आदि शंकराचार्य के दर्शन ने हिन्दुओं को दिया नया दृष्टिकोण

By प्रज्ञा पाण्डेय | May 06, 2022

आज शंकराचार्य जयंती है, शंकराचार्य जयंती बैसाख मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था, तो आइए हम आपको शंकाराचार्य जयंती के महत्व के बारे में बताते हैं।

 

जानें श्री शंकराचार्य के बारे में 

आदि शंकराचार्य का जन्म आज से 1200 साल पहले कोचीन से कुछ मील दूर कालटी गांव में एक नम्बूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। शंकराचार्य बचपन से असाधारण प्रतिभाशाली थे। उनके माता-पिता को विवाह के उपरांत बहुत लम्बे समय को कोई संतान नहीं हुई। तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव ने उन्हें पुत्र रत्न प्रदान किया। भगवान शिव के आर्शीवाद स्वरूप पैदा होने वाले बालक को नाम शंकर रखा गया। बालक शंकराचार्य जब तीन साल के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। बहुत छोटी उम्र में उन्होने मलयालम भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। जब बालक शंकराचार्य 12 साल के थे तभी उन्होने वेदों का अध्ययन कर लिया था। 16 वर्ष की अवस्था तक उन्होने 100 से अधिक ग्रन्थों की रचना की थी। उसके बाद उन्होने अपनी मां से आज्ञा लेकर वैराग्य धारण कर लिया। 32 वर्ष की अल्पायु में आदि शंकराचार्य ने अपना शरीर त्याग दिया। 


अद्वैत वेदांत के जनक हैं श्री आदि शंकराचार्य 

शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत को स्थापित कर दर्शन के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उनका अद्वैत सिद्धांत अन्य दार्शनिक सिद्धांतों से पृथक है। अद्वैत के अनुसार ब्रह्म सत्य है और जगत मिथ्या। जगत और जीव ब्रह्म का ही प्रतिबिम्ब मात्र है। यह जो विविध रूप जगत हमें दिखाई पड़ता है वह केवल भ्रम है। यह भ्रम हमें ईश्वर द्वारा बनायी गयी माया के कारण होता है। माया ही है जो जीवों को भ्रम में रखती है। जीव को जब ज्ञान होता है उसकी अविद्या का नाश होता है। अविद्या के नष्ट होने पर उसे प्रतीत होता है कि ब्रह्म सत्य है और जगत मिथ्या। शंकराचार्य मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान-कर्म-भक्ति को प्राथमिकता देते हैं। 

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मां को मजबूरी में देनी पड़ी संन्यास ग्रहण करने की अनुमति

शंकराचार्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सात साल की उम्र में संन्यास ग्रहण करने की जिद की। लेकिन उनकी मां नहीं मान रहीं थीं। एक दिन जंगल में किसी मगरमच्छ ने उनका पैर अपने मुंह में ले लिया तभी शंकराचार्य ने मां से कहा कि अगर आप मुझे संन्यास लेने की अनुमति नहीं देगी ये मुझे खा जाएगा। इस बात से शंकाराचार्य की मां बहुत डर गयीं और उन्होंने संन्यास ग्रहण करने की अनुमति दे दी। लेकिन मां ने शंकाराचार्य से वचन लिया कि वह उनका अंतिम संस्कार जरूर करेंगे जिसे आदि गुरु ने पूरा भी किया था। 


हिन्दू धर्म को दिया नया मोड़

आदि शंकराचार्य वेदांत दर्शन का उपदेश कर हिन्दूओं के लिए एक नया दृष्टिकोण बनाया। तत्कालीन समय में समाज में बौद्ध दर्शन का बोलबाला था। इनके अद्वैत दर्शन ने समाज के वंचित और उपेक्षित लोगों को एक नयी राह दिखाई। 


चार पीठों की स्थापना भी रही खास 

देश के चारों कोनों में अद्वैत मत का प्रचार-प्रसार करने के साथ ही उन्होने चार पीठों की स्थापना भी की। दक्षिण भारत में उन्होने वेदांत मठ की स्थापना की जो श्रंगेरी में है। यह मठ उनके द्वारा स्थापित पहला मठ है इसे ज्ञान मठ भी कहा जाता है। शंकराचार्य द्वारा जगन्नाथपुरी में भी एक स्थापति किया गया जिसे गोर्वधन मठ कहा जाता है। द्वारकापुरी में तीसरे मठ बनाया जिसे कालिका मठ कहा जाता है। इसके अलावा उत्तर भारत में ज्योतिमठ की स्थापना भी की गयी। 


आदि शंकराचार्य जयंती का महत्व 

शंकराचार्य की जयंती के अवसरों पर मठों और मंदिरों में पूजा-हवन इत्यादि कराया जाता है। साथ ही प्रवचन, सत्संग और गोष्ठियां आयोजित की जाती है। इसके अलावा जयंती के दिन मठों द्वारा शोभायात्राएं और जुलूस भी निकाले जाते हैं। 


जानें शंकराचार्य की भक्ति यात्रा के बारे में 

शंकराचार्य का जीवन काल बहुत कम था। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही शरीर त्याग दिया था। लेकिन अपने जीवन में उन्होंने न केवल ज्ञान प्राप्त किया बल्कि अद्वैत वेदांत जैसे महान सिद्धांत का प्रतिपादन भी किया। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। देश के विभिन्न स्थानों पर जाकर उन्होंने हिन्दू धर्म तथा दर्शन से सम्बन्धित विषयों पर भी गहन चर्चा की। उन्होंने देश भर में यात्रा कर विभिन्न हिस्सों में चार मठों की भी स्थापना की थी। ये चार मठ देश के विभिन्न हिस्से में हैं तथा हिंदू धर्म में इनका बहुत महत्व है। हिन्दू धर्म को मानने वाले अनेक भक्त अपने जीवन में इन मठ के दर्शन अवश्य करना चाहते हैं। श्रृंगेरी शारदा पीठ शंकराचार्य द्वारा स्थापित विशेष मठ है। यह भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है। श्रृंगेरी मठ को कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक माना जाता है। गोवर्धन मठ उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से भी है। द्वारका मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। इसे शारदा पीठ भी कहा जाता है। ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में स्थित है।


- प्रज्ञा पाण्डेय

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