महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और एनसीपी ने गठबंधन की मुश्किलें भले हल कर ली हों लेकिन भ्रष्टाचार मामलों की जाँच की आंच जब इन दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं तक पहुँच रही है तो इनके लिए यह मुश्किल हो गया है कि चुनावों का सामना किस मुँह से करें। दरअसल प्रवर्तन निदेशालय ने महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाला मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार, उनके भतीजे और पूर्व उप मुख्यमंत्री अजीत पवार व अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का आपराधिक मामला दर्ज किया है। यह घोटाला करीब 25 हजार करोड़ रुपए का बताया जा रहा है और चुनावी बेला में इस मामले को लेकर महाराष्ट्र की राजनीति गर्मा गयी है।
हालाँकि जो लोग इस मामले को चुनावों से जोड़कर देख रहे हैं उन्हें हम बताना चाहेंगे कि राज्य की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर इस साल अगस्त में मुंबई पुलिस ने एक प्राथमिकी दर्ज की थी। मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी के आधार पर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में आपराधिक आरोप लगाए हैं। यही नहीं आर्थिक अपराध शाखा से बंबई उच्च न्यायालय ने मामला दर्ज करने को कहा था। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति एसके शिंदे ने कहा था कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ “विश्वसनीय साक्ष्य” हैं। दरअसल, पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर के मुताबिक, एक जनवरी 2007 से 31 मार्च 2017 के बीच हुए महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले के कारण सरकारी खजाने को कथित तौर पर 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सहकारी बैंक में घोटाला संचालक मंडल की ओर से गलत मंशा से लिये गये फैसलों के चलते हुआ। आरोप है कि राज्य सहकारी बैंक से शक्कर कारखानों और कपड़ा मिलों को बेहिसाब रूप से कर्ज बाँटा गया। यह भी आरोप लगाया गया है कि जिन कर्जदारों ने बैंक के पैसे नहीं दिये उनकी संपत्ति बेचने के दौरान भी जमकर गड़बड़ी की गयी और बैंक को नुकसान पहुँचाया गया।
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प्रवर्तन निदेशालय ने जो मामला दर्ज किया है उसमें शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार के अलावा आरोपियों में दिलीपराव देशमुख, इशरलाल जैन, जयंत पाटिल, शिवाजी राव, आनंद राव अदसुल, राजेंद्र शिंगाने और मदन पाटिल के नाम शामिल हैं। इस मुकदमे के खिलाफ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की युवा शाखा के कार्यकर्ताओं ने प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर के बाहर जोरदार प्रदर्शन भी किया लेकिन इस तरह के प्रदर्शन कोई मायने नहीं रखते क्योंकि यदि अपराध हुआ है तो कानून किसी को बख्शता नहीं है। हाल ही में देश ने देखा कि देश के गृहमंत्री और वित्त मंत्री रह चुके पी. चिदम्बरम तक को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा।
अब शरद पवार कह रहे हैं कि वह प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनके खिलाफ दर्ज मामले के सिलसिले में 27 सितंबर को एजेंसी के दफ्तर जाएंगे और महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले के सिलसिले में जो भी जानकारी उनके पास होगी, एजेंसी को देंगे। भारत के संविधान में भरोसा होने की बात कहते हुए उन्होंने यह भी कहा है कि ‘‘महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज के विचारों पर चलता है इसलिए हमें दिल्ली तख्त के सामने झुकना नहीं आता।’’ शरद पवार ने प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई के समय पर भी सवाल उठाया है। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 21 अक्तूबर को होने हैं।
अब विधानसभा चुनावों की ही बात कर लेते हैं। महाराष्ट्र को साफ सुथरी और ईमानदार सरकार और स्वच्छ प्रशासन देने का वादा कर रही कांग्रेस और एनसीपी ने जो महाअघाडी बनाया है उसमें सिर्फ एनसीपी नेताओं की ही बात करें तो अब शरद पवार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज हुआ है तो इससे पहले पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार सिंचाई घोटाले में भी आरोपी बनाये गये, एनसीपी के एक और बड़े नेता छगन भुजबल तो भ्रष्टाचार मामले में जेल की हवा भी खाकर आये और फिलहाल जमानत पर चल रहे हैं। पार्टी के एक और वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल विमानन घोटाला मामले में जाँच एजेंसियों के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। यही नहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण आदर्श हाउसिंग सोसायटी मामले में घोटाले का आरोप झेल चुके हैं जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गँवानी पड़ी थी और इस बार तो वह खुद लोकसभा चुनाव भी हार गये।
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इस बार के विधानसभा चुनावों से पहले दोनों ही पार्टियों को तब झटके पर झटके लगे जब इन दोनों के कई वरिष्ठ नेता पार्टी का साथ छोड़कर भाजपा या शिवसेना में शामिल हो गये। यही नहीं महाराष्ट्र की राजनीति को दशकों तक चलाने वाली कांग्रेस और एनसीपी ने सीटों का बंटवारा भले कर लिया हो लेकिन ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि दोनों ही पार्टियों को जिताउ उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे। साथ ही दोनों ही पार्टियों के कई बड़े नेता माहौल अनुकूल ना देखते हुए चुनाव लड़ने से भी कतरा रहे हैं। कांग्रेस का प्रभार देख रहे मल्लिकार्जुन खडगे और ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद अपना लोकसभा चुनाव हार चुके हैं और भाजपा तथा शिवसेना जहाँ अपनी चुनावी रैलियों से शंखनाद कर चुकी हैं वहां कांग्रेस और एनसीपी की अब तक कोई बड़ी रैली नहीं हुई है। 2014 में जिस तरह कांग्रेस और एनसीपी को पहले लोकसभा चुनावों और फिर विधानसभा चुनावों में झटके लगे थे अगर 2019 में भी वह इतिहास दोहरा गया तो दोनों ही पार्टियों का और बुरा हाल होना तय है।
- नीरज कुमार दुबे