र से उस मंदिर में रक्षा की व्यवस्था करके, गुरु वहां विधिपूर्वक दूसरे लिंग की स्थापना करें। असुरों, मुनियों, देवताओं तथा तत्त्वेत्ताओं द्वारा स्थापित लिंग जीर्ण या भग्न हो गया हो तो विधि के द्वारा भी उसे चालित न करें। जीर्ण मंदिर के उद्धार में भी यही विधि काम में लानी चाहिए।
-शुभा दुबे